परमेश्वर न्यायी है और पवित्र है और हमारे जैसे पापियों से भिन्न है। क्रिसमस—तथा अन्य प्रत्येक अवसर पर भी हमारी मुख्य समस्या यही है। कि हम कैसे न्यायी और पवित्र परमेश्वर के समक्ष ठीक होने पाएँगे?
फिर भी, परमेश्वर दयालु है और उसने यिर्मयाह 31 में प्रतिज्ञा की है (ख्रीष्ट से पाँच सौ वर्ष पूर्व) कि किसी दिन वह कुछ नया करेगा। वह छाया को मसीहा की वास्तविकता से प्रतिस्थापित कर देगा। और वह सामर्थ्य के साथ हमारे जीवन में प्रवेश करेगा और अपनी इच्छा को हमारे हृदयों पर लिखेगा, जिससे कि हम बाहर से विवश न हों, परन्तु भीतर से हम में, उस से प्रेम करने और उस पर विश्वास करने और उसका अनुसरण करने की स्वेच्छा हो।
यह वह सबसे बड़ा उद्धार होगा जिसकी कल्पना की जा सकती है—यदि परमेश्वर, हमारे आनन्द के लिए जगत में सबसे बड़ी वास्तविकता प्रदान करे और फिर हमें सक्षम करे कि हम इस वास्तविकता का जहाँ तक सम्भव हो पूर्ण स्वतन्त्रता और सर्वोच्च सुख में आनन्द उठा सकें। तो यह क्रिसमस का एक ऐसा उपहार होगा जो गीत गाने के योग्य होगा।
वास्तव में, यही वह बात है जिसकी प्रतिज्ञा उसने नई वाचा में की थी। परन्तु एक बहुत बड़ी बाधा थी। हमारा पाप। हमारे अधर्म के कारण परमेश्वर से हमारा अलगाव।
एक पवित्र और न्यायी परमेश्वर हम पापियों के साथ कैसे इतनी दयालुता का व्यवहार कर सकता है कि जगत की सबसे महान् वास्तविकता (उसके पुत्र) को सबसे बड़े सम्भावित सुख के साथ आनन्द मनाने के लिए हमें प्रदान करे?
इसका उत्तर यह है कि परमेश्वर ने हमारे पापों को अपने पुत्र पर डाल दिया, और वहीं पर उन पापों का न्याय किया, जिससे कि वह उन्हें अपने मन से निकाल दे, और हमारे साथ दयालुता से व्यवहार करे और साथ ही साथ न्यायी और पवित्र बना रहे। इब्रानियों 9:28 कहता है कि ख्रीष्ट “बहुतों के पापों को उठाने के लिए एक बार बलिदान हुआ।”
उसने स्वयं अपनी ही देह में क्रूस पर हमारे पापों को उठा लिया (1 पतरस 2:24)। उसने हमारा न्याय स्वयं पर ले लिया (रोमियों 8:3)। उसने हम पर से दण्ड की आज्ञा हटा दी (रोमियों 8:1)। और इसका अर्थ यह है कि हमारे पाप दूर हो गए हैं (प्रेरितों के काम 10:43)। यह सब परमेश्वर के मन में दण्ड की आज्ञा के लिए आधार नहीं हैं। इस अर्थ में वह उन्हें स्मरण नहीं रखता है (यिर्मयाह 31:34)। वे ख्रीष्ट की मृत्यु में निगल लिए गए हैं।
इसका अर्थ है कि परमेश्वर अब अपने न्याय में उदारता से हमें नई वाचा की प्रत्येक अवर्णनीय महान् प्रतिज्ञाओं को देने के लिए स्वतन्त्र है। उसने हमें ख्रीष्ट दिया, जो जगत की सबसे बड़ी वास्तविकता है, जिससे कि हम उसका आनन्द उठा सकें। और वह अपनी स्वयं की इच्छा—अपने स्वयं के हृदय को—हमारे हृदयों पर लिखता है जिससे कि हम ख्रीष्ट से प्रेम कर सकें और ख्रीष्ट पर भरोसा कर सकें और स्वतन्त्रता तथा आनन्द के साथ अपने अन्तर्मन से ख्रीष्ट का अनुसरण कर सकें।