कलीसिया का कार्य है कि विश्वासियों को सेवा कार्य हेतु तैयार करें और उन्हें सुसमाचार कार्य के लिए अन्य स्थानों पर भेजे। इसी कार्य को करने के लिए हमारी कलीसिया सक्रिय है और पिछले कई वर्षों में कई भाईयों को, परिवारों को सेवा हेतु तैयार करके उन्हें भेजा गया है। हम इस कार्य को कर रहे हैं और भविष्य में और भी अधिक लोगों को सेवा कार्य हेतु भेजने के लिए तैयार कर रहे हैं। किन्तु जब कलीसिया से भाई/बहन सेवा कार्य हेतु बाहर अन्य स्थान पर जाते हैं तो ऐसे समय में जब वे हमारे साथ नहीं हैं तो कलीसिया को आवश्यकता है कि उन्हें भेज कर छोड़ ही न दें किन्तु उनका ध्यान रखें। आइये हम इन तीन प्रकार से इनकी चिन्ता कर सकते हैं:-
उनके लिए प्रार्थना करें। अपनी कलीसिया को छोड़ कर किसी अन्य स्थान पर परिवार को लेकर सेवा के लिए जाना सरल नहीं है। कलीसिया रुपी आत्मिक परिवार को छोड़ना, अपने मित्रों से दूर जाना कठिन है। किन्तु केवल इस उद्देश्य से लोग अन्य स्थान पर जाते हैं कि सुसमाचार का कार्य फैल सके। जो लोग पाप में हैं, यीशु को नहीं जानते हैं वे भी यीशु के पास आ सकें और अनन्त जीवन को प्राप्त करें। इसलिए हमें अवश्य ही अपनी प्रार्थनाओं में नियमित उन भाईयों/बहनों के लिए प्रार्थना करें। पति-पत्नी के आपस में सम्बन्ध के लिए प्रार्थना करें। उनकी सेवा के लिए प्रार्थना करें। उनके बच्चों के लिए प्रार्थना करें। प्रभु में दृढ़ होने, सुसमाचार से लिपटे रहने हेतु प्रार्थना करें। प्रार्थना करें कि प्रभु सुसमाचार के अवसर उपलब्ध कराए, कि वे लोगों के साथ वचन बाँट सकें। प्रार्थना करें कि वे सेवा कार्य को कठिन समय में भी सौभाग्य का कार्य समझें। उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करें। प्रभु उन्हें शैतान, शरीर और संसार से बचाए। इसके साथ ही आप उनसे प्रार्थना बिन्दुओं को माँग सकते हैं और उन बातों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।
उन्हें उत्साहित करें। जब लोग हमारी कलीसिया से दूर जाते हैं तो सम्भावना है कि हम अपनी व्यस्त दिनचर्या के मध्य उनसे बात न कर पाएँ। किन्तु हम इन परिवारों को समय समय पर फोन कर सकते हैं। उनके जीवन और सेवा के विषय में बात कर सकते हैं। उन्हें दुखों, संघर्षों के मध्य भी प्रभु के लिए समर्पित रहने के लिए उत्साहित कर सकते हैं। जब वे बीमार होते हैं तथा विभिन्न कठिन परिस्थितियों में हों तो वचन के द्वारा उन्हें उत्साहित करें और उनके प्रति अपनी चिन्ता, स्नेह को व्यक्त करें। उनके जाने के बाद भी उनके मित्र बने रहिए और उनके जीवन सम्बन्धित कठिन प्रश्न पूछिए। उनके हृदय से बात करें। उनकी परिस्थितियों को जानें और उनकी सहायता करें। जब आप उनके लिए प्रार्थना करते हैं, तो उन्हें मैसेज भेज सकते हैं। समय-समय पर उन्हें उनकी सेवा के लिए धन्यवाद दे सकते हैं और प्रभु की सेवा में लगे रहने के लिए उत्साहित कर सकते हैं। और यदि प्रभु अवसर देता है तो उनसे मिलने की योजना बनाएँ और उनकी आवश्यकता सम्बन्धी वस्तुएँ और यहाँ की उनकी स्मरणीय वस्तुओं को उनके लिए ले जाएँ। एक-दूसरे को उत्साहित करना ख्रीष्टीय जीवन की पहचान है (इब्रानियों 3:13; 10:24-25)।
उनकी आर्थिक सहायता करें। प्रभु की स्तुति हो कि हम कलीसियाई रीति से उदारता के साथ सेवा हेतु जाने वाले परिवारों के लिए जो कुछ भी आर्थिक सहयोग कर सकते हैं, हम करते हैं। सेवा के लिए गए लोगों के समक्ष विभिन्न प्रकार की आवश्यकताएँ हैं, बीमारी के मध्य हम उन्हें दवाईयों के लिए धन दे सकते हैं। परिवार के अन्य आवश्यकताओं के लिए थोड़ा सा भी हम सहायता कर सकें तो हम कर सकते हैं। उनसे बात करिए और यदि वे किसी विशेष आवश्यकता में हैं तो अवश्य ही उनकी सहायता करें और कलीसिया में अन्य लोगों से सहायता माँगिए। हम केवल शब्दों से ही प्रेम न दिखाएँ किन्तु हमें आवश्यकता है कि हम कार्यों को द्वारा प्रेम दिखाएँ (1 यूहन्ना 3:18)।
प्रभु जी का धन्यवाद हो कि कलीसिया में बहुत से भाई/बहन नियमित रीति से इस कलीसिया से भेजे गए परिवारों से फोन पर बात करते हैं, उन्हें स्मरण करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते हैं और आर्थिक रीति से उनकी सहायता किया है। प्रभु हम सबकी सहायता करे कि हम सुसमाचार के कार्य में सहयोग करें और जिन परिवारों को हमने सेवा कार्य के लिए भेजा है उन लोगों की हम वास्तव में चिन्ता करें और हर परिस्थितियों में सेवा कार्य में सहायता कर सकें।