यह संसार के इतिहास में वह सबसे भयानक दिन था।
कोई भी घटना कभी भी इतना अधिक दु:खद नहीं रही है, और न ही भविष्य की कोई घटना कभी इसके जैसी होगी। न कोई अकस्मात आक्रमण, न कोई राजनीतिक हत्या, न कोई वित्तीय पतन, न कोई सैन्य चढ़ाई, न कोई परमाणु विस्फोट या परमाणु युद्ध, न आतंकवाद का कोई प्रलयकारी कार्य, न बड़े पैमाने-का-अकाल या रोग— यहाँ तक कि दास-व्यापार भी नहीं, जातीय संहार, या कई दशकों-का-धार्मिक युद्ध भी उस दिन के अंधेरे को प्रभावहीन नहीं कर सकता है।
कोई भी पीड़ा अब तक इतनी अनुचित नहीं रही है। किसी भी व्यक्ति के साथ कभी भी इतना अन्यायपूर्ण व्यवहार नहीं किया गया है, क्योंकि कोई भी अन्य व्यक्ति कभी भी इतना स्तुति के योग्य नहीं रहा है। कोई भी अन्य व्यक्ति पाप रहित कभी नहीं रहा है। कोई भी दूसरा व्यक्ति स्वयं कभी परमेश्वर नहीं रहा है। कोई भी आतंक उससे अधिक नहीं हो सकता है जो दो सहस्राब्दी पहले यरूशलेम से बाहर एक पहाड़ी पर फैला था।
और फिर भी हम इसे “शुभ शुक्रवार” कहते हैं।
जिसे मनुष्य ने बुराई करने की ठानी थी
यीशु के लिए, सबसे भयानक दिन का आरम्भ रोमी हिरासत में राज्यपाल के मुख्यालय में हुआ। उसके अपने लोगों ने उसे अत्याचारी साम्राज्य के हाथों में सौंप दिया था। यहूदी राष्ट्र को जिस धागे ने एक साथ बांधा था वह था प्रतिज्ञा किये हुए शासक की अभिलाषा जो उनके महान प्रिय राजा दाऊद के वंश से होगा। स्वयं दाऊद तथा उसके पश्चात और उससे पूर्व आने वाले नबी दोनों ने लोगों को दाऊद से भी महान राजा की ओर इंगित किया जो आने वाला था। फिर भी जब वह अन्ततः आया, तो उसके लोगों ने — वही राष्ट्र जिसने अपना सामूहिक जीवन उसके लिए प्रतीक्षा के चारों ओर व्यवस्थित किया था — उसको नहीं पहचाना कि वह वास्तव में कौन है। उन्होंने अपने मसीहा को तिरस्कार दिया।
दाऊद ने अपने दिनों में अन्य जातियों को परमेश्वर के अभिषिक्त के विरोध में षड्यंत्र रचते देखा। “जाति जाति के लोग क्यों हुल्लड़ मचाते हैं, और देश देश के लोग व्यर्थ बात क्यों गढ़ते हैं? यहोवा और उसके अभिषिक्त के विरुद्ध पृथ्वी के राजा उठ खड़े होकर, और शासक एक साथ मिलकर यह सम्मति करते हैं” (भजन संहिता 2:1-2)। परन्तु अब दाऊद के वचन उसके महान वंशज के विषय में सच हो गए थे, जब यीशु के अपने ही लोगों ने उसे रोमी हाथों में सौंप दिया था।
यहूदा ने बुराई करने की ठानी थी
यीशु के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वालों में से यहूदा पहला व्यक्ति नहीं था, परन्तु वह “उसे पकड़वाने में” पहला था (मत्ती 26:15) — उत्तरदायित्व की यह भाषा जिसे सुसमाचार बार-बार दोहराते हैं।
यीशु के विरुद्ध योजनाओं का आरम्भ यहूदा के यह आभास होने से बहुत पहले आरम्भ हो गया था कि एक भेदिए को धन उपलब्ध कराया जा सकता है। यीशु को उसके ही शब्दों में फंसाने के लिए जो बातें आरम्भ हुईं थीं (मत्ती 22:15) वे शीघ्र ही उसे मार डालने के षड्यंत्र में बदल गईं (मत्ती 26:4)। और पैसे के प्रति यहूदा के प्रेम ने उसे यीशु को मृत्यु के मुंह में धकेलने हेतु गिरने वाला पहला रणनीतिक पत्ता बना दिया।
