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आपदा के समय के लिए योएल से सन्देश

जब जीवन में समस्याएं आती हैं, कई बार हम दुखी और असहाय महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, कोरोना वायरस के कारण बहुत सारे लोगों की मृत्यु हुई, अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई, हमारे स्वयं के जीवन अस्त-व्यस्त हो गए, और वास्तव में हम अभी भी नहीं जानते कि आगे क्या होगा। ऐसे समयों के लिए योएल की छोटी पुस्तक बहुत ही प्रासंगिक है।

योएल भविष्यद्वक्ता का सन्देश परमेश्वर के लोगों के पास तब पहुंचा जब टिड्डियों के आक्रमण ने देश को बर्बाद कर दिया था (1:4)। यह घटना कुछ इस प्रकार की थी जैसे कि हाल ही में हमारे देश के कुछ क्षेत्रों ने सामना किया।1 खेती-किसानी पर निर्भर रहने वाले समाज के लिए यह आक्रमण एक राष्ट्रीय आपदा थी, जो किसी सेना के आक्रमण से कम नहीं थी (1:6-7)। जिस प्रकार से हम कोरोना वायरस के बारे में सोचते हैं कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है, और कि हम अपने बच्चों को इसके बारे में बताएंगे, उसी प्रकार से योएल भी कहता है, “क्या तुम्हारे पूर्वजों के दिनों में ऐसा कभी हुआ है? ” (1:2) “तुम अपने पुत्रों से इसका वर्णन करो, तुम्हारे पुत्र अपने पुत्रों से, और उनके पुत्र आगामी पीढ़ी से इसका वर्णन करें ” (1:3)। ऐसी स्थिति में परमेश्वर अपने लोगों को योएल के माध्यम से तीन मुख्य बातों का सन्देश देना चाहता है:

1. पश्चात्ताप की बुलाहट।
योएल कहता है कि यह समय पश्चात्ताप के लिए है। वह 1:13-14 और 2:12-17 में लोगों से कहता है कि वे विलाप करें, उपवास आयोजित करें, और नम्रता के साथ परमेश्वर के पास लौटें। वह कहता है, “अपने वस्त्र नहीं, अपना मन ही फाड़कर अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो ” (2:13)। योएल हमें यह नहीं बताता है कि टिड्डियों का यह आक्रमण किस विशिष्ट पाप के लिए दण्ड था, लेकिन हम व्यवस्थाविवरण 28 के आधार पर जानते हैं कि ऐसी आपदाएं पुराने नियम में लोगों की अनाज्ञाकारिता के प्रति परमेश्वर का न्याय था। इसी कारण से परमेश्वर चाहता था कि लोग पश्चात्ताप करें।

जब हमारे जीवन किसी भी कारण से अस्त-व्यस्त होते हैं, तो यह हमारे लिए भी पश्चात्ताप करने का एक अवसर है। यह बात सत्य है कि अब हम नई वाचा के अन्तर्गत होने के कारण व्यवस्थाविवरण 28 के श्रापों के अधीन नहीं हैं। लेकिन यह बात भी सत्य है कि हम पापी हैं। हमारे कार्य, शब्द, विचार, और व्यवहार परमेश्वर के स्तर से बहुत कम पाए जाते हैं। सामान्य तौर पर हम अपनी प्रार्थनाओं में परमेश्वर से ‘आशीषें’ मांगने में ज़्यादा समय बिताते हैं तथा अपने पापों के लिए कम क्षमा मांगते हैं। तो क्यों न, हम लोग ऐसे दिनों में अपनी प्रार्थनाओं में अपने पापों को परमेश्वर के सामने लाएं?

2. आने वाले परमेश्वर के न्याय की चेतावनी।
परमेश्वर के लोगों को पश्चात्ताप हेतु उत्साहित करने के लिए, योएल उनका ध्यान आने वाले “यहोवा के दिन” की ओर आकर्षित करता है (1:15; 2:1-11, 31; 3:14)। इस्राएलियों के लिए टिड्डियों का प्रहार एक सैनिक आक्रमण के समान लगा होगा, लेकिन उससे बढ़कर, यहोवा का दिन “सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन होगा ” (1:15)। योएल चिताता है कि, “निश्चय ही यहोवा का दिन बड़ा और अति भयानक है। कौन उसे सह सकता है? ” (2:11)। पुराने नियम में परमेश्वर के लोगों ने यहोवा के दिन को छोटे स्तर पर अनुभव किया, जब वे विदेशियों के द्वारा हराए जाकर दास बना दिए गए थे। लेकिन इससे भी बड़ा यहोवा का दिन आने वाला था जब परमेश्वर सब देशों का न्याय करेगा (3:1-15)।

