फिर भी परमेश्वर के अनुग्रह से अब मैं जो हूँ सो हूँ। मेरे प्रति उसका अनुग्रह व्यर्थ नहीं ठहरा, परन्तु मैंने उन सबसे बढ़कर परिश्रम किया, फिर भी मैंने नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह ने मेरे साथ मिलकर किया। (1 कुरिन्थियों 15:10)
पौलुस ने इस बात का आभास किया कि इस पद के पहले भाग को समझने में त्रुटि की जा सकती है: “मैंने उन सबसे पढ़कर परिश्रम किया।” इसलिए वह आगे यह कहता है, “फिर भी मैंने नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह ने मेरे साथ मिलकर किया।”
पौलुस यह नहीं कहता है कि वह भूतकाल में हुए अनुग्रह के प्रति कृतज्ञ होने के कारण आज्ञाकारी है। वह कहता है कि इसका कारण क्षण प्रति क्षण नित्य आते रहने वाला अनुग्रह है। वह आवश्यकता के प्रत्येक क्षण में परमेश्वर के भविष्य-के-अनुग्रह के आने की प्रतिज्ञा पर भरोसा रखता है। पौलुस द्वारा प्रति क्षण ख्रीष्ट की आज्ञापालन करने की प्रत्येक मनसा और प्रयास में, वह अनुग्रह ही था जो उस मनसा और प्रयास को उत्पन्न करने का कार्य कर रहा था। पौलुस ने केवल भूतकाल के अनुग्रह के प्रति कृतज्ञता के कारण ही नहीं, परन्तु क्षण प्रति क्षण आने वाले प्रतिज्ञात अनुग्रह पर भरोसा रखने के कारण अपने कार्य को पूरा किया। पौलुस इस बात पर बल देना चाहता है कि नित्य आने वाला परमेश्वर का अनुग्रह उसके कार्य का निर्णायक कारण है।
क्या वास्तव में यही लिखा है? क्या यह मात्र यही नहीं कहता है कि परमेश्वर के अनुग्रह ने पौलुस के साथ मिलकर कार्य किया। नहीं, यह इससे कहीं अधिक कहता है। हमें इन शब्दों को स्वीकार करना होगा, “परन्तु फिर भी मैं नहीं।” पौलुस परमेश्वर के क्षण-प्रति-क्षण में होने वाले अनुग्रह की इस प्रकार बढ़ाई करना चाहता है कि यह स्पष्ट हो जाए कि वह स्वयं इस कार्य का निर्णायक कर्ता नहीं है।
फिर भी, वह इस कार्य का कर्ता है: “मैंने उन सब से बढ़कर परिश्रम किया है।” उसने कार्य किया। परन्तु उसने कहा कि यह परमेश्वर का अनुग्रह था “मेरे प्रति”।
यदि हम इस पद के सभी भागों को बने रहने देते हैं, तो अन्तिम परिणाम यह होगा: पौलुस के कार्य में अनुग्रह निर्णायक कर्ता है। जबकि पौलुस भी अपने कार्य का कर्ता है, अनुग्रह पौलुस के कार्य की सक्षमकारी शक्ति बनने के द्वारा निर्णायक कर्ता बन जाता है।
मैं इसको इस प्रकार समझता हूँ कि जब पौलुस ने प्रतिदिन की सेवकाई के बोझ का सामना किया, तो उसने अपना सिर झुकाया और स्वीकार किया कि जब तक उस दिन के कार्य के लिए भविष्य-का-अनुग्रह नहीं दिया जाता, तब तक वह इसको करने में सक्षम नहीं होगा।
सम्भवतः उसने यीशु के वचनों को स्मरण किया होगा, “मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:5)। इसलिए उसने उस दिन के लिए भविष्य-के-अनुग्रह हेतु प्रार्थना की और उसने इस प्रतिज्ञा पर भरोसा किया कि यह शक्ति के साथ आएगा। “मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित ख्रीष्ट यीशु में है, तुम्हारी प्रत्येक आवश्यकता को पूरी करेगा” (फिलिप्पियों 4:19)।
फिर उसने अपनी पूरी सामर्थ्य से कार्य किया।