क्या मैं जीवन में असफल हो रहा हूँ? क्या मैं सफलता प्राप्त कर रहा हूँ? किन्तु मुख्य प्रश्न तो यह है कि मैं अस्तित्व में ही क्यों हूँ?
ये प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हैं, हम सब इन प्रश्नों को पूछते हैं, और प्रभु का धन्यवाद हो कि बाइबल हमें इन प्रश्नों का उत्तर निर्णायक रूप में देने में सहायता करती है।
हम परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं कि हम संसार में उसके स्वरूप को प्रदर्शित करें। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है। उत्पत्ति 1:27: “और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा। अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने उसको सृजा। उसने नर और नारी करके उनकी सृष्टि की।”
परन्तु वास्तव में मेरे जीवन के लिए इसका क्या अर्थ है?
इस प्रकार के सरल वाक्य के सम्पूर्ण अर्थ को समझने का प्रयास आपको एक लम्बी खोज में डाल सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने के अर्थ के साथ अनेक उचित उत्तर भी प्राप्त होते हैं।
जॉन पाइपर आस्क पास्टर जॉन एपिसोड (सन्देश) में कहते हैं कि “परम्परागत रूप से लोगों ने यह कहा है कि परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने का अर्थ है हमारी नैतिकता, हमारा उचित और अनुचित के प्रति बोध होना। हमारी तर्कशक्ति, अर्थात् हमारी तर्क करने की क्षमता। हमारी आत्मिकता, अर्थात् परमेश्वर के साथ सम्बन्ध जोड़ने की क्षमता। हमारी सौन्दर्यबोधी समझ — आपको बन्दरों को मोना लीसाओं के चित्र बनाते हुए नहीं पाएँगे। हमारी न्यायिक समझ, सम्पूर्ण विधि प्रणाली, उचित और अनुचित तथा न्याय और अन्याय की समझ है। और मेरे विचार से, स्पष्ट रीति से, ये सभी बातें सत्य हैं और परमेश्वर के स्वरूप में होने के अर्थ के विभिन्न आयाम हैं” (एपिसोड [सन्देश] 153)।
और ये सभी बातें हमें यह समझने में सहायता करती हैं कि हम सम्पूर्ण मानव जीवन की गरिमा के लिए क्यों संघर्षरत हैं, जिसमें अजन्मे, विकलांग, मरणासन्न रूप से बीमार और वृद्ध भी सम्मिलित हैं।
आधारभूत बात यह है कि स्वरूप धारण की अनेक उचित परिभाषाएँ हैं क्योंकि हम एक अनन्त और महिमामयी रूप से बहुगुणी परमेश्वर के द्वारा बनाए गए अद्वितीय तथा जटिल प्राणी हैं।
किन्तु जो बात मैं विशेष रूप से रूचिकर पाता हूँ वह यह है कि कैसे पास्टर जॉन एक अर्थ पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो सम्भवता इसकी सरलता के कारण प्रायः छूट जाता है। परन्तु इस बिन्दु को खोजने के लिए, केवल एक ही स्थान नहीं है, न ही स्वरूप धारण पर केवल एक पुस्तक का अध्याय है। स्वरूप-धारक के रूप में जैसे वह हमारी भूमिका को समझाते हैं यह सुसंगत है, परन्तु यह जॉन पाइपर के लेखों, पुस्तकों के खण्डों में, कथनों, साक्षात्कारों, और परिचयों में भी फैला हुआ है। मैं स्वरूप-धारण करने वाले चित्र को एकत्रित करने तथा दृढ़ता से एक साथ जोड़ने का प्रयास करूँगा।
महिमा फैलाने वाले
सबसे पहले और आधारभूत रूप से, हमारे सबसे मानवीय रूप में परमेश्वर के स्वरूप को प्रदर्शित करने का अर्थ यह है कि, हम (महिमा) फैलाने वाले हैं। सैम क्रैब्री की पुस्तक प्रैक्टिसिंग अफर्मेशन की प्रस्तावना में पाइपर लिखते हैं: “परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने का अर्थ यह है कि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप को प्रदर्शित करने के लिए ठहराए गए हैं। स्वरूप यही कार्य करते हैं। और यीशु द्वारा छुड़ाए जाने और हमारे सृष्टिकर्ता के स्वरूप के अनुसार नये सिरे से बनाए जाने का उद्देश्य, इस नियति को पुनः प्राप्त करना है” (7)।
पतित मानवता में भी परमेश्वर का स्वरूप (इमागो डेइ) बना रहता है, किन्तु एक क्षतिग्रस्त और टूटी हुई क्षमता में। छुटकारा खोई हुई महिमा को कुछ स्तर तक पुनः वापस लाता है और प्रसार को बढ़ाता है।