यीशु ने इसका आभास कर लिया था। उसने अपने चेलों को समय से पहले ही बता दिया था, “देखो, हम यरूशलेम जा रहे हैं। मनुष्य का पुत्र मुख्य याजकों और शास्त्रियों के हाथों में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मृत्यु-दण्ड के योग्य ठहराएंगे. . .” (मत्ती 20:18)। पहले तो विश्वासघाती नाम रहित था। अब वह यीशु के अपने बारह चेलों के आंतरिक चक्र से निकलकर बाहर आता है। उसके परम मित्रों में से एक उसके विरूद्ध लात उठाएगा (भजन संहिता 41:9), और एक दास के मूल्य हेतु (जकर्याह 11:12-13): चाँदी के तीस मैले सिक्के (लेगा)।
यहूदी अगुवों ने बुराई करने की ठानी थी
परन्तु यहूदा ने अकेले यह कार्य नहीं किया। यीशु ने स्वयं पहले ही बता दिया था कि “मुख्य याजकों और शास्त्रियों” के हाथ पकड़वाया जाएगा और (वे) “उसे मृत्यु-दण्ड के योग्य ठहराऐंगे और उसे गैरयहूदियों के हाथों में सौंपेंगे कि उसका उपहास करें, कोड़े मारें, उसे क्रूस पर चढ़ाएं” (मत्ती 20:18-19)। और यह सब योजना के अनुसार घटित हुआ। “सैनिकों का दल और उनके सेनानायक और यहूदियों के सिपाहियों ” ने यीशु को गिरफ्तार कर लिया और उसे पिलातुस को सौंप दिया (यूहन्ना 18:12, 30)। जिस प्रकार से पिलातुस ने भी यीशु के विषय में स्वीकार किया, “तेरी ही जाति और मुख्ययाजकों ने तुझे मेरे हाथों में सौंपा है ” (यूहन्ना 18:35)।
जिस दिन परमेश्वर के चुने हुए मसीहा को भयानक और अन्यायपूर्ण रीति से घात किया गया, उस दिन जो शीर्ष पर खड़े बुराई के मानवीय अभिकर्ता थे वह कोई और नहीं परन्तु परमेश्वर के चुने हुए लोगों के औपचारिक अधिकारी थे। यद्यपि दोष केवल उन्हीं तक सीमित नहीं होता, परन्तु जिन्हें अधिक दिया गया था उनसे अधिक मांगा जाएगा (लूका 12:48)। यीशु ने पिलातुस को स्पष्ट कर दिया था कि कौन अधिक दोषी है: “जिसने मुझे तेरे हाथ में सौंपा है उसका पाप अधिक है” (यूहन्ना 19:11)।
यहां तक कि पिलातुस भी बता सकता था कि यहूदी अगुवों ने यीशु के साथ ऐसा क्यों किया: “क्योंकि वह जानता था कि मुख्य याजकों ने उसे ईर्ष्यावश पकड़वाया है” (मरकुस 15:10)। उन्होंने देखा कि यीशु लोगों का पक्ष प्राप्त कर रहा है, और वे अपने स्वयं के प्रभाव के क्षीण होने की सम्भावना से कांप उठे (यूहन्ना 12:9)। यीशु के यश के उदय ने उनके अधिकार की निर्बल भावना के लिए एक ऐसा संकट उत्पन्न कर दिया, उसके विशेषाधिकार के संग ही, कि उदारपंथी याजकों और रूढ़िवादी शास्त्रियों ने एक साथ कार्य करने के लिए एकमत होकर मार्ग पर निकल पड़े।
पिलातुस ने इसे बुराई करने की ठानी थी
दुष्टता के जाल में, दोषी पक्ष अपनी सम्पूरक भूमिकाएं निभाती हैं। यहूदी अगुवों ने योजना बनाई, यहूदा ने उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया, और पिलातुस ने भी अपनी भूमिका निभायी, यद्यपि वह निष्क्रिय ही क्यों न था। वह सार्वजनिक रूप से पूरे प्रकरण से अपना हाथ धोने के द्वारा अपने विवेक से अपराध बोध दूर करने का प्रयास करेगा, परन्तु वह स्वयं को इस दोष से बाहर निकालने में सफल नहीं हुआ।
