वह उस वृक्ष के समान है जो जल-धाराओं के किनारे लगाया गया है, और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुर्झाते नहीं: इसलिए जो कुछ वह मनुष्य करता है वह उसमें सफल होता है। (भजन 1:3)
भजन 1:3 में की गई प्रतिज्ञा ख्रीष्ट की ओर कैसे संकेत करती है?
वह कहती है कि, “जो कुछ वह करता है, वह सफल होता है।” धर्मी लोग उन सब कार्यों में सफल होते हैं जिन्हें वे करते हैं। क्या यह बुद्धिहीनता है या गहन सत्य है?
इस जीवन में ऐसा अवश्य प्रतीत होता है कि दुष्ट लोग सफल होते हैं। “उस मनुष्य के कारण न कुढ़ जिसके कार्य सफल होते हैं, जो दुष्टता की युक्तियों को पूरी करता है” (भजन 37:7)। “न केवल दुराचारी सफल हुए, वरन् वे परमेश्वर की परीक्षा करते हैं और बच जाते हैं” (मलाकी 3:15)।
और इस जीवन में धर्मी प्रायः पीड़ित होते हैं और उनकी भलाई को दुर्व्यवहार से पुरस्कृत किया जाता है। “यदि हम अपने परमेश्वर का नाम भूल जाते . . . तो क्या परमेश्वर इसे जान नहीं जाता? . . . परन्तु हम तो तेरे लिए दिन भर घात किए जाते हैं हम वध होने वाली भेड़ों के समान समझे जाते हैं” (भजन 44:20-22)। भजनकार तो स्वयं यह जानते थे। हम ऐसी किसी बात पर आपत्ति नहीं व्यक्त कर रहे हैं जिन्हें वे पहले से नहीं जानते थे।
इसलिए जब भजनकार कहता है कि, “जो कुछ वह करता है, वह सफल होता है” तो ऐसा नहीं है कि वह बुद्धिहीन है। वह इस जीवन की अस्पष्टताओं के माध्यम से मृत्यु के बाद के जीवन की ओर संकेत कर रहा है, जहाँ हमारे द्वारा किए गए सब कार्यों की वास्तविक प्रभावकारिता — जो कि सच्ची समृद्धि है — प्रकट होगी।
पौलुस के सोचने की यही रीति थी।
सर्वप्रथम, वह मृत्यु पर ख्रीष्ट की विजय का उत्सव मनाता है। “हे मृत्यु, तेरी विजय कहाँ है? . . .परमेश्वर का धन्यवाद हो जो हमें प्रभु यीशु ख्रीष्ट के द्वारा विजयी करता है (1 कुरिन्थियों 15:55, 57)।
तब, वह इस निहितार्थ को निकालता है कि इस विजय के कारण विश्वासियों द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य सफल होगा। “इसलिए, हे मेरे भाइयो . . . तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है” (1 कुरिन्थियों 15:58)। जब कोई कार्य व्यर्थ नहीं होता है, तो वह सफल होता है।
क्योंकि यीशु हमारे स्थान पर मरा, उसने इस बात की निश्चयता दी कि प्रत्येक भला कार्य सफल होगा — अभी या बाद में। “जो जैसा अच्छा कार्य करेगा, वह प्रभु से वैसा ही प्रतिफल पाएगा” (इफिसियों 6:8)। “धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें . . . आनन्दित और मग्न हो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान है” (मत्ती 5:11-12)। यहाँ निन्दित। वहाँ पुरस्कृत।
पुराने नियम में जो बुद्धिहीन प्रतीत होता है (“जो कुछ वह करता है, वह सफल होता है”) वह पूर्णतया ख्रीष्ट के कार्य और उसके पुनरुत्थान की वास्तविकता की ओर संकेत करता है। जैसा कि कैथरीना वॉन श्लेगल (Katharina von Schlegel) के उस महान गीत “Be Still My Soul-अर्थात् शान्त हो, मेरा प्राण” के शब्द इस प्रकार कहते हैं, “शान्त हो, मेरा प्राण: तेरा यीशु लौटा सकता है / अपने स्वयं की परिपूर्णता से उस सब को जो वह ले लेता है।”