बेल्जिक अंगीकार – अनुच्छेद 101
“हम विश्वास करते हैं कि यीशु ख्रीष्ट, अपने ईश्वरीय स्वभाव के अनुसार परमेश्वर का एकमात्र पुत्र है, जो अनादिकाल से उत्पन्न है, किन्तु न तो बनाया गया और न ही सृजा गया है, क्योंकि यदि ऐसा होता, तो वह एक सृजित प्राणी होता।
वह पिता के साथ सारतत्व में एक है; वह पिता के साथ सह-शाश्वत; वह पिता के व्यक्ति का प्रतिरूप और “परमेश्वर की महिमा का प्रतिबिम्ब” है, क्योंकि वह सब बातों में पिता के समान है।
यीशु ख्रीष्ट परमेश्वर का पुत्र, न केवल उस समय से है जब उसने हमारे स्वभाव को धारण किया, किन्तु अनादि काल से है, जैसा कि एक साथ लिए जाने पर पवित्रशास्त्र की निम्नलिखित साक्षियाँ हमें यही शिक्षा देती हैं।
मूसा कहता है कि परमेश्वर ने संसार की सृष्टि की; और यूहन्ना कहता है कि सब कुछ की सृष्टि वचन के द्वारा हुई, जिसे (वचन को) वह परमेश्वर कहता है। प्रेरित कहता है कि परमेश्वर ने संसार की सृष्टि पुत्र के द्वारा की। वह यह भी कहता है कि परमेश्वर ने सब कुछ की सृष्टि यीशु ख्रीष्ट के द्वारा की।
अतः इससे सिद्ध होता है कि वह जिसे परमेश्वर, वचन, पुत्र, और यीशु ख्रीष्ट कहा जाता है, सब कुछ की सृष्टि से पहले ही अस्तित्व में था। इसी कारण मीका नबी कहता है कि ख्रीष्ट का निकलना “प्राचीनकाल से” है। और प्रेरित कहता है कि पुत्र के “दिनों का न कोई आदि है और न जीवन का अन्त।”
अतः वह (यीशु ख्रीष्ट) सच्चा अनन्त परमेश्वर है, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, जिससे हम निवेदन करते हैं, जिसकी हम आराधना करते हैं, और जिसकी हम सेवा करते हैं।”
सताव के बीच ख्रीष्ट का ईश्वरत्व और कलीसिया की स्थिरता
जब कलीसिया सताव, विरोध और भय के वातावरण में जीवन जीती है, तब उसकी सबसे बड़ी आवश्यकता केवल सहानुभूति नहीं, वरन् एक दृढ़, अटल और बाइबल-आधारित आशा होती है। ऐसी ही आशा बेल्जिक अंगीकार के अनुच्छेद 10 में दिखाई देती है, जहाँ यीशु ख्रीष्ट के ईश्वरत्व की स्पष्ट और साहसी घोषणा की गई है। यह सत्य केवल एक सैद्धान्तिक कथन नहीं, वरन् पीड़ित विश्वासियों के लिए सांत्वना, सामर्थ और स्थिरता का स्रोत है।
बेल्जिक अंगीकार यह सिखाता है कि यीशु ख्रीष्ट अपने ईश्वरीय स्वभाव के अनुसार परमेश्वर का एकमात्र पुत्र है, जो अनादिकाल से है। वह न तो बनाया गया और न ही सृजा गया है, क्योंकि यदि वह सृजित होता, तो वह सच्चा परमेश्वर नहीं हो सकता था। वह पिता के साथ सारतत्व में एक है, सह-शाश्वत है और पिता का प्रतिरूप है। वह “परमेश्वर की महिमा का प्रतिबिम्ब” है, क्योंकि वह सब बातों में पिता के समान है। पवित्रशास्त्र की साक्षियाँ—मूसा, यूहन्ना और प्रेरितों की गवाही—एक स्वर में यह घोषित करती हैं कि सारी सृष्टि वचन के द्वारा हुई, और वही वचन परमेश्वर है। इस प्रकार जिसे परमेश्वर, वचन, पुत्र और यीशु ख्रीष्ट कहा जाता है, वह सृष्टि से पहले ही अस्तित्व में था। इसी कारण मीका नबी कहता है कि ख्रीष्ट का निकलना “प्राचीनकाल से” है, और प्रेरित यह कहता है कि पुत्र के “दिनों का न कोई आदि है और न जीवन का अन्त।”
