क्षमा एक ईश्वरीय गुण है और क्षमा हमें परमेश्वर से अपने पापों को पश्चात्ताप करने तथा यीशु ख्रीष्ट पर विश्वास करने के द्वारा प्राप्त होती है। आज के इस पापी व भ्रष्ट संसार में क्षमा करने का कार्य अत्यन्त जटिल जान पड़ता है। क्षमा वही करता है जिसने स्वयं परमेश्वर से क्षमा पाई हो और इसके महत्त्व को समझता है। प्रायः हम एक या दो बार क्षमा कर देते हैं, परन्तु इससे अधिक क्षमा करना कठिन होता है। बाइबल हम ख्रीष्टीय जनों से माँग करती है कि हम एक-दूसरे को क्षमा करें। न केवल इतना परन्तु बाइबल हमसे माँग करती है कि हम असंख्य बार दूसरों को क्षमा करें। आइए हम संक्षिप्त में विचार करें –
मत्ती 18:21-22 पद में, पतरस यीशु ख्रीष्ट से प्रश्न पूछता है “प्रभु मेरा भाई कितनी बार मेरे विरुद्ध अपराध करता रहे कि मैं उसे क्षमा करूँ, क्या सात बार तक? यीशु ने उससे कहा ‘मैंं तुझसे यह नहीं कहता कि सात बार तक ही वरन् सात के सत्तर गुने तक।”
बाइबल में, क्षमा करना एक महत्वपूर्ण विचार है जो आत्मिक और नैतिक दोनों प्रभावों को वहन करती है। क्षमा करना किसी को उसके बुरे कामों के परिणामों से क्षमा करना या मुक्त करना, प्रतिशोध लेने या मन-मुटाव को पकड़ने के स्थान पर दया और अनुग्रह को दिखाना है। बाइबल में क्षमा करने का प्राथमिक आधार परमेश्वर का चरित्र और कार्य है। सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में, परमेश्वर को क्षमा करने वाले और दयालु के रूप में चित्रित किया गया है, जो पश्चाताप करने और अपने पापों से दूर होने वालों को क्षमा करने को तैयार है। इस परमेश्वरीय क्षमा को मानवता के लिए परमेश्वर के प्रेम और सुलह की उनकी इच्छा के प्रतिबिम्ब के रूप में देखा जाता है।
क्षमा करने के सन्दर्भ में यीशु ख्रीष्ट के पद चिन्हों पर चलिए –
पतरस ने प्रभु यीशु से सराहना प्राप्ति की आशा से क्षमा करने की गिनती को बढ़ा कर बोलता है। परन्तु जब यीशु कहते है कि ‘मैंं तुझसे यह नहीं कहता कि सात बार तक ही नहीं वरन् सात के सत्तर गुने तक”। तो यीशु ख्रीष्ट क्षमा करने की संख्या को सत्तर गुने बार तक सीमित नहीं करते बल्कि यह एक ऐसा अंक है जो असीमित या अनगिनत है।
इसलिए एक ख्रीष्टीय को एक क्षमा के ह्रदय के साथ बिना गिनती किए निरन्तर क्षमा करना है। ठीक वैसे ही जैसे परमेश्वर ने हम पर अनुग्रह पर अनुग्रह किया है। जैसे प्रभु ने हमारे पापों व अपराधों को क्षमा किया है।
हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर प्रभु यीशु ख्रीष्ट ने क्षमा करने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है। जिससे कि हम उनके पदचिन्हों पर चलते हुए एक-दूसरे को अनेकों बार क्षमा करें। यीशु ख्रीष्ट ने न केवल क्षमा के बारे में सिखाया, बल्कि स्वय कर के भी दिखाया।
लूका 23:34 पद में, क्रूस पर कड़ी पीड़ा में भी उसने कहा – “हे पिता इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं”।
मत्ती 6:14-15 पद में यीशु ने कहा “यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा करोगे तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। परन्तु यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा नहीं करोगे तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।”
प्रेरित पौलुस भी इफिसियों 4:32 में हमें प्रोत्साहित करता है कि “हम एक-दूसरे के प्रति दयालु और करुणामय बनो और परमेश्वर जैसे यीशु ख्रीष्ट में तुम्हारे अपराध क्षमा किये हैं वैसे ही तुम भी एक-दूसरे के अपराध क्षमा करो।”
अतः क्षमा करना एक सच्चे शिष्य की पहचान है। हमारा ख्रीष्टीय जीवन क्षमाशीलता के द्वारा चिन्हित किया जाना चाहिए। केवल एक सच्चा शिष्य ही अपराधी को क्षमा कर सकता है क्योंकि उसमें परमेश्वर का आत्मा उसमें वास करता है जो हमें क्षमा करने के योग्य बनाता है। इसलिए जीवन का कोई भी क्षेत्र या काल क्यों न हो। क्षमा करने की कोई गिनती या सीमा नहीं है। यदि हम अपने आपको एक सच्चा शिष्य कहते हैं तो जीवन के अंतिम क्षण तक हमें क्षमा करना है। ठीक वैसे ही जैसे परमेश्वर ने यीशु ख्रीष्ट में हम पर अनुग्रह पर अनुग्रह किया है बिना किसी गिनती या बिना किसी सीमा के। जैसे हमारे असंख्य पापों को क्षमा किया गया है। इसलिए एक सच्चे ख्रीष्टीय होने के कारण एक-दूसरे को क्षमा करें और अपने जीवन के द्वारा हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट को प्रतिबिम्बित करें।