हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए तो मुझे स्मरण करना!” (लूका 23:42)
एक सबसे बड़ी आशा-घातक बात वह होती है कि आप ने लम्बे समय से परिवर्तित होने का प्रयत्न किया है, परन्तु असफल रहे हैं।
आप पीछे मुड़कर देखते हैं और सोचते हैं कि: इससे क्या लाभ होगा? यदि मैं एक सफलता का अनुभव कर भी लेता हूँ, तो मेरे लिए नई रीति से जीवन जीने के लिए इतना कम समय बचेगा कि इतने वर्षों की असफलता की तुलना में इससे कोई अधिक अन्तर नहीं पड़ेगा।
वह भूतपूर्व डाकू (यीशु के एक ओर क्रूस पर चढ़ा हुआ डाकू) अपने हृदय-परिवर्तन के पश्चात् मात्र एक या दो घण्टे तक ही जीवित रहा। फिर वह मर गया। उसका परिवर्तन हो चुका था। उसने क्रूस पर एक नए व्यक्ति के रूप में नए व्यवहार और कार्यों (उसने अब निन्दा नहीं की) के साथ जीवन जीया। परन्तु उसके जीवन का 99.99% भाग तो व्यर्थ हो गया था। क्या अन्तिम कुछ घण्टों के परिवर्तित जीवन का कुछ महत्व भी था?
उनका तो असीमित महत्व था। वह भूतपूर्व डाकू, हम सब के समान अपने जीवन का लेखा देने के लिए ख्रीष्ट के न्याय आसन के समक्ष खड़ा होगा। “क्योंकि हम सब को ख्रीष्ट के न्याय-आसन के समक्ष उपस्थित होना अवश्य है कि प्रत्येक को अपने भले या बुरे कार्यों का बदला मिले जो उसने देह के द्वारा किए” (2 कुरिन्थियों 5:10)। उसका जीवन उस दिन उसके नए जन्म और ख्रीष्ट के साथ उसके मिलन की साक्षी कैसे देगा? उसका जीवन कैसे ख्रीष्ट में उसके नये जीवन की पुष्टि करेगा?
उसके जीवन के अन्तिम कुछ घण्टे उसकी कहानी बताएँगे। वह व्यक्ति नया था। उसका विश्वास वास्तविक था। वह सच में ख्रीष्ट से जोड़ा गया था। ख्रीष्ट की धार्मिकता उसकी थी। उसके पाप क्षमा किए गए थे।
उसके जीवन के वे अन्तिम घण्टे अन्तिम न्याय के दिन यही घोषित करेंगे। वह परिवर्तित हो गया है! और उसके परिवर्तन का अत्यन्त महत्व है। यह परमेश्वर के अनुग्रह की सामर्थ्य और उसके विश्वास की वास्तविकता और ख्रीष्ट के साथ उसके मिलन की एक सुन्दर साक्षी थी, और रहेगी।
अब परिवर्तन के साथ हमारे संघर्ष की बात पर पुनः आते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि संघर्षरत विश्वासी बचाए नहीं गए हैं जैसे कि वह डाकू पहले था। मैं केवल यह कह रहा हूँ कि जीवन के अन्तिम वर्ष और जीवन के अन्तिम घण्टे महत्व रखते हैं।
यदि हमारे जीवन के अन्तिम कुछ क्षणों में, हम लम्बे समय से चले आ रहे किसी पापमय व्यसन या अपने व्यक्तित्व में किसी हानिकारक कमी पर विजय प्राप्त कर पाते हैं, तो यह अनुग्रह की सामर्थ्य की एक सुन्दर साक्षी होगी; और यह अन्तिम न्याय के समय में ख्रीष्ट पर हमारे विश्वास और उसके साथ हमारे मिलन की एक अतिरिक्त साक्षी (यद्यपि एकमात्र नहीं) होगी।
साहस रखिए, हे संघर्षरत जन। माँगते रहें, खोजते रहें, खटखटाते रहें। ख्रीष्ट की ओर देखते रहें। यदि परमेश्वर को अन्तिम समय में डाकुओं को बचाकर महिमा मिलती है, तो उसके पास निश्चित रूप से अपने उद्देश्य हैं कि उसने आपको वह सफलता देने के लिए अब तक प्रतीक्षा क्यों की है जिसकी खोज आप वर्षों से कर रहे हैं।