हम अपनी प्रार्थना में प्रायः परमेश्वर की स्तुति करते हैं, उसे धन्यवाद देते हैं या फिर कुछ माँगते हैं। स्तुति, निवेदन या धन्यवाद जैसी प्रार्थना करने के सम्बन्ध में बाइबल स्वयं हमारी अगुवाई करती है। यद्यपि बाइबल को अपनी प्रार्थना में उपयोग करना बहुत सरल है, फिर भी हम सामान्य-तौर पर अपनी प्रार्थना में बाइबल का अधिक उपयोग नहीं कर पाते हैं। बाइबल से प्रार्थना करना हमारे लिए सरल होगा यदि हम यह जान लें कि बाइबल का उपयोग क्यों और कैसे करना है तथा इससे क्या लाभ होगा। यह लेख इन्हीं बातों को जानने में हमारी सहायता करेगा।
प्रार्थना में बाइबल के उपयोग की आवश्यकता
प्रार्थना करते समय प्रायः लोगों के पास वचन का आधार न होने के कारण उनके मन भटकने लगते हैं। प्रभु के एक सेवक जॉन पाइपर कहते हैं कि “यदि प्रार्थना के समय मेरा मार्गदर्शन करने के लिए वचन मेरे सामने नहीं है तो मैं उन्हीं रटी-रटाई बातों के लिए निरन्तर प्रार्थना करता हूँ तथा मेरा मन भटकने लगता है”। ऐसा केवल उनके साथ ही नहीं परन्तु हम सबके साथ होता है, क्योंकि जब हमारी प्रार्थना वचन पर आधारित नहीं होती है तो हम अर्थहीन बातों को दोहराते हैं। प्रभु यीशु मसीह अपने चेलों को प्रार्थना के विषय में सिखाते हुए कहते हैं कि “जब तू प्रार्थना करे तो गैरयहूदियों की तरह अर्थहीन बातें न दोहरा” (मत्ती 6:7)। अतः अपनी प्रार्थना को हमें परमेश्वर के वचन पर आधारित रखना चाहिए ताकि वह अर्थपूर्ण और परमेश्वर को ग्रहणयोग्य हो।
इसके साथ ही ध्यान रखें कि प्रार्थना के मुख्य केन्द्र में हमें नहीं परन्तु परमेश्वर को होना चाहिए। जब हमारी आवश्यकताएं परमेश्वर से बड़ी हो जाती हैं तब हमारी प्रार्थना परमेश्वर पर नहीं परन्तु हम पर केन्द्रित होती जाती है। इसके विपरीत जब हमारी प्रार्थना वचन से निकलकर आती है तो उसके केन्द्र में परमेश्वर होता है। इसीलिए वचन पढ़ते समय ध्यान दें कि कैसे परमेश्वर प्रार्थना के केन्द्र में है (1शमूएल 2:1-10, भजन 90, कुलुस्सियों 1:9-14)? इतना ही नहीं स्वयं प्रभु यीशु मसीह द्वारा सिखाई गई प्रार्थना पर भी ध्यान दें (मत्ती 6:9-10)। अतः परमेश्वर को अपनी प्रार्थना के केन्द्र में रखने के लिए बाइबल का उपयोग करें।
प्रार्थना में बाइबल के उपयोग का तरीका
प्रार्थना में हम बाइबल का उपयोग विभिन्न प्रकार से कर सकते हैं। सबसे पहले आप बाइबल का कोई भी खण्ड पढ़िए तथा खण्ड की मुख्य बात पर उसके सन्दर्भ में विचार कीजिए। पढ़े गए खण्ड पर मनन करते समय ध्यान दीजिए कि यह खण्ड आज हमारे ऊपर कैसे लागू होता है। बाइबल के बहुत से ऐसे खण्ड हैं जिन्हें हम सीधे-सीधे अपने ऊपर लागू कर सकते हैं। उदाहरण के लिए कुलुस्सियों 3:12 में पौलुस कहता है कि “अपने हृदय में सहानुभूति, करुणा, दीनता, विनम्रता और सहनशीलता धारण करो” इस पद को हम अपने ऊपर सीधे-सीधे लागू कर सकते हैं। परन्तु जब मत्ती 5:29 में यीशु मसीह कहते हैं कि “यदि तेरी दाहिनी आँख तुझ से पाप करवाए तो उसे निकालकर दूर फेंक दे”, तो हम इसको सीधे अपने ऊपर लागू नहीं कर सकते हैं। इस पद के आधार पर हम यह प्रार्थना नहीं करेंगे कि प्रभु मेरी सहायता कीजिए कि मैं सच में अपनी आँख निकाल सकूं। परन्तु इसके विपरीत हम किसी स्त्री को कामुकता से न देखने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। अतः जब भी हम बाइबल के किसी भाग को पढ़ते हैं तो उसे अपने सन्दर्भ में लागू करते हुए उसके आधार पर प्रार्थना करें। प्रार्थना के जीवन में ऐसा करना अनेक प्रकार से लाभदायक होगा।
प्रार्थना में बाइबल के उपयोग का लाभ
प्रार्थना में बाइबल के उपयोग करने का पहला लाभ यह होगा कि प्रार्थना के लिए हमारे पास एक उत्तम विषय-वस्तु होगी। इसी के साथ ही हम प्रार्थना में व्यर्थ बातों को दोहराने से बचेंगे तथा वचन का नियमित उपयोग करने से हम परमेश्वर के वचन को अपने मन में बसने देंगे। इतना ही नहीं ऐसा करने के द्वारा हम प्रभु के वचन के आधार पर उससे बात करने पाएंगे। और जब हम वचन के आधार पर प्रार्थना करेंगे तब हम परमेश्वर की इच्छानुसार प्रार्थना करेंगे। इसके साथ ही यदि हमारी प्रार्थना परमेश्वर के वचन से ओत-प्रोत होगी तो वह सांसारिक बातों से अधिक आत्मिक बातों पर केन्द्रित होगी। और ऐसा करने से हमारी प्रार्थना में आशा और निश्चयता पाई जाएगी।
अन्त में, रोमियों 8:14 में परमेश्वर का वचन हमसे कहता है कि “वे सब जो परमेश्वर के आत्मा द्वारा चलाए जाते हैं, वे परमेश्वर के सन्तान हैं”। और यदि हम सन्तान हैं तो हमें प्रार्थना के लिए निश्चय ही समय निकालना चाहिए, ताकि हम परमेश्वर पिता से बात कर सकें। और परमेश्वर से बात करने के लिए हमें उसके वचन की आवश्यकता है। इसलिए हमें अपनी प्रार्थना को वचन पर आधारित बनाने के लिए, बाइबल में परमेश्वर के सेवकों द्वारा की गई प्रार्थनाओं पर मनन करना चाहिए, ताकि प्रार्थना के समय हमारे मन न भटकें (इफिसियों 3:14-21, फिलिप्पियों 1:9-11)।
प्रार्थना में केवल अपनी पसन्द के ही कुछ खण्डों का उपयोग न करें, परन्तु सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में से प्रार्थना करें। “क्योंकि सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है” (2 तीमुथियुस 3:16)।