क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारी निर्बलताओं में हमसे सहानुभूति न रख सके। वह तो सब बातों में हमारे ही समान परखा गया, फिर भी निष्पाप निकला। (इब्रानियों 4:15)
मैंने कभी भी किसी को यह कहते हुए नहीं सुना है कि, “मेरे जीवन की वास्तविक गहन शिक्षाएँ शान्ति और सुख के समय में आयी हैं।” किन्तु मैंने दृढ़ सन्तों को यह कहते हुए सुना है कि, “परमेश्वर के प्रेम की गहराइयों को समझने और उसके साथ गहन सम्बन्ध में बढ़ने में मेरी प्रत्येक महत्वपूर्ण उन्नति, दुख के माध्यम से आई है।”
यह एक गम्भीर बाइबलीय सत्य है। उदाहरण के लिए: “[ख्रीष्ट] के कारण मैंने सब वस्तुओं की हानि उठाई है और उन्हें कूड़ा समझता हूँ जिस से मैं ख्रीष्ट को प्राप्त करूँ” (फिलिप्पियों 3:8)। इसको दूसरो शब्दों में कहें तो: दुःख नहीं तो लाभ नहीं। या फिर:
अब सब कुछ को बलिदान होने दें, यदि इससे मुझे और अधिक ख्रीष्ट प्राप्त होता है।
यहाँ एक और उदाहरण है: “पुत्र होने पर भी [यीशु] ने दुख सहकर आज्ञा पालन करना सीखा” (इब्रानियों 5:8)। यही पुस्तक बताती है कि उसने कभी पाप नहीं किया (इब्रानियों 4:15)।
तो आज्ञाकारिता सीखने का अर्थ, अनाज्ञाकारिता से आज्ञाकारिता में तुरन्त पलटना नहीं है। इसका अर्थ है आज्ञाकारिता के अनुभव में परमेश्वर के साथ गहराई में बढ़ते रहना। इसका अर्थ है परमेश्वर के प्रति समर्पण की गहराइयों के ऐसे अनुभव करना जो किसी और रीति से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। दु:ख के माध्यम से यही आया है। बिना दु:ख के लाभ नहीं मिलता है।
सैमुअल रदरफोर्ड ने कहा कि जब उन्हें दुखों के तलघर में डाला गया, तो उन्हें स्मरण आया कि महान् राजा सदैव अपना दाखरस वहीं रखता था। चार्ल्स स्पर्जन ने कहा, “जो लोग दु:ख के समुद्र में डुबकी लगाते हैं वे निराले मोतियों को ऊपर लेकर आते हैं।”
क्या आप अपने प्रिय से अधिक प्रेम तब नहीं करते हैं जब आपको कुछ विचित्र पीड़ा का आभास होता है जिससे आपको प्रतीत होता है कि आपको कर्करोग है? हम वास्तव में विचित्र प्राणी हैं। यदि हमारे पास स्वास्थ्य और शान्ति और प्रेम करने का समय है, तो प्रेम एक साधारण और विचारहीन बात प्रतीत हो सकती है। किन्तु यदि हम मर रहे होते हैं, तो प्रेम अवर्णनीय आनन्द की एक गहरी और धीमी नदी बन जाती है, और हम इसके त्यागे जाने को नहीं सह सकते हैं।
इसलिए भाइयो और बहनो, “जब तुम विभिन्न परीक्षाओं का सामना करते हो तो इसे बड़े आनन्द की बात समझो” (याकूब 1:2)।