नए नियम में हम सीखते हैं कि वह तब होगा जब यीशु मसीह दोबारा आकर सब लोगों का न्याय करेगा। प्रेरित पतरस लिखता है कि “प्रभु का दिन चोर के सदृश आएगा जिसमें आकाश बड़ी गर्जन के साथ लुप्त हो जाएगा और तत्व प्रचण्ड ताप से नष्ट हो जाएंगे और पृथ्वी तथा उस पर किए गए कार्य भस्म हो जाएंगे ” (2 पतरस 3:10)। वह हमें बताता है कि उस दिन को ध्यान में रखते हुए हमें वर्तमान जीवन में पवित्र चाल चलनी चाहिए (3:11-14)। यीशु का द्वितीय आगमन बाइबल की एक केन्द्रीय शिक्षा है जिसके बारे में हम अक्सर नहीं सोचते हैं। हम अभी की बातों और समाचार में इतने व्यस्त रहते हैं कि हम आने वाले न्याय को भूल जाते हैं। तो क्यों न, हम लोग ऐसे दिनों में आने वाले परमेश्वर के न्याय के प्रति सतर्क रहें?

3. परमेश्वर की ओर से आशा।
योएल न केवल लोगों को पश्चात्ताप के लिए बुलाहट और परमेश्वर के दिन के प्रति चेतावनी देता है, परन्तु वह परमेश्वर के लोगों को आशा भी देता है। उसके सन्देश में लोगों के लिए आश्वासन भी है: परमेश्वर परिस्थिति को बदल देगा, और “जिन वर्षों की उपज को दलवाली, रेंगनेवाली, उजाड़नेवाली, और कुतरनेवाली टिड्डियों ने अर्थात् मेरे भेजे गए बड़े दल ने खा लिया था, उनकी हानि मैं तुमको भर दूंगा ” (2:25)। भौतिक जागृति के साथ ही, परमेश्वर आत्मिक जागृति की भी प्रतिज्ञा करता है – परमेश्वर अपने लोगों पर अपना आत्मा उण्डेलेगा (2:28-29), और न्याय के समय वह अपने लोगों का शरणस्थान और गढ़ बनेगा (3:16)।

यीशु मसीह पर विश्वास करने वालों के पास भी समस्याओं के मध्य आशा होती है। हमारे पास भी आश्वासन है कि परमेश्वर सब बातों का समाधान करेगा। यदि परमेश्वर की इच्छा होगी तो यह वर्तमान में हो सकता है। लेकिन यदि हमारे पूरे जीवन समस्याओं से भरे हों, फिर भी परमेश्वर हानि को भर देगा जब वह स्वयं हमारी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा (प्रकाशितवाक्य 21:4)। यह सब इसलिए सम्भव है क्योंकि यीशु मसीह ने हम पापियों के लिए परमेश्वर के न्याय को सहा है। जब हम परमेश्वर के आत्मा के द्वारा यीशु पर विश्वास करते हैं, तब वह हमारा शरणस्थान और गढ़ बन जाता है। तो आइए हम अपनी समस्याओं के मध्य में परमेश्वर के न्याय से डरने के बजाए, उस दिन की ओर आशा से देखें।

अतः, चाहे हम व्यक्तिगत, राष्ट्रीय या वैश्विक आपदाओं का सामना करें, योएल की पुस्तक हमें यही सिखाती है कि हम पापों से पश्चात्ताप करें, न्याय के प्रति सतर्क रहें, और नई सृष्टि की ओर ताकते रहें। और यह सब इसलिए सम्भव है, क्योंकि हमारा परमेश्वर “अनुग्रहकारी, दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला, करुणानिधान है और दुख देकर हाथ रोक लेता है ” (2:13)। परमेश्वर की स्तुति हो!


1 https://www.bbc.com/hindi/india-52821673

Photo by Jen Theodore on Unsplash

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जॉनाथन जॉर्ज
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