इसके बाद, पाइपर अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक डिज़ायरिंग गॉड में समझाते हैं: “ इस स्थल के अनुसार [उत्पत्ति 1:26-27], सृष्टि मनुष्य के लिए अस्तित्व में है। किन्तु जब से परमेश्वर ने मनुष्य को अपने समान बनाया है, संसार पर मनुष्य का प्रभुत्व और मनुष्य द्वारा संसार को भरना परमेश्वर के — स्वरूप का—प्रदर्शन है। इसलिए, परमेश्वर का उद्देश्य यह था, कि मनुष्य ऐसा कार्य करे कि वह अन्तिम प्रभुत्व रखने वाले, परमेश्वर को प्रतिबिम्बित करे। मनुष्य को स्वरूप धारक का उच्च पद दिया गया है, इसलिए नहीं कि वह अभिमानी और स्वशासित हो जाए (जैसा कि उसने पतन में करने का प्रयास किया था), परन्तु इसलिए कि वह अपने सृष्टिकर्ता की महिमा को प्रतिबिम्बित करे, जिसका स्वरूप वह धारण किए हुए है। इसलिए, सृष्टि में परमेश्वर का उद्देश्य अपनी महिमा से पृथ्वी को भरना था। उदाहरण के लिए गिनती 14:21 इस बात को स्पष्ट किया गया है, जहाँ प्रभु इस प्रकार कहता है, ‘सारी पृथ्वी यहोवा की महिमा से सचमुच परिपूर्ण हो जाएगी,’ और यशायाह 43:7 में, जहाँ पर परमेश्वर इस प्रकार अपने लोगों को संबोधित करता है ‘जिसको मैंने अपनी महिमा के लिए सृजा है’” (314)।
स्वरूप धारक महिमा फैलाने वाले होते हैं। परन्तु यह अभी भी अमूर्त है और इसे और अधिक ठोस बनाया जा सकता है।
कंचे (समानता)
पाइपर ए होली एम्बिशन (2011) पुस्तक में प्रकाशित कुछ खण्डों में कंचे के रूपक के द्वारा अपनी बात को स्पष्ट करते हैं। वहाँ पाइपर कहते हैं:
सैकड़ों लोगों के द्वारा परमेश्वर के स्वरूप (इमागो डेइ) पर पुस्तकें लिखी गई हैं, जैसा कि कहा जाता है। यह एक बहुत बड़ा विषय है।
मैं सब विवादों से बचूँगा और कुछ बातों को अधिक सरलता से कहूँगा, और मुझे यह उतना ही गहरा प्रतीत होता है: स्वरूप (मूर्तियाँ) प्रतिबिम्बित करने के लिए बनाए जाते हैं। सही है ना? आप कभी भी किसी वस्तु के चित्र को क्यों लगाते हैं? इसको प्रतिबिम्बित करने के लिए!
आप स्टालिन की मूर्ति लगाते हैं, आप चाहते हैं कि लोग स्टालिन को देखें और स्टालिन के विषय में सोचें। आपने संस्थापक पिताओं को स्मरण दिलाने के लिए जॉर्ज वाशिंगटन की एक प्रतिमा लगाई। चित्र (स्वरूप) प्रतिबिम्बित करने के लिए बनाए जाते हैं। इसलिए यदि परमेश्वर ने हमें अन्य सब पशुओं से विपरीत, अपने स्वरूप में बनाया है, विस्तृत रूप से इसका जो कुछ भी अर्थ हो, इसका यह अर्थ स्पष्ट है: परमेश्वर वास्तविकता है और हम स्वरूप हैं, चित्र (स्वरूप) वास्तविकता प्रकट करने के लिए बनाए जाते हैं।
परमेश्वर ने मनुष्य को क्यों बनाया? परमेश्वर को प्रदर्शित करने के लिए! उसने छोटे-छोटे स्वरूपों को बनाया जिससे कि वे बात करें और कार्य करें और अनुभव करें जो प्रकट करे कि परमेश्वर कैसा है। अतः लोग आपको देखेंगे जिस प्रकार से आप व्यवहार करते हैं, आपके सोचने के तरीके को देखेंगे, जिस प्रकार से आप अनुभव करते हैं, और कहेंगे, “परमेश्वर को महान होना चाहिए, परमेश्वर को वास्तविक होना चाहिए।” इसीलिए आप अस्तित्व में हैं।
परमेश्वर ने आपको अपने आप में एक अन्त के रूप में नहीं सृजा है। (परमेश्वर ने केवल आपको बनाने के लिए ही सृष्टि नहीं की।) वह अन्तिम लक्ष्य है, और आप उसको पाने का साधन हैं। और इस प्रकार के शुभ संदेश का कारण यह दिखाने का सबसे उत्तम ढंग है कि परमेश्वर असीम रूप से मूल्यवान है, उसमें सर्वोच्च रूप से प्रसन्न होना है। यदि परमेश्वर के लोग परमेश्वर से ऊब गए हैं, तो वे वास्तव में बुरे स्वरूप हैं। परमेश्वर अपने विषय में दुखी नहीं है। वह असीम रूप से अपनी महिमा में आनन्दित है। (41)
हम पृथ्वी पर उसकी उपस्थिति का प्रदर्शन करने के लिए परमेश्वर की समानता में बनाए गए हैं। यहाँ से चर्चा में लाने के लिए एक और उलझाने वाली बात (पहेली का भाग) है।