कार्यक्षेत्र में वरिष्ठ रोमी होने के नाते, वह उस अन्याय का अन्त कर सकता था जिसे उसने अपने सामने होते हुए देखा था। वह जानता था कि यह बुराई थी। लूका और यूहन्ना दोनों ने पिलातुस की घोषणा के तीन स्पष्ट घटनाओं को लिखा है, “मैंने उसमें कोई अपराध नहीं पाया है” (लूका 23:14-15, 20, 22; यूहन्ना 18:38; 19:4, 6)। ऐसी स्थिति में, एक धर्मी शासक न केवल आरोपी को निर्दोष ठहराता, परन्तु यह भी सुनिश्चित करता कि वह अपने दोष लगाने वालों से बाद में होने वाली हानि से सुरक्षित रहेगा। फिर भी, विडम्बना यह है, कि यीशु में कोई दोष न पाना पिलातुस के दोष का कारण बन गया, जब उसने उसको नमन किया जो उस क्षण राजनीतिक रूप से लाभदायक लग रहा था।
सबसे पहले, पिलातुस ने मोल भाव करने का प्रयास किया। उसने एक कुख्यात अपराधी को छोड़ने का प्रस्ताव रखा। परन्तु लोग उसके झांसे में नहीं आए, अपने अगुवों द्वारा उकसाये जाने पर, उन्होंने यीशु के स्थान पर एक दोषी को छोड़े जाने की मांग की। अब पिलातुस कठिनाई में पड़ गया था। और उसने दिखावे के रूप में अपना हाथ धोया और “उसने बरअब्बा को तो उनके लिए छोड़ा, पर यीशु को कोड़े लगवाकर क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया ” (मत्ती 27:26; मरकुस 15:15)। पिलातुस की भूमिका, बिना सन्देह के, षड्यंत्रकारी यहूदी अगुवों की तुलना में अधिक प्रतिक्रियाशील थी, किन्तु जब, “उसने यीशु को उनकी इच्छा पर छोड़ दिया ” (लूका 23:25) तो वह भी उनकी दुष्टता में सहभागी हो गया।
लोगों ने इसे बुराई करने की ठानी थी
जनसाधारण ने भी अपनी अपनी भूमिका निभायी। उन्होंने स्वयं को अपने षड्यंत्रकारी अधिकारियों द्वारा भड़काए जाने की अनुमति दी। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को उस निर्दोष व्यक्ति के स्थान पर छोड़ने की मांग की जिसे वे जानते थे कि वह दोषी था। प्रेरित पतरस ने प्रेरितों के काम 3:13-15 में उचित प्रचार किया जब उसने यरूशलेम के लोगों को सम्बोधित किया था,
जिसे [यीशु को] तुमने पकड़वा दिया, और जब पिलातुस ने उसे छोड़ देने का निर्णय किया तो तुमने उसके सामने उसे अस्वीकार किया। तुमने उस पवित्र और धर्मी को अस्वीकार किया और एक हत्यारे के लिए विनती की कि वह तुम्हारे लिए छोड़ दिया जाए, परन्तु जीवन के कर्त्ता को मार डाला, जिसे परमेश्वर ने मृतकों में से जिलाया।
जैसा कि यरूशलेम में आरम्भिक मसीही प्रार्थना करते हैं, “क्योंकि सचमुच तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में जिसका अभिषेक तू ने किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी ग़ैरयहूदियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में एकत्रित हुए” (प्रेरितों के काम 4:27)। न तो हेरोदेस और न ही रोमी लोग भी शुद्ध हैं। अन्त में, एक आश्चर्यजनक घटना घटी कि, यहूदियों और ग़ैरयहूदियों ने जीवन के कर्ता को मारने के लिए एक साथ कार्य किया।