यह अंगीकार सोलहवीं शताब्दी में गुइडो दे ब्रे(Guido de Brès) द्वारा उन प्रोटेस्टेंट विश्वासियों के लिए लिखा गया था जो अपने विश्वास के कारण सताए जा रहे थे। यह केवल एक धार्मिक दस्तावेज़ नहीं था, वरन् पीड़ित कलीसिया की पुकार और सच्चे विश्वास की सार्वजनिक गवाही थी। ख्रीष्ट के ईश्वरत्व की यह घोषणा उन विश्वासियों के लिए साहस का कारण बनी, जो यह जानते थे कि वे किसी साधारण मनुष्य पर नहीं, वरन् स्वयं अनन्त और सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर भरोसा कर रहे हैं।
आज के भारतीय सन्दर्भ में भी अनेक ख्रीष्टीय विरोध, तिरस्कार और कभी-कभी खुले उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। ऐसे समय में विश्वास का अंगीकार केवल परम्परा नहीं रह जाता, वरन् जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन जाता है। यदि यीशु ख्रीष्ट केवल एक महान शिक्षक या भविष्यद्वक्ता होते, तो सताव के समय यह विश्वास टिक नहीं पाता। परन्तु पवित्रशास्त्र और कलीसिया का ऐतिहासिक विश्वास यह सिखाता है कि वह अनादिकाल का परमेश्वर है, जिसने आज से लगभग 2025 वर्ष पूर्व अपने ईश्वरत्व में मनुष्यत्व को जोड़ लिया। अब वह अपने परमेश्वरत्व में पूर्ण परमेश्वर है और अपने मनुष्यत्व में पूर्ण मनुष्य। वह सिद्ध परमेश्वर-मनुष्य है, और यही सत्य पीड़ित विश्वासियों को अडिग बनाए रखता है।
आराधना, आशा और अन्तिम विजय
बेल्जिक अंगीकार यह भी घोषित करता है कि यीशु ख्रीष्ट पिता के साथ सारतत्व में एक है। जो पिता है, वही पुत्र भी है। इसलिए जो कोई ख्रीष्ट को जानता है, वह वास्तव में परमेश्वर को जानता है। प्रायः विश्वासियों पर यह आरोप लगाया जाता है कि वे “विदेशी परमेश्वर” की उपासना करते हैं, परन्तु यह सत्य अत्यन्त सांत्वनादायक है कि यीशु ख्रीष्ट किसी दूसरे परमेश्वर की ओर नहीं, वरन् स्वयं सच्चे, अनन्त और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर ले जाते हैं—क्योंकि वह स्वयं परमेश्वर हैं।
बेल्जिक अंगीकार का निष्कर्ष अत्यन्त सामर्थी है: यीशु ख्रीष्ट सच्चा, अनन्त और सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। उसी से हम निवेदन करते हैं, उसी की हम आराधना करते हैं और उसी की हम सेवा करते हैं। जब विश्वासी दबाव, बहिष्कार और भय के बीच जीवन जीते हैं, तब यह सत्य हमें स्मरण दिलाता है कि हमारी आराधना व्यर्थ नहीं है। हम किसी निर्बल या असहाय ईश्वर की सेवा नहीं कर रहे हैं, वरन् उस प्रभु की सेवा कर रहे हैं जिसके “दिनों का न कोई आदि है और न जीवन का अन्त।”
अतः बेल्जिक अंगीकार हमें यह सिखाता है कि सच्चा विश्वास केवल शब्दों का स्वीकार नहीं, वरन् जीवन का अंगीकार है। जैसे सोलहवीं शताब्दी के विश्वासी ख्रीष्ट के ईश्वरत्व में दृढ़ रहते हुए सताव सहते रहे, वैसे ही आज की कलीसिया को भी इसी सत्य में स्थिर रहना है। यीशु ख्रीष्ट—सच्चे, अनन्त और सर्वशक्तिमान परमेश्वर—में ही पीड़ित कलीसिया की आशा, सामर्थ और अन्तिम विजय निहित है।
- Belgic Confession Article 10: The Deity of Christ ↩︎



