“तुम पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ” (लैव्यव्यवस्था 19:20)।
हमारा देश बेरोज़गारी, गरीबी, शिक्षा की कमी, भ्रष्टाचार, बीमारी आदि के साथ-साथ एक और बहुत बड़ी समस्या को झेल रहा है। वह है इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी देखना। भारत में सस्ते फोन और सस्ते इंटरनेट डेटा के कारण इंटरनेट का उपयोग बहुत ही आम बात हो गई है। हाल ही में इंडिया टाइम्स में एक समाचार आया कि भारत विश्व भर में पोर्नोग्राफी का उपयोग करने वाला तीसरे नम्बर का देश बन चुका है।
कोरोना वायरस के समय न्यूज़ 18, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, ज़ी न्यूज़ और द वीक मैगज़ीन ने समाचार दिया कि पोर्नोग्राफी के उपयोग में 95% तक की वृद्धि हुई है, एक ऐसा आंकड़ा जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। पोर्नोग्राफी, पुरुषों और महिलाओं द्वारा, युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोगों द्वारा, अमीर और गरीब लोगों के साथ ही चर्च के सदस्यों और पास्टरों द्वारा भी देखी जाती है, जो कि बहुत ही दुःख की बात है।
जबकि टेक्नोलॉजी इस पाप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, फिर भी निःसंदेह यह मुद्दा गहरा है, क्योंकि यह हृदय से सम्बन्धित है। परमेश्वर का वचन विशेष रूप से यौन पापों के साथ गम्भीरता से व्यवहार करता है। हमें “व्यभिचार से भागने” (1 कुरिन्थियों 6:18) की आज्ञा दी जाती है और बताया जाता है कि ऐसे पापों में जीने का परिणाम बहुत ख़तरनाक है। उदाहरण के लिए, यौन – अनैतिकता में एक व्यक्ति स्वयं को नष्ट कर देता है (नीतिवचन 6:32); तथा परमेश्वर द्वारा उसका न्याय किया जाएगा (मलाकी 3:5; इब्रानियों 13:4); वह परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकारी न होगा (1 कुरिन्थियों 6:9-10; इफिसियों 5:5); क्योंकि वह परमेश्वर का शत्रु बन जाता है (याकूब 4:4); अन्त में उसे अनन्त अग्नि में दण्ड मिलेगा (यहूदा 1: 7; प्रकाशितवाक्य 2:22); और वह दूसरी मृत्यु का सामना करेगा (प्रकाशितवाक्य 21:18)।
पोर्नोग्राफी हमारे विचारों और सोचने की क्षमता पर असर डालता है। हम उन बातों में अपने विचारों को लगाते हैं जो पाप और अन्धकार की है। हम धीमे-धीमे सही और गलत में भेद करने की क्षमता को खोने लगते हैं। हमारा मन, हृदय और शरीर एक ऐसी बात में लग जाते हैं जो व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाते हैं। व्यक्ति अपने मन को उन बातों से भरने लगता है जो उसकी समझ को विकृत बनाने लगती हैं। अश्लील चित्र या फिल्में हमारे मन और आँखों को जकड़ लेती हैं। हम तो पहले से ही पापी हैं और यह हमारे उस पाप को और अधिक उभार देती है। इन विचारों का प्रभाव एक व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व पर पड़ता है। स्त्रियों या पुरुषों के प्रति उनका दृष्टिकोण अपवित्रता से भरा होता है। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया है, परन्तु पोर्नोग्राफी से ग्रसित लोग दूसरों को सिर्फ एक वस्तु के समान देखते हैं। जीवित वस्तु जिसका लोग अपने आनन्द के लिए उपयोग करते हैं। ऐसे लोग समाज में हो रहे बलात्कार, बच्चों और स्त्रियों का बेचा जाना, उनका देह व्यापार में ढकेला जाना और घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं। इसके बजाय कि हम अपने हृदय को परमेश्वर के वचनों से भरें, हम उसे गन्दगी से भर रहे हैं जो हमें अन्दर से और बाहर से दूषित कर रहा है।
