उसकी ईश्वरीय सामर्थ्य्य ने उसी के पूर्ण ज्ञान के द्वारा जिसने हमें अपनी महिमा और सद्भावना के अनुसार बुलाया है, वह सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें प्रदान किया है। क्योंकि उसने इन्हीं के कारण हमें अपनी बहुमूल्य और उत्तम प्रतिज्ञाएं दी हैं, जिससे कि तुम उनके द्वारा उस भ्रष्ट आचरण से जो वासना के कारण संसार में है, छूट कर ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाओ। – 2 पतरस 1:3-4
यदि हम सत्यवादी हैं, तो हम पाएंगे कि हम सभी भूखे हैं। हम किसी ऐसी बात के लिए भूखे हैं जो हमें सम्भाले रहे, हमारी आशा को बनाए रखे, परीक्षाओं के मध्य में हमें दृढ़ता प्रदान करे, पाप पर विजय पाने में हमारी सहायता करे। हम ऐसे भोजन के लिए भूखे हैं जो हमें विश्वास की दैनिक लड़ाई के लिए तृप्त करेगा।
किन्तु यह लड़ाई कैसी दिखाई पड़ती है? और हमें वह भोजन कैसे प्राप्त होगा जिसकी हमें आवश्यकता है?
हमारा उद्देश्य
हमारा उद्देश्य है परमेश्वर के साथ होना और परमेश्वर के समान होना है, अर्थात “ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाना” (1:4)। पतरस हम से चाहता है कि हम परमेश्वर के समान बनने तथा भक्ति में बढ़ने के द्वारा परमेश्वर के साथ अधिक से अधिक संगति और आत्मीयता का आनन्द लें। परमेश्वर जो जीवन है उसके समान और अधिक बनने के द्वारा हम जीवन का और अधिक आनन्द लेते हैं।
यदि हम सावधान नहीं होंगे, तो हम सरलता से अन्य उद्देश्यों की ओर फिसल जाऐंगे जो हमें जीवन से वंचित कर देंगे, ऐसे उद्देश्य जो अधिक प्रतिज्ञा तो करते हैं किन्तु अन्त में बहुत कम प्रदान करते हैं — स्वार्थी लाभ, वासनायुक्त विचार, ईश्वरविहीन धुन, अत्यधिक उपभोग, नियमित आलस्य। ये उद्देश्य सरल और अस्थायी रूप से सुखदायक हो सकते हैं, किन्तु वे केवल हमें और भूखा ही छोड़ देते हैं। हमारे प्राणों को परमेश्वर की आवश्यकता है।
यदि आप यीशु में विश्वास कर रहे है, अपने पापों से क्षमा किए गए हैं और छुड़ाए गए हैं, तो आप अभी भी असिद्ध और टूट हुए हैं और रहेंगे भी। इस नए जीवन में हमारा नया उद्देश्य सिद्धता नहीं है, मानो वह हमें स्वर्ग में एक स्थान दिला सकता है। हमारा उद्देश्य ऐसे जीवन जीना है जो कि और अधिक प्रभु को भाने वाला हो जिससे हम प्रेम करते हैं, और ऐसा करके, उसमें अधिक से अधिक जीवन और आनन्द का अनुभव करें।
हमारे विरोधी
इसलिए यदि यही हमारा उद्देश्य है, तो हमारे मार्ग में रुकावट क्या है? परमेश्वर के समान बनने के लिए, हमें “पापी वासना के भ्रष्ट आचरण” से बचना होगा (1:4)। परमेश्वर का और अधिक आनन्द उठाने में हमारी सबसे बड़ी बाधा हमारी अपनी भ्रष्ट इच्छाऐं हैं। वे हमारे भूखे प्राणों को निराहार रखने का प्रयास कर रही हैं और हमें अनन्तकाल के राजमार्ग के किनारे जूठन के लिए भीख मांगने हेतु छोड़ रही हैं। परमेश्वर जानता है कि हमारे लिए उत्तम क्या है, और वह हमें उत्तम प्रदान करता है।
वास्तविकता तो यह है कि मैं इस जीवन में कष्ट सहूँगा, लोग मेरे विरुद्ध पाप करेंगे, और शैतान मेरी आशा और विश्वास को चुराने की गुप्त योजना में लगा हुआ है। किन्तु मेरा सबसे बड़ा विरोधी कष्ट उठाना, पापी लोग या शैतान नहीं है। वह तो मैं हूं — मेरे ह्रदय में अभी तक बचा हुआ पाप है।
यदि हम परमेश्वर को जानना चाहते हैं, उसके जैसा बनना चाहते हैं, उसके साथ रहना चाहते हैं, तो हमें इस जीवन में अपने पाप से निरन्तर बचाया जाना होगा। यीशु के प्रेमियों के लिए, इस युद्ध का परिणाम पहले से ही निर्धारित हो चुका है, और हम अब प्रतिदिन अपनी विजय पर कार्य कर रहे हैं जब तक कि यीशु वापस न आ जाए और वह युद्ध को एक ही बार में सदा के लिए समाप्त न कर दे।
यीशु ने क्रूस पर एक ही बार में निर्णायक कार्य कर दिया है, परन्तु हमें एक भूमिका निभानी है। हमें वास्तविक निर्णय करने हैं। हमें अपने भीतर उपस्थित इस शत्रु का सामना करने और उसका घात करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
हमारी योग्यता