और शीघ्र ही हम पाते हैं कि केवल यहूदा, पिलातुस, अगुवे, और वे लोग ही अपराध में सहभागी नहीं हैं। किन्तु हम भी अपनी बुराई देखते हैं, यद्यपि हम इस शुक्रवार के कालेपन के माध्यम से परमेश्वर की भलाई के प्रकाश को देखते हैं: हमने उसे सौंप दिया । “ख्रीष्ट (मसीह) हमारे पापों के लिए मरा” (1 कुरिन्थियों 15:3)। यीशु “हमारे अपराधों के कारण पकड़वाया गया” (रोमियों 4:25)। “उसने हमारे पापों के लिए अपने आप को दे दिया” (गलातियों 1:4)। “उसने स्वयं अपनी ही देह में क्रूस पर हमारे पापों को उठा लिया” (1 पतरस 2:24)। जिसे हमने बुराई करने की ठानी थी, उसे परमेश्वर ने भलाई हेतु ले लिया।
परमेश्वर ने इसे भलाई करने की ठानी थी
परमेश्वर कार्य कर रहा था, हमारी सबसे भयानक बुराई में अपनी सबसे महान भलाई कर रहा था। यहूदा, यहूदी अगुवों, पिलातुस, लोगों, और सभी क्षमा किए गए पापियों के अत्यधिक बुराई के पश्चात भी, परमेश्वर का हाथ स्थिर रहता है, कभी भी उस पर बुराई के लिए दोष नहीं लगाया जा सकता है, वह सदैव हमारी अंतिम भलाई के लिए कार्य करता रहता है। जैसा कि पतरस शीघ्र ही प्रचार करता है, यीशु को “निश्चित योजना और पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया था” (प्रेरितों के काम 2:23)। और जैसा कि आरम्भिक ख्रीष्टीय लोग प्रार्थना करते हैं, “हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी ग़ैरयहूदियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में एकत्रित हुए; कि वही करें जो कुछ तेरी सामर्थ्य और योजना में पहले से निर्धारित किया गया था” (प्रेरितों के काम 4:27-28)।
कभी भी यूसुफ का झण्डा इतनी सच्चाई से नहीं फहरा था जितनी कि वह उस दिन फहरा था: मनुष्य ने जिसे बुराई करने की ठानी थी, परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया (उत्पत्ति 50:20)। और यदि यह दिन, सभी दिनों की तुलना में, बुराई के लिए न केवल पापियों की अंगुलियों की छाप को धारण करता है, किन्तु भलाई के लिए परमेश्वर के सम्प्रभु हाथ को भी, तो फिर हम अपने जीवन की महान त्रासदियों और भयावहता में भी यूसुफ के झण्डे को कैसे नहीं फहरा सकते हैं? क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं, “अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा परन्तु उसे हम सब के लिए दे दिया, तो वह उसके साथ हमें सब कुछ उदारता से क्यों न देगा” हमारी अनन्तकालीन भलाई हेतु (रोमियों 8:32)?
परमेश्वर ने संसार के इतिहास में सबसे बुरे दिन पर “अच्छा” लिख दिया है। और इसलिए अब कोई भी एक ऐसा दिन नहीं है — अथवा सप्ताह, महीना, वर्ष, या जीवन भर के क्लेश — एक भी गहरा आघात नहीं, एक भी हानि नहीं, एक भी पीड़ा नहीं, क्षणिक या दीर्घकालीन — जिसके ऊपर परमेश्वर आपके लिए ख्रीष्ट यीशु में हो कर के “अच्छा” नहीं लिख सकता है।
शैतान और पापी मनुष्य ने उस शुक्रवार को बुराई हेतु ठाना था, किन्तु परमेश्वर ने उसे भलाई के लिए ठाना था, और इसलिए हम इसे शुभ शुक्रवार कहते हैं।