मैं फूट-फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक को खोलने या पढ़ने योग्य कोई न मिला। (प्रकाशितवाक्य 5:4)।
क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी प्रार्थनाएँ स्वर्ग की सुगन्ध हैं? जब हम प्रकाशितवाक्य 5 को पढ़ते हैं, हमें यही चित्र मिलता है। यहाँ स्वर्ग के जीवन की एक झलक है।
प्रकाशितवाक्य 5 में हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर को सिंहासन पर हाथ में पुस्तक के साथ देखते हैं। पुस्तक पर सात मुहरें थीं। पुस्तक के खोले जाने से पहले उन सब को तोड़ा जाना था।
मैं सोचता हूँ कि पुस्तक का खोला जाना इतिहास के अन्तिम दिनों को प्रदर्शित करता है, और सात मुहरों को तोड़ा जाना उस प्रकार के इतिहास को प्रदर्शित करता है जिससे होकर हमें जाना होगा जब हम उन दिनों की ओर बढ़ेंगे।
प्रारम्भ में, यूहन्ना रोया कि वहाँ पुस्तक को खोलने और उसे पढ़ने योग्य कोई भी नहीं था (प्रकाशितवाक्य 5:4)। परन्तु तब स्वर्ग के एक प्राचीन ने कहा, “मत डरो! देख, यहूदा के कुल का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, विजयी हुआ है, कि इस पुस्तक को और उसकी सात मुहरों को खोले” (प्रकाशितवाक्य 5:5)।
क्रूस पर मरने के द्वारा, यीशु ने शेष छुटकारे के इतिहास को खोलने और उसके द्वारा अपने लोगों की विजय में होकर अगुवाई करने के अधिकार को अर्जित किया था।
अगले पद में, सिंह को एक मेमने के रूप में चित्रित किया गया है, “मानो एक बलि किया हुआ मेमना खड़ा देखा” (प्रकाशितवाक्य 5:6)। क्या यह क्रूस पर यीशु के विजय का सुन्दर चित्र नहीं है? यद्यपि वह वध किया हुआ है, वह खड़ा हुआ है, न कि लेटा हुआ!
यह उतना ही निश्चित है मानो कि एक सिंह ने शत्रु को खा लिया हो — परन्तु उसने यीशु को मेमने की नाई घात करने के लिए शत्रु को अनुमति दी और ऐसा करने के द्वारा उसने शत्रु पर विजय प्राप्त की।
तो, मेमना अब परमेश्वर के हाथ से छुटकारे के इतिहास की पुस्तक को लेने और उसे खोलने के योग्य है। यह एक ऐसा राजसी कार्य है कि स्वर्ग के चौबीस प्राचीन (जो कि मानो परमेश्वर की आराधना महासभा के नाई थे) सराहना करते हुए उस मेमने के सामने गिर गए।
और क्या आप जानते हैं धूप से भरे सोने के कटोरे क्या हैं? प्रकाशितवाक्य 5:8 कहता है कि वे “पवित्र लोगों की प्रार्थनाएँ” हैं। तो क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि हमारी प्रार्थनाएँ स्वर्ग की सुगन्ध हैं, जो परमेश्वर के सिंहासन और मेमने के सामने महकती हैं।
मैं और अधिक बार एवं और अधिक उत्साह के साथ प्रार्थना करने के लिए दृढ़ और प्रोत्साहित होता हूँ जब मैं यह सोचता हूँ कि मेरी प्रार्थनाएँ स्वर्ग में इकट्ठी और संग्रहित की जाती हैं और बारम्बार आराधना के स्वर्गीय कार्यों में ख्रीष्ट को अर्पित की जाती हैं।
आइए हम सब अपनी प्रार्थनाओं के साथ यहाँ पृथ्वी पर ख्रीष्ट को धन्य कहें और आदर दें और सराहें, और फिर दोगुने आनन्दित हों कि स्वर्ग की आराधना महासभा उस वध किए गए मेमने के सम्मुख मधुर-सुगन्धित धूप की नाई उन्हें ख्रीष्ट को पुनः अर्पित करती है।