पिछले दो हज़ार वर्षों से ख्रीष्टीयता की नींव यीशु के क्रूस पर मरने और पुनः जी उठने पर टिकी हुई है। आरम्भ से ही ख्रीष्टियों के लिए यीशु के जी उठने की घटना एक चट्टान के समान अटल रही है। ख्रीष्टीय अपने आराधना के गीतों और विश्वास वचनों में पिछले दो हज़ार वर्षों से यीशु के पुनरुत्थान की उद्घोषणा करते आ रहे हैं। फिर भी, आज विज्ञान और टेक्नोलॉजी के समय में मृतकों के जी उठने की बात पर अनेक लोग विश्वास नहीं कर पाते हैं। और यह कोई नई बात नहीं है। नए नियम के समय में भी, जब प्रेरित पुनरुत्थान के विषय में लोगों को बताते थे, तब भी कुछ लोग इस बात पर विश्वास नहीं कर पाते थे (प्रेरितों के काम 17:32-33)। फिर भी यह ख्रीष्टीय विश्वास का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है, इसलिए आइए हम इस घटना के ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में विचार करके देखें कि ‘क्या सच में यीशु ख्रीष्ट जी उठा था’?
यीशु क्रूस पर मारा गया था
पुनरुत्थान पर संदेह करने वालों में से कुछ का मानना है कि यीशु क्रूस पर मरा नहीं केवल मूर्छित हो गया था और होश आने पर वह कब्र से बाहर आकर लोगों को दिखाई दिया। लेकिन, बाइबल कहती है कि यीशु ने स्वयं क्रूस पर सिर झुकाकर अपना प्राण त्याग दिया था, और इसके बाद सैनिकों ने उसके पंजर में भाला डालकर उसके मरने की पुष्टि की। इतना ही नहीं रोमी सूबेदार तथा राज्यपाल पिलातुस ने भी यीशु के मरने की जांच की थी (मरकुस 15:37-45)। और अन्त में उसकी देह कपड़ों में लपेटकर कब्र में रख दी गई। यदि यह बात झूठी होती, तो चेले जब यीशु के पुनरुत्थान का प्रचार यरूशलेम में कर रहे थे, तो लोग उन्हें झूठा ठहराते। परन्तु, किसी ने उन्हें झूठा नहीं ठहराया, क्योंकि यह सबके सामने हुआ था। इसके अलावा गैर-ख्रीष्टियों ने भी यीशु के मारे जाने, गाड़े जाने और उसकी कब्र की रक्षा करने के बारे में लिखा है। अतः यीशु मूर्छित अवस्था से ठीक होकर कब्र से बाहर नहीं आया था, परन्तु क्रूस पर मरने के बाद जीवित होकर कब्र से निकला था। इसीलिए ख्रीष्टीय, आरम्भ से ही नियमित प्रभु-भोज करने के द्वारा यीशु की मृत्यु को स्मरण करते हैं।
यीशु की कब्र खाली थी
चारों सुसमाचार इस घटना का वर्णन करते हैं कि तीसरे दिन यीशु की कब्र खाली थी, जिसकी साक्षी सबसे पहले स्त्रियों ने दी। इस पर कुछ लोग कहते हैं कि स्त्रियाँ गलत कब्र पर गईं थीं, परन्तु यह सत्य नहीं हो सकता है, क्योंकि स्त्रियाँ यीशु के गाड़े जाने के समय भी कब्र पर उपस्थित थीं (मत्ती 27:61, मरकुस 15:46-47, लूका 23:55)। यद्यपि उस समाज में स्त्रियों की साक्षी महत्वपूर्ण नहीं थी, फिर भी चेलों ने स्त्रियों की साक्षी को बाइबल में लिखा है। सोचिए यदि यह चेलों के द्वारा गढ़ी गई कहानी होती, तो वे स्त्रियों को पुनरुत्थान का गवाह क्यों बनाते? चेलों के अलावा याजकों ने भी पहरेदारों को रुपये देने के द्वारा यीशु की कब्र खाली होने की पुष्टि की थी। क्योंकि न तो तीन दिन में देह सड़कर समाप्त हो सकती है और न ही रोमी सैनिकों की सुरक्षा से शव चोरी किया जा सकता था। ऐसी स्थिति में कब्र का खाली होना यीशु के जी उठने को सही ठहराता है।
यीशु जी उठने के बाद लोगों को दिखाई दिया था
