“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है” (2 तीमुथियुस 3:16)। अर्थात् परमेश्वर का वचन भक्तिपूर्ण जीवन हेतु सब कुछ प्रदान करता है। यह हमारे आत्मिक जीवन को संपोषित करता है। यह हमारे आत्मिक जीवन के लिए लाभप्रद है।
जिस प्रकार से हमारे आत्मिक जीवन हेतु वचन के लाभ पाए जाते हैं, उसी प्रकार से वचन को अनदेखा करने के कई अपेक्षित हानियाँ भी होती हैं। इसलिए, नियमित रीति से वचन न पढ़ने से होने वाली हानियों से अनभिज्ञ रहना उचित नहीं है। आइए, हम नियमित रीति से परमेश्वर के वचन को न पढ़ने से होने वाली हानियों के विषय में जानें –
1. वचन की उपेक्षा करना पाप की ओर ले जाता है –
“क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं। क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चेतावनियों को मानते हैं, और कुटिलता का काम नहीं करते; वे तो यहोवा के मार्गों पर चलते हैं।” (भजन 119:1-3)।
जब हम परमेश्वर के वचन को नियमित रीति से नहीं पढ़ते हैं, तो हम उसके वचनों की उपेक्षा करते हैं। हम उसकी चेतावनियों को अनदेखा करते हैं, हम कुटिलता के काम में फंस जाते हैं, हम यहोवा के मार्ग पर चलने के अलावा हम संसार, शरीर और शैतान के मार्ग पर चलने लगते हैं। इसलिए एक ख्रीष्टीय जन के लिए यह आवश्यक है कि वह परमेश्वर के वचन के द्वारा चेतावनी और मार्गदर्शन पाकर जीवन व्यतीत करें। यदि वह जन वचन ही नहीं पढ़ेगा तो कैसे वह परमेश्वर के मार्ग पर बना रहेगा, चेतावनी पाकर खरी चाल चलेगा। क्योंकि वचन ही है जो सब कुछ से हमें अवगत कराता है। हमारी आत्मिक वास्तविकता को प्रदर्शित करता है।
इसलिए मैं आपको उत्साहित करूँगा कि परमेश्वर के वचन को नियमित रीति से अवश्य पढ़ें और उस पर मनन करते हुए जीवन व्यतीत करें। यदि आप परमेश्वर के वचन को अपने जीवन में प्राथमिकता नहीं देते हैं, तो आप शीघ्र ही पाप और कुटिलता की ओर उन्मुख हो जाएँगे, क्योंकि वचन की उपेक्षा करना पाप की ओर अग्रसित होना है।
2 वचन की उपेक्षा करने से हम आशा से भटक जाएँगे –
“दुख के कारण मेरा प्राण गिरा जाता है, अपने वचन के द्वारा मुझे सम्भाल।” (भजन 119:28)।
हमारे दुःख और निराशापूर्ण स्थिति में, परमेश्वर अपने वचन के द्वारा हमें सामर्थ प्रदान करता है और सम्भालता है। उसके वचन के द्वारा ही हम उसके गुणों को, उसके कार्य को, उसकी विश्वासयोग्यता को, उसके न्याय को, उसकी प्रतिज्ञाओं को, और उसके महान प्रेम को देखते हैं। ये सब बातें ही दुःख के समय में हमें सामर्थ्य प्रदान करती हैं। हमें सत्य के विषय में स्मरण दिलाती हैं। हमें आशा प्रदान करती हैं। इसका अर्थ यह नहीं हैं कि हमें कोई समस्या नहीं होगी। परन्तु इसका अर्थ यह है कि हर एक परिस्थिति में हमारी आशा जो शाश्वत है, उसे कोई छीन नहीं सकता है। क्योंकि वह स्वर्ग में हमारे लिए सुरक्षित है। नियमित रूप से बाइबल पढ़ना इन बातों को स्मरण रखने में सहायता प्रदान करती है।
सत्य वचन में निहित आशा के नियमित संचार के बिना, हम बहुत ही सरलता से निराशा में पड़ जाएँगे। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में सुरक्षा के स्थान पर निराशा की भावना बढ़ेगी। यदि आप चाहते हैं कि हर प्रकार के संघर्ष से डगमगा जाएँ, हर दु:ख के आगे झुक जाएँ और संसार की पीड़ा से अभिभूत हो जाएँ, तो आप पवित्रशास्त्र की उपेक्षा कीजिए। अन्यथा परमेश्वर के वचन को नियमित पढ़िए, उस पर मनन कीजिए। सत्य वचन में निहित आशा के नियमित संचार से अपने हृदय को सिंचित होने दें। सुसमााचार में पाई जाने वाली अडिग अनन्त आशा को थामें रहें, जो स्वर्ग में हमारे लिए सुरक्षित है। यह तभी होगा जब आप परमेश्वर के वचन में बने रहेंगे।
3. वचन की उपेक्षा करने से परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम धीरे-धीरे ठण्डा हो जाएगा –
मैं तेरी चेतावनियों के मार्ग से ऐसा हर्षित हुआ हूँ, जैसा सब प्रकार के धन से। (भजन 119:14)।
परमेश्वर का वचन हमें हर्षित करता है, हमारे आनन्द को बढ़ा देता है। परमेश्वर से प्रेम करने हेतु नित्य प्रेरित करता है। और पाप हमें परमेश्वर और उसके वचन से दूर रखना चाहता है; यही कारण है कि हमारे शरीर और आत्मा में द्वन्द चलता रहता है। यही कारण है कि हमें वचन पढ़ने हेतु भी संघर्ष करना पड़ता है। क्योंकि वचन ख्रीष्ट में, परमेश्वर के अत्यन्त महान प्रेम की साक्षी देता है और परमेश्वर से प्रेम करने के लिए विवश व प्रेरित करता है।
जब हम परमेश्वर के वचन के साथ समय नहीं बिताते हैं, तो यीशु के कार्य की हमारी समझ अवरुद्ध हो जाती है। हम उसकी समझ में नहीं बढ़ते हैं। हमें प्रतिदिन के लिए ताजी अंतर्दृष्टि नहीं मिल पाती है कि उसका प्रेम कितना महान है, उसका उपहार कितना महान है। और न केवल इतना, यीशु में वचन द्वारा मिलने वाला दैनिक जीवन हेतु पोषण नहीं मिल पाता है (इफिसियों 4:16), जिसके परिणामस्वरूप हम वचन और यीशु के प्रति प्रेम में नहीं बढ़ पाते हैं। और न ही हम एक-दूसरे से प्रेम करने से लिए प्रेरित होते हैं। इसलिए मैं आपको उत्साहित करूँगा कि परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह आप पर दया करे और वचन को पढ़ने और उसमें बढ़ने की इच्छा और भूख व प्यास दे।