जब यीशु गदरेनियों के प्रदेश में दुष्टात्माओं से भरे व्यक्ति से मिला, तो दुष्टात्माएँ चिल्ला कर बोलीं, “हे परमेश्वर के पुत्र, हमारा तुझ से क्या काम? क्या तू यहाँ हमें समय से पहले यातना देने आया है?” (मत्ती 8:29)
दुष्टात्माओं ने यहाँ एक रहस्य को सीखा था। वे जानते थे कि उनका विनाश निश्चित था। वे जानते थे कि परमेश्वर का पुत्र विजयी होगा। परन्तु जब तक ऐसा नहीं हुआ तब तक वे नहीं जानते थे कि ख्रीष्ट अन्तिम पराजय की घड़ी से पहले आने वाला था।
लड़ाई में अपनी सैन्यदल की अगुवाई करने के लिए ख्रीष्ट युद्ध के अन्त की प्रतीक्षा नहीं करेगा। उसने शैतान के क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी सेना की अगुवाई करना प्रारम्भ कर दिया है। उसने साहसी बचाव कार्यों को करने के लिए “जीवन-दल” को प्रशिक्षित किया है। अन्तिम निर्णायक विजय से पूर्व ख्रीष्ट ने अनेक नीतिगत विजयों की योजना बनाई है।
इसके फलस्वरूप युद्ध-कालीन मानसिकता यह है: क्योंकि शैतान का विनाश निश्चित है, और वह यह जानता है, तो जब वह हमें अपने पीछे चलने के लिए प्रलोभित करता है तब हम उसे सर्वदा इस बात का स्मरण दिला सकते हैं। हम उस पर हँसकर कह सकते हैं, “तुम पागल हो। कौन हारे हुए व्यक्ति के साथ सेना में जुड़ना चाहता है?!”
कलीसिया तो “इस संसार के ईश्वर” से स्वतन्त्र की गई शत्रु है (2 कुरिन्थियों 4:4)। हम छापामार सैनिक और उस राज्य के आलोचक हैं। हम “आकाश में शासन करने वाले अधिकारी”(इफिसियों 2:2) के विद्रोही राज्य के विरुद्ध विद्रोही हैं।
यह कार्य सुरक्षित नहीं है। परन्तु यह रोमाँच से भरपूर है। इस कार्य में अनेक लोग अपने जीवनों को खो देते हैं। शैतान की सेनाएँ सर्वदा हमारी क्रान्तिकारी गतिविधियों की खोज में रहती हैं। ख्रीष्ट ने उन सभी के लिए पुनरुत्थान का आश्वासन दिया है जो मृत्यु तक लड़ते रहते हैं। परन्तु उसने शत्रु के क्षेत्र में आराम या संसार द्वारा स्वीकृति या समृद्धि का आश्वासन नहीं दिया है।
बहुत लोगों ने सेनाध्यक्ष के लिए शत्रु के क्षेत्र में कार्य करते हुए सहर्ष अपने जीवनों को दे दिया है। मैं इससे उत्तम जीने — या मरने की रीति को नहीं जानता हूँ!