आलसी मनुष्य कहता है, “बाहर शेर खड़ा है, गलियों में तो मैं मारा जाऊँगा !” (नीतिवचन 22:13)
मैंने यह अपेक्षा नहीं की थी कि नीतिवचन यह कहेगा। मैं तो अपेक्षा करता कि वह यह कहता, “कायर मनुष्य कहता है, ‘बाहर शेर खड़ा है, गलियों में तो मैं मारा जाऊँगा!’” परन्तु यह “आलसी मनुष्य” कहता है, न कि “कायर मनुष्य।” इसलिए यहाँ नियन्त्रित करने वाली भावना आलस्य है, डर नहीं।
परन्तु आलस्य का गलियों में शेर के खड़े होने के जोखिम से क्या सम्बन्ध है? हम ऐसा नहीं कहा करते हैं, “यह मनुष्य अपना कार्य करने के लिए बहुत आलसी है क्योंकि बाहर एक शेर खड़ा है।”
बात यह है कि आलसी मनुष्य कार्य न करने को उचित ठहराने के लिए काल्पनिक परिस्थितियों का निर्माण करता है और इस प्रकार वह ध्यान को अपने आलस्य के अवगुण से हटाकर शेरों के होने के जोखिम पर लगाता है। कोई भी उसको केवल इस कारण से कि वह आलसी है दिन भर घर पर रहने की स्वीकृति नहीं देगा। परन्तु वे उसे छूट दे सकते हैं यदि गली में शेर खड़ा हो।
इससे हमें एक बड़ी बाइबलीय सीख लेनी चाहिए कि हमारे हृदय अपनी इच्छाओं को सही ठहराने के लिए हमारे मस्तिष्कों का उपयोग करते हैं। अर्थात्, हमारी सबसे गहरी इच्छाएँ हमारे मस्तिष्कों के सचेतन कार्य करने से पहले होती हैं और वे मस्तिष्क को इस रीति से बातों को समझने के लिए प्रभावित करती हैं जो उन इच्छाओं को सही ठहराए, भले ही वे त्रुटिपूर्ण हों।
आलसी मनुष्य यही कर रहा है। उसकी इच्छा है कि वह घर में रहे और कार्य न करे। घर में रहने के लिए कोई अच्छा कारण नहीं है। इसलिए, वह क्या करता है? क्या वह अपनी बुरी इच्छा — अर्थात् अपने आलस्य पर प्रबल होता है? नहीं, वह अपनी इच्छा को उचित ठहराने के लिए अपने मस्तिष्क में कृत्रिम परिस्थितियों को बनाता है।
यीशु ने कहा, “ज्योति जगत में आ चुकी है, परन्तु मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक प्रिय जाना, क्योंकि उनके कार्य बुरे थे” (यूहन्ना 3:19)। हम अन्धकार से इसलिए प्रेम करते हैं जिससे कि हम गुप्त में वही करते रहें जो हम चाहते हैं। इस स्थिति में, मस्तिष्क अन्धकार का निर्माणशाला बन जाता है — अर्ध-सत्यों, द्वि-अर्थता, कुतर्क, छल, और झूठ के एक झरने के समान — जिससे कि हृदय की बुरी इच्छाएँ प्रकट होने और नाश होने से बची रहें।
इस बात पर ध्यान दें और बुद्धिमान बनें।