परमेश्वर और कलीसिया में लोगों के साथ कमज़ोर सम्बन्ध
साथ ही साथ परमेश्वर और कलीसिया के लोगों के साथ हमारे सम्बन्ध और पवित्रता के प्रति हमारी इच्छा पर भी व्यापक रूप से प्रभाव पड़ता है। हम इस पाप में पड़कर और नियमित रीति से उसमें बने रहने के द्वारा यह प्रकट कर रहे हैं कि हमारी सन्तुष्टि और आनन्द इसी में है। हम परमेश्वर के महान प्रेम को अपनी क्षणिक सन्तुष्टि और आनन्द के लिए नकारते हैं। सत्य तो यह है कि वास्तव में यह तो किसी भी प्रकार का आनन्द है ही नहीं। हम अपने ऐसे जीवन से स्पष्ट प्रकट करते हैं कि हम परमेश्वर से बढ़कर शैतान, संसार और शरीर की बातों पर मन लगा रहे हैं। पोर्नोग्राफी एक मूर्ति है जो लोगों को परमेश्वर से और उसके वचन से दूर करती है।
इतना ही नहीं परन्तु हम परमेश्वर के लोगों से भी अलग होने लगते हैं। हम अकेले रहने का प्रयास करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि हम पाप में जीवन जी रहे हैं। कलीसिया में अन्य लोगों की बातों के विषय और ऐसे लोगों के विचारों में मेल नहीं होगा। हमेशा एक प्रकार का भय बना रहता है कि यदि कलीसिया में लोग मेरे आत्मिक जीवन के बारे में पूछेंगे तो क्या होगा, कहीं उनको मेरे व्यक्तिगत जीवन के बारे में पता न चल जाए, परमेश्वर ने जो हमें जीवन और उद्धार दिया है हम उसका आनन्द लेने के बजाए भय में जीवन जीते हैं। हम अपने हृदय को लोगों के सामने खोल कर नहीं रखते हैं बल्कि उनको अपने पास से दूर कर देते हैं। बाइबल तो स्पष्ट रीति से इफिसियों 5:3 में कहती है कि “…तुम्हारे मध्य में न तो व्यभिचार, न किसी प्रकार के अशुद्ध काम पाए जाएं।”
परमेश्वर द्वारा निर्धारित विवाह की गलत समझ
पोर्नोग्राफी वचन पर आधारित विवाह की रचना को अशुद्ध करती है। परमेश्वर ने विवाह में पति और पत्नी के सम्बन्ध को पवित्र ठहराया है। इब्रानियों 13:4 में लिखा है कि, “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए तथा विवाह-बिछौना निष्कलंक रहे, क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” बाइबल ने विवाह में पवित्रता के एक स्तर को नियुक्त किया है। परमेश्वर ने विवाह में शारीरिक सम्बन्ध को भी बनाया है, परन्तु पोर्नोग्राफी इस भले और पवित्र सम्बन्ध को विकृत करती है। परमेश्वर ने यौन सम्बन्ध को बनाया ताकी वह विवाह में होकर आदर और फलदायक होने का कारण बने। विवाह में एक पुरुष और स्त्री का सम्बन्ध सुसमाचार को प्रकट करता है, परन्तु शैतान इस तरह की बातों के द्वारा विवाह में गन्दगी फैलाकर उसको दूषित कर देता है।
सच्चा आनन्द, शान्ति और सन्तुष्टि क्या है? किन बातों के लिए हम जीना चाहते हैं? ऐसा नहीं है कि आप और हम सुसमाचार और परमेश्वर की पवित्रता से अनभिज्ञ हैं। हमने सुसमाचार को जाना है जो हमारे उद्धार, अनन्त जीवन की आशा का स्रोत है। इसके बाद भी यदि हम इस क्षणिक, गन्दे, अभद्र आनन्द के लिए परमेश्वर से विद्रोह करें और संसार के अनुसार जीएं तो हमें परमेश्वर के न्याय का सामना करना पड़ेगा। परमेश्वर दयालु और प्रेमी है यदि हम अपने पापों से पश्चाताप करें और क्षमा माँगे तो वह हमें क्षमा करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।