फिर भी परमेश्वर के अनुग्रह से मैं अब जो हूँ सो हूँ। मेरे प्रति उसका अनुग्रह व्यर्थ नहीं ठहरा, परन्तु मैंने उन सब से बढ़कर परिश्रम किया, फिर भी मैंने नहींं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह ने मेरे साथ मिलकर किया। (1 कुरिन्थियों 15:10)
अनुग्रह केवल हमारे किए हुए पाप के प्रति ढिलाई नहीं है। अनुग्रह तो पाप न करने में सक्षम बनाने वाला परमेश्वर का वरदान और सामर्थ्य है। अनुग्रह सामर्थ्य है, केवल क्षमादान नहीं है।
उदाहरण के लिए 1 कुरिन्थियों 15:10 में यह बात स्पष्ट है। पौलुस अनुग्रह का वर्णन उसके कार्य को सक्षम बनाने वाले सामर्थ्य के रूप में करता है। यह केवल उसके पापों की क्षमा ही नहीं है; यह तो वह सामर्थ्य है जो आज्ञाकारिता में बने रहने के लिए बल देती है। “मैंने उन सब से बढ़कर परिश्रम किया, फिर भी मैंने नहींं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह ने मेरे साथ मिलकर किया।”
इसलिए, जो परिश्रम हम परमेश्वर की आज्ञापालन में करते हैं वह हमारी सामर्थ्य में होकर किया गया प्रयास नहीं है, परन्तु “उस सामर्थ्य से है जो परमेश्वर देता है — जिससे सब बातों में परमेश्वर की महिमा हो” (1 पतरस 4:11)। यह आज्ञाकारिता विश्वास से उत्पन्न होती है। हमें जो करना चाहिए वह करने में सक्षम बनाने के लिए परमेश्वर से सदैव प्राप्त होने वाली अनुग्रहमयी समार्थ्य पर विश्वास।
पौलुस इसी बात की पुष्टि 2 थिस्सलुनीकियों 1:11-12 में यह कहते हुए करता है कि हमारे सारे भले कार्य “विश्वास के कार्य” हैं, और यह कहने के द्वारा कि इसके द्वारा जो महिमा यीशु को प्राप्त होती है वह “हमारे परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा” है क्योंकि “वह उसकी सामर्थ्य द्वारा” होता है। इन सभी वाक्याशों पर ध्यान दें:
इसी उद्देश्य से हम सर्वदा तुम्हारे लिए प्रार्थना भी करते हैं कि हमारा परमेश्वर तुम्हें अपनी बुलाहट के योग्य समझे, तथा भलाई की हर एक इच्छा को और विश्वास के हर एक कार्य को सामर्थ्य सहित पूरा करे, जिससे कि हमारे परमेश्वर और प्रभु यीशु ख्रीष्ट के अनुग्रह के अनुसार हमारे प्रभु यीशु का नाम तुम में महिमा पाए, और तुम उसमें।
परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली आज्ञाकारिता विश्वास के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह की सामर्थ्य द्वारा उत्पन्न होती है। अनुग्रह और सामर्थ्य का यही सम्बन्ध ख्रीष्टीय जीवन के प्रत्येक चरण में कार्य करता है। परमेश्वर के अनुग्रह की सामर्थ्य जो विश्वास के द्वारा उद्धार करती है (इफिसियों 2:8) परमेश्वर के अनुग्रह की वही सामर्थ्य है जो विश्वास के द्वारा हमें पवित्र करती है।