मृतकों में से जी उठने के बाद यीशु मरियम मगदलीनी, पतरस, इम्माउस के शिष्यों को व्यक्तिगत रीति से दिखाई दिया (यूहन्ना 20:14, लूका 24:13-34)। इतना ही नहीं यीशु सभी चेलों के सामने एक साथ प्रकट हुआ था (यूहन्ना 20:26-29)। पौलुस कहता है कि वह चेलों के अलावा पाँच सौ से अधिक लोगों को दिखाई था (1 कुरिन्थियों 15:3-7)। यीशु जी उठने के पश्चात चालीस दिनों तक अनेक ठोस प्रमाणों के द्वारा यह प्रकट करता रहा कि वह शरीर में जी उठा है (प्रेरितों के काम 1:3)। इसके बाद भी कुछ लोग सोचते हैं कि यीशु केवल आत्मा में जीवित होकर दर्शनों में दिखाई देता था। बाइबल कहती है कि जी उठने के बाद यीशु के माँस और हड्डियाँ थीं जिसे चेलों ने छूकर देखा था और यीशु ने उनके सामने भोजन भी किया था (लूका 24:39-43)। चेलों के अलावा स्त्रियों ने भी उसे छूकर देखा था (मत्ती 28:9)। अतः ये सभी घटनाएँ यीशु के शारीरिक पुनरुत्थान की साक्षी देती हैं।
चेले इस सत्य के लिए मरने को तैयार थे
संसार में लोग प्रायः आर्थिक लाभ, यौन वासना की पूर्ति अथवा अधिकार पाने के लिए झूठ बोलते हैं, परन्तु यीशु के चेलों को ऐसा कुछ नहीं मिल रहा था जिसके लिए वे झूठी कहानी गढ़ते। इसके विपरीत उन्हें इस सत्य के लिए अपनी जान देनी पड़ी। यदि यह घटना सत्य न होती तो फिर बिना किसी लाभ के चेले स्वयं की गढ़ी झूठी कहानी के लिए क्यों मरने को तैयार थे? हो सकता है आज दो हज़ार वर्ष बाद हमें यह घटना झूठी लग रही हो, परन्तु इस सत्य के लिए चेले तथा अन्य ख्रीष्टीय आरम्भ से ही अपने प्राण दे रहे हैं। नये नियम की आधी पुस्तकें लिखने वाला पौलुस ख्रीष्टियों को मारता था और कलीसिया का स्तम्भ समझा जाने वाला याकूब अविश्वासी था। लेकिन यीशु के पुनरुत्थान के कारण ही इन दोनों प्रेरितों ने यीशु के पीछे चलते हुए अपने प्राणों को दे दिया था (गलातियों 1:18-24)। सोचिए, यदि चेले झूठ नहीं बोल रहे थे, तथा उन्हें कुछ सांसारिक लाभ नहीं हो रहा था, और न ही वे पागल थे, तो फिर पुनरुत्थान के लिए उनका प्राण देना यह प्रमाणित करता है कि यीशु का दैहिक पुनरुत्थान सत्य के सिवाय और कुछ नहीं हो सकता है।
हमारे लिए पुनरुत्थान का क्या अर्थ है?
यह सत्य है कि यीशु के जी उठने के अनेक प्रमाण पाए जाते हैं, परन्तु प्रश्न यह उठता है कि हमें यीशु के जी उठने के बारे में क्यों जानना चाहिए? बाइबल कहती है कि मृत्यु का श्राप प्रत्येक मनुष्य पर बना हुआ है, परन्तु हम केवल यीशु पर विश्वास करके अनन्त मृत्यु के दण्ड से बच सकते हैं, क्योंकि यीशु मृत्यु पर विजयी हुआ है। इसी आनन्दपूर्ण सत्य पर ख्रीष्टीय पिछले दो हज़ार वर्षों से विश्वास करते आ रहे हैं, क्योंकि यह ख्रीष्टियता के लिए अति महत्वपूर्ण है। यह इतना महत्वपूर्ण है कि पौलुस कहता है “यदि ख्रीष्ट जिलाया नहीं गया तो हमारा प्रचार करना व्यर्थ है, और तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ है। इससे भी बढ़कर हम परमेश्वर के झूठे गवाह ठहरते हैं…” (1 कुरिन्थियों 15:14-15)।
1 जॉश मैकडॉवेल 2016, 112-116 नवीन प्रमाण जो आपका फैसला माँगता है! सिकंदराबाद: जी एस बुक्स.
2 जॉश मैकडॉवेल 2016, पृष्ठ 348-357
3 https://coldcasechristianity.com/writings/were-the-gospel-eyewitnesses-lying-about-the-resurrection/