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कलीसिया में जातिगत भेद-भाव का कोई स्थान नहीं है। 

कई बार कलीसिया में लोग एक देह में होने की बात करते हैं, किन्तु फिर भी कलीसियाओं में कुछ इस प्रकार की समस्याएँ देखने को मिलती हैं जैसे- अपने समुदाय के लोगों के मध्य ही संगति करना, विवाह के लिए अपनी जाति के लड़के/लड़की ढ़ूँढ़ना आदि। परन्तु क्या कलीसिया में जाति के आधार पर कुछ भी होना चाहिए? नहीं। क्यों नहीं? आइये हम ध्यान दें कि कलीसिया में क्यों जातिगत पृष्ठिभूमि के आधार पर विभेदीकरण (अन्तर करना) का स्थान नहीं हैं! इस बात को मुख्यतः तीन भिन्न लेंसों से देखें – 

हम चाहे किसी भी पृष्ठभूमि, वर्ग, जाति से हों, हम सबका उद्धार एकमात्र यीशु द्वारा ही सम्भव हुआ है

ख्रीष्ट में विश्वासियों का एक समान मूल्य है: जातिवाद पतित मानव की सांसारिक सोच का उत्पाद है। और इससे हर समाज के लोग प्रभावित हैं। किन्तु परमेश्वर की दृष्टि में हमारा मूल्य बराबर है। उद्धार के विषय में हमारा मूल्य समान है। हम सब की आत्मिक आवश्यकता- पापों की क्षमा एक है, और हम सब एक रीति से- यीशु में विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से बचाए जाते हैं (इफिसियों 2:1-10) हम चाहे किसी भी पृष्ठभूमि, वर्ग, जाति से हों, हम सबका उद्धार एकमात्र यीशु द्वारा ही सम्भव हुआ है (गलातियों 3:28-29)। हमारे तथा अन्य दूसरे विश्वासियों के मध्य कोई भिन्नता नहीं है। हम सब एक समान हैं और ख्रीष्ट में सारी आशीषों के भागीदार हैं। इसलिए कलीसिया में जातिवाद जैसी बुरी विचारधारा को पनपने नहीं दिया जाना चाहिए।

यीशु के लहू के द्वारा हम एक-दूसरे के समीप लाए गए हैं जिसका अर्थ है कि जातिगत भेदभाव की दीवार ढ़ा दी गई है।

ख्रीष्ट में विश्वासी एक ही देह के अंग हैं: कलीसिया ख्रीष्ट की देह है। जिसमें ख्रीष्ट सिर है और विश्वासी उसके देह के अंग। यद्यपि देह के कई अंग हैं किन्तु सब एक साथ जुड़े हुए हैं (1 कुरिन्थियों 12:13-27)। देह में व्यक्ति का कार्य, क्षमता, भले ही भिन्न हो किन्तु वे सब एक ही देह के अवयव हैं। इसलिए कलीसिया के भीतर ऊँच-नीच, छोटे वर्ग-बड़े वर्ग के लिए कोई स्थान नहीं है। याकूब 2:1-6 में अनुसार धनी व्यक्ति को दिया गया “विशेष ध्यान” और गरीब आदमी की उपेक्षा करना सामाजिक स्तर पर भेदभाव का स्पष्ट उदाहरण है। ख्रीष्टियों को एक-दूसरे से व्यवसाय, कार्य,धन, वर्ग, जाति, रंग-रूप के आधार पर व्यवहार नहीं करना चाहिए। ऐसा भेदभाव पाप है। हम ख्रीष्ट में एक परिवार के हैं। ख्रीष्ट में आने के बाद हम कलीसिया में एक ही परिवार के लोग बन जाते हैं। जिसमें हमारा एक-दूसरे से सम्बन्ध का आधार यीशु है। यीशु के लहू के द्वारा हम एक-दूसरे के समीप लाए गए हैं जिसका अर्थ है कि जातिगत भेदभाव की दीवार ढ़ा दी गई है। इफिसियों 2 के अनुसार हम अब आत्मिक परिवार के में सम्मिलित हो गए हैं। 

अब कलीसिया में हमारा एक- दूसरे के साथ सम्बन्ध होगा, क्योंकि अब हम नई सृष्टि हो गए हैं।

ख्रीष्ट में विश्वासी नई सृष्टि हैं: बाइबल बताती है कि जो अब ख्रीष्ट में हैं वे नई सृष्टि हैं। पुरानी बातें बीत गई हैं। इसलिए जो कोई भी कहीं से, किसी भी पृष्ठभूमि से विश्वास में आया हो, उसकी पहचान अब बदल गई है। वह ख्रीष्ट में नई सृष्टि है। अब नया सम्बन्ध है। हमें नया हृदय मिला है, हम प्रभु की समानता में बनते जा रहे हैं (1 थिस्स 5:17, 2 कुरिन्थियों 5:17)। पहले भले ही हम एक-दूसरे के निकट नहीं आ सकते थे, किन्तु अब हम यीशु के कारण एक साथ परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं। हम एक साथ भोजन कर सकते हैं। एक साथ घूम सकते हैं। एक साथ समय व्यतीत कर सकते हैं। एक दूसरे के घर जा सकते हैं। एक दूसरे के साथ संगति कर सकते हैं। आप यीशु को जानने से पहले भले ही किसी भी जाति के रहे हों, किन्तु ख्रीष्ट में आप कलीसिया के महत्वपूर्ण भाग हैं। अब हम यीशु के द्वारा परमेश्वर की सन्तान हैं। ऊँची-नीची जाति, किसी भी वर्ग, अमीर-गरीब, अनपढ़-पढ़ा लिखा इन सबके आधार पर जो जातिगत भिन्नता है, उसका ख्रीष्टियता में कोई स्थान नहीं है। अब कलीसिया में हमारा एक- दूसरे के साथ सम्बन्ध होगा, क्योंकि अब हम नई सृष्टि हो गए हैं। हमारा स्वभाव, हमारी पहचान बदल गई है। 

अत: यदि हम कलीसिया में एक-दूसरे के साथ उनकी पृष्ठभूमि के आधार पर व्यवहार करते हैं और छुआ-छूत की भावना से प्रेरित हैं तो हम परमेश्वर के विरोध में पाप कर रहे हैं। परमेश्वर ने जब भिन्नता नहीं की है तो हम आपस में जाति के आधार पर भेद करने वाले कौन होते हैं? इसलिए आइये, हम अपने पापों से पश्चाताप करें और वचन आधारित कलीसिया का निर्माण करें, जिसमें सब विश्वासी परिवार के जैसे रहें और परमेश्वर की सेवा करें। 

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नीरज मैथ्यू
नीरज मैथ्यू
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