मेरे पाप के घात किये जाने की बात सुनने में तो अत्यन्त मधुर प्रतीत होती है, किन्तु तब तक, जब तक मैं इसे मारने का प्रयास नहीं करता हूँ। हमारा सबसे बड़ा विरोधी, अर्थात पाप, हमारे लिए सबसे बड़ी बाधा भी है। यह हमारे नए जीवन के महान उद्देश्य को दुर्बल बनाने के लिए अपने स्थान पर सिद्धता से नियुक्त है। परमेश्वर की स्तुति हो कि वह हमारी क्षमता पर लड़ाई को दांव पर नहीं लगता है। “उसकी ईश्वरीय सामर्थ्य्य ने हमें वह सब कुछ दिया है जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है…”।
परमेश्वर का और अधिक आनन्द उठाने का एक मार्ग यह है कि हम उसके जैसे जीयें। और उसके जैसे जीने की सामर्थ्य आपकी नहीं है, परन्तु उसकी है। हमें परमेश्वर के हाथों द्वारा, उसकी सामर्थ्य से निश्चित सहायता प्राप्त होती है — वह सामर्थ्य जिसने पहाड़ों का निर्माण किया, नदियों को खोदा, तारों को चमकाया, और भालुओं, शार्कों, और गंजे उकाबों में जीवन का श्वास फूँका है; वह सामर्थ्य जो ब्रह्मांड को स्थापित करती है, राष्ट्रों पर शासन करती है, और सब लोगों का न्याय करती है। जब आप उस सामर्थ्य से जीते हैं, तो भक्ति के मार्ग पर आपको किसी भी बात की घटी नहीं होती है।
हमारे अस्त्र-शस्त्र
परमेश्वर ने “इन्हीं के कारण हमें अपनी बहुमूल्य और उत्तम प्रतिज्ञाएं दी हैं, जिससे कि तुम उनके द्वारा उस भ्रष्ट आचरण से जो वासना के कारण संसार में है, छूट कर ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाओ” (1:4)। हमारे प्रतिदिन के लिए युद्ध के अस्त्र-शस्त्र परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं हैं — विशिष्ट, लहू-द्वारा मोल ली गईं प्रतिज्ञाएं। यही वह भोज है। जब आपकी भूखी आत्मा कराहती है, तो वह यही चाहती है। ये प्रतिज्ञाएं विशिष्ट हैं। आप उन्हें प्राप्त कर सकते हैं, उन्हें समझ सकते हैं, उन्हें कंठस्थ कर सकते हैं, और उन्हें दूसरोंं के साथ बाँट सकते हैं।
जब हम शारीरिक रूप से भूखे होते हैं, तो हम केवल इस विषय में बात नहीं करते हैं कि भोजन क्या है। हम वास्तविक भोजन ढूँढ़ते हैं — चिकन सैंडविच, पनीरबर्गर, चिकन सलाद, कुछ बादाम-मेवा का स्वादिष्ट मिश्रण या एक पौष्टिक चॉकलेट। भोजन का विचार हमारी भूख के लिए कुछ भी नहीं करता है यदि हम कुछ विशिष्ट और खाने योग्य भोजन को नहीं ढूँढ़ते हैं और अपने मुंह में डालते हैं।
यही बात परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर भी लागू होती है। हम पाप, पीड़ा, और शैतान से युद्ध नहीं जीतते हैं केवल यह स्वीकार करने के द्वारा कि हमें प्रतिज्ञाओं की आवश्यकता है। नहीं! वे क्या हैं? वे मुझे पाप करने या निराश होने अथवा सन्देह करने से कैसे दूर रखते हैं? यदि प्रतिज्ञाएं परमेश्वर-प्रदत्त अपने उद्देश्यों को पूरा करेंगी, तो हमें उन्हें जानना होगा, उनका पुनः दोहरना होगा, और उन्हें एक दूसरे को सुनाना होगा। और वे इस प्रकार की प्रतिज्ञाएं हैं:
हम सब [मसीह के] स्वरूप में बदलते जा रहे हैं । (2 कुरिन्थियों 3:18)
[परमेश्वर] उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; फिर न कोई मृत्यु रहेगी न कोई शोक, न विलाप और न पीड़ा रहेगी। (प्रकाशितवाक्य 21:4)
जिसने तुम में भला कार्य आरम्भ किया है, वही उसे मसीह यीशु के दिन तक पूर्ण भी करेगा। (फिलिप्पियों 1:6)
पूर्णतया निगल लेना
कम से कम जितनी बार आपका पेट भूखा होता है, उतनी ही बार आपका ह्रदय और प्राण भी भूखा होता है। जब आप बाइबल पढ़ते हैं तो परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को ढूँढें, विशिष्ट प्रतिज्ञाओं को, और अपने भूखे प्राण को भोजन कराएं। उन्हें खा लें। उन्हें प्रति दिन और दिनभर खाएं। सम्पूर्ण भोजन खाएं। जल-पान भी करें। योजनाबद्ध रीति से भोजन करें। बिना पूर्वयोजना के भी खाएं।
और जैसे-जैसे आप ऐसा करेंगे, आप और भी अधिक परमेश्वर के समान होते जाएंगे। और जैसे-जैसे आप उसके समान और अधिक बनते जाएंगे, आप उस बहुतायत के जीवन का अनुभव और अधिक करेंगे जो उसने आपको दिया है तथा पाप का और कम अनुभव करेंगे जिससे उसने आपको बचाया है।