जब सब आपको त्याग दें

आज सवेरे मैं इन भव्य एवं हृदय विदारक शब्दों के विषय में सोच विचार कर रहा था। पौलुस रोम के बन्दीगृह में है। जहाँ तक हम जानते हैं, वह उसके बाद कभी स्वतन्त्र नहीं किया गया। उसका अन्तिम पत्र इस प्रकार समाप्त होता है। 

विचार कीजिए और अचम्भित होइये

वह त्यागा हुआ है: “किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया।” वह एक वृद्ध पुरुष है। एक विश्वासयोग्य दास। घर से दूर विदेशी नगर में है। शत्रुओं से घिरा हुआ। मृत्यु के जोखिम में। क्यों? उत्तर: जिससे कि वह हमारे निरुत्साहित, या भयपूर्ण या अकेलेपन का अनुभव करने वाले प्राणों के लिए इस अनमोल वाक्य को लिख सके: “परन्तु प्रभु मेरे साथ खड़ा हुआ!”

ओह, मैं उन शब्दों से कितना प्रेम करता हूँ! जब आप अपने घनिष्ट मित्रों द्वारा त्याग दिए जाते हैं, तो क्या आप परमेश्वर के विरुद्ध चिल्लाते हैं? तो क्या वास्तव में आपके जीवन में जो लोग हैं क्या वह आपके ईश्वर हैं? या क्या आप इस भव्य सत्य में साहस रखते हैं कि: “युग के अन्त तक सदैव मैं तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) — भले ही आपको कोई भी त्याग दे? क्या आप इस अटल प्रतिज्ञा से अपने हृदय को दृढ़ करते हैं: “मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा और न ही कभी त्यागूँगा” (इब्रानियों 13:5)?

तो आइये हम कहें, “प्रभु मेरे साथ खड़ा हुआ!” 

प्रश्न: 2 तीमुथियुस 4:18 में कौन-सी बात संकट में थी? उत्तर: कि सम्भवतः पौलुस प्रभु के स्वर्गीय राज्य को प्राप्त नहीं करेगा! परन्तु उस संकट के विरोध में पौलुस कहता है, “प्रभु मुझे . . . अपने स्वर्गीय राज्य में सुरक्षित पहुँचाएगा।”

प्रश्न: पौलुस द्वारा स्वर्गीय राज्य की प्राप्ति कैसे संकट में पड़ी? उत्तर: “दुष्कर्म।” “प्रभु मुझे प्रत्येक दुष्कर्म से छुड़ाएगा और अपने स्वर्गीय राज्य में सुरक्षित पहुँचाएगा।”

प्रश्न: पौलुस द्वारा स्वर्गीय राज्य की प्राप्ति को एक दुष्कर्म संकट में कैसे डाल सकता था? उत्तर: अनाज्ञाकारिता के माध्यम से उसे ख्रीष्ट के प्रति अपनी निष्ठा को त्यागने के लिए प्रलोभन देने के द्वारा।

प्रश्न: क्या यह प्रलोभन “सिंह का मुँह” था जिससे उसे बचाया गया था?

उत्तर: हाँ। “तुम्हारा शत्रु शैतान गर्जने वाले सिंह की भाँति इस ताक में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर उसका विरोध करो” (1 पतरस 5:8-9)।

प्रश्न: तो इस बात के लिए कौन महिमा प्राप्त करता है कि पौलुस शैतान के इस प्रलोभन के आगे नहीं झुका, वरन् विश्वास और आज्ञाकारिता में अन्त तक टिका रहा? उत्तर: “उसकी [प्रभु की] महिमा और प्रभुता युगानुयुग होगी” (1 पतरस 5:10)। “उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन” (2 तीमुथियुस 4:18)।

प्रश्न: क्यों? क्या यह पौलुस नहीं था जो दृढ़ बना रहा? उत्तर: “प्रभु मेरे साथ खड़ा हुआ और उसने मुझे सामर्थ्य दी थी!” 

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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