दर्पण (प्रतिबिम्बित)
पिछले ए पी जे (आस्क पास्टर जॉन) एपिसोड # 153 में, पाइपर ने फिर से मूर्तियों के विषय में बात करते हुए, पूछा, “इसका क्या अर्थ होगा यदि आप स्वयं की सात अरब मूर्तियाँ बनाते हैं और उन्हें सम्पूर्ण संसार में रखते हैं?” इसका अर्थ यह होगा कि आप चाहते हैं कि लोग आप पर ध्यान दें”
फिर वह कंचों की बात से दर्पणों की बात पर आते हैं, यह समझाने के लिए कि हम परमेश्वर को कैसे प्रतिबिम्बित करते हैं:
मेरे मन में यह चित्र है। मैं एक दर्पण के समान बनाया गया था। और एक दर्पण जिसको स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित करने के लिए ऊपर की ओर संकेत करते हुए, 45-डिग्री पर होना चाहिए था, जिससे कि जैसे ही परमेश्वर इस पर 45-डिग्री के कोण पर दिखाई दे, यह उछल जाए और 90-डिग्री घूम जाए और बाहर संसार में प्रतिबिम्बित हो जाए।
पतन में, शैतान ने मुझे फुसलाया कि मेरा स्वरूप परमेश्वर के स्वरूप से अधिक सुन्दर है, और इसलिए मैं दर्पण को पलट देता हूँ। अब उसके पीछे का काला भाग परमेश्वर की ओर है। यह कुछ भी प्रतिबिम्बित नहीं करता है। इसके विपरीत, दर्पण भूमि पर स्वयं के आकार में एक परछाई को फेंकता है। और तब से हम परमेश्वर से अधिक स्वयं को महत्व दे रहे हैं।
और उद्धार में, दो बातें होती हैं। दर्पण घूम जाता है और हम पुनः परमेश्वर की महिमा को देखते हैं और भ्रष्टता धीरे-धीरे दूर हो जाती है और हम परमेश्वर को प्रतिबिम्बित करना आरम्भ कर देते हैं।
इसलिए मैं सोचता हूँ कि परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने का अर्थ है कि हम अपने जीवन से परमेश्वर के स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं। हम परमेश्वर को प्रतिबिम्बित करते हैं। हम इस प्रकार से जीवन व्यतीत करते हैं, हम इस प्रकार से सोचते हैं, हम इस प्रकार से अनुभव करते हैं, हम इस प्रकार से बोलते हैं जो परमेश्वर की महिमा के प्रकाश की ओर ध्यान खींचता है।
तो मैं अस्तित्व में क्यों हूँ?
इन सभी टुकड़ों को एक साथ रखकर हम एक बहुमूल्य उद्देश्य को देख सकते हैं कि परमेश्वर ने हमें क्यों सृजा है। हम परमेश्वर की महिमा को फैलाने वाले लोग हैं। परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने का अर्थ है, एक आधारभूत स्तर पर, हम संसार को यह दिखाने के लिए सृजे गए थे कि परमेश्वर कितना बहुमूल्य और गहराई से सन्तुष्टि देने वाला है। यदि लोग हमारे जीवन को देखते हैं और केवल आत्म-समावेश को ही देखते हैं, तो उन्हें एक दर्पण के प्रकाश को कम करने वाला पक्ष मिलता है, और हम वह बनने में विफल हो जाते हैं जिसके के लिए परमेश्वर ने हमें पूर्ण रूप से बनाया है, क्योंकि हम परमेश्वर की महिमा और वैभव को वापस संसार में प्रदर्शित करने में विफल रहते हैं।
हमें अपने छुड़ाए गए जीवन के इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, हमारे जीवन को परमेश्वर की महिमा के साथ चमकने के लिए, अपने आत्म-केन्द्रित पाप पर विजय पाना होगा। परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा यही कर रहा है। हम ख्रीष्ट के स्वरूप में परिवर्तित किए जा रहे हैं (2 कुरिन्थियों 4:4; कुलुस्सियों 1:15, 3:10 रोमियों 8:29)।
धीरे-धीरे, हम अपने जीवन और अपने शब्दों और अपने स्नेह के माध्यम से संसार को यह बताने लगे हैं, कि एकमात्र परमेश्वर ही अद्भुत है। परमेश्वर की महिमा की स्तुति एक दिन हमारे द्वारा, सम्पूर्ण पृथ्वी को भर देगी, और कोई भी बात हमें इससे बड़ा आनन्द नहीं देगी।
क्योंकि इसी उद्देश्य के लिए हम बनाए गए थे। इसी उद्देश्य के लिए हम अनन्तकाल के लिए अस्तित्व में हैं। इसी उद्देश्य के लिए हम अभी अपने जीवन के कार्यों और अवसरों में पीछे लौटते हैं।