“…अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु ख्रीष्ट के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों ” (इफिसियों 1:5)।
जब एक बच्चे को किसी व्यक्ति के द्वारा वैधानिक रूप से अपने परिवार में अपनी सन्तान के रूप में स्वीकार किया जाता है अर्थात् गोद ले लिया जाता है, तो गोद लिए गए बच्चे को लेपालक पुत्र या पुत्री कहा जाता है। बाइबलीय भाषा में परमेश्वर का लेपालक पुत्र होना एक ख्रीष्टीय को परमेश्वर के द्वारा प्रदान किया गया एक सौभाग्य है। लेपालकपन परमेश्वर के लोगों और परमेश्वर के मध्य स्थापित विशेष स्नेह व प्रेमयुक्त पिता-पुत्र का सम्बन्ध है।
इस लेख में हम यह समझेंगे बाइबल में, परमेश्वर की सन्तान अर्थात् लेपालक पुत्र होने का क्या अर्थ है और हम लेपालक पुत्र कैसे बनते हैं और एक लेपालक पुत्र होने के नाते हमारे उत्तरदायित्व क्या हैं।
लेपालकपन या लेपालक पुत्र होने की परिभाषा:
प्रसिद्ध ईश्वरविज्ञानी वेन ग्रूडम लेपालकपन अर्थात् परमेश्वर के पुत्र होना को इस प्रकार से परिभाषित करते हैं – “लेपालकपन अर्थात् गोद लिया जाना परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला ऐसा एक कार्य है, जिसमें वह हमें अपने कुटुम्ब का सदस्य बनाता है।”
एक ख्रीष्टीय जन का परमेश्वर का लेपालक पुत्र होना उसकी विशिष्ट पहचान है, क्योंकि यह सामान्य अवस्था नहीं है जिसमें शारीरिक जन्म के द्वारा प्रत्येक जन प्रवेश करे; परन्तु यह एक अलौकिक ईश्वरीय दान है जो यीशु को ग्रहण करने के द्वारा प्राप्त होता है। लेपालकपन एक सौभाग्य है जो ख्रीष्ट में विश्वास करने के पश्चात प्राप्त होता है। जब हम यीशु ख्रीष्ट पर विश्वास करते हैं तो हम परमेश्वर की सन्तान होने के अधिकार को प्राप्त करते हैं अर्थात् तब हम परमेश्वर की सन्तान बनाए जाते हैं (यूहन्ना 1:12, 1 यूहन्ना 3:1-2)। हम सब उस विश्वास के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हैं (गलातियों 3:26)। इसलिए एक प्रसिद्ध लेखक व ईश्वरविज्ञानी जे. आई. पैकर अपनी पुस्तक नोइंग गॉड में कहते हैं कि “एक ख्रीष्टीय वह है जिसके पास परमेश्वर एक पिता के जैसे है।”
परमेश्वर का लेपालक पुत्र होना/बनना एक सौभाग्य है:
परमेश्वर का लेपालक पुत्र होना ख्रीष्ट यीशु में धर्मी ठहरा दिए जाने से भिन्न है, क्योंकि यीशु ख्रीष्ट के व्यक्ति और क्रूस पर किए गए कार्य पर विश्वास के द्वारा परमेश्वर पिता हमें केवल धर्मी ही ठहराकर छोड़ सकते थे, और यह न्यायसंगत होता। जब हमने यीशु में विश्वास किया तो परमेश्वर पिता ने हमें न केवल वैधानिक रूप से धर्मी अर्थात् सही घोषित किया और हमारे पाप के दोष को क्षमा किया, परन्तु इसके साथ ही साथ परमेश्वर ने एक ईश्वरीय दान व आशीष तथा सौभाग्य प्रदान किया – वह है लेपालक पुत्र होना। परमेश्वर ने हमको धर्मी ठहराने साथ ही साथ अपनी सन्तान बना लेता है। परमेश्वर एक विश्वासी को धर्मी ठहराने के पश्चात सबसे उत्तम आत्मिक आशीष प्रदान करता है – अपने घराने अर्थात् परमेश्वर के घराने का सदस्य बनाता है।
परिवार में पिता-पुत्र के सम्बन्ध के सदृश लेपालकपन परमेश्वर के साथ मधुर व प्रिय सम्बन्धों स्थापित होना है और परमेश्वर के घराने का सदस्य होना है। परमेश्वर के घराने का सदस्य होना वास्तव में हमारा सौभाग्य है क्योंकि हम तो परमेश्वर के प्रचण्ड पवित्र प्रकोप के योग्य थे, हम तो उसके शत्रु थे। हम तो क्रोध और अनाज्ञाकारिता की सन्तान थे (इफिसियों 2:2-3,6), हम इसके योग्य नहीं थे, हम तो अनन्त दण्ड और नरक के योग्य थे।
परन्तु यीशु ख्रीष्ट के जीवन और हमारे बदले में क्रूस पर किए गए स्थानापन्न प्रायश्चित के कार्य व बलिदान व पुनरुत्थान में विश्वास करने के कारण परमेश्वर पिता हमें ख्रीष्ट में धर्मी ठहरा दिया है (रोमियों 8:30)। पहले हमें शत्रु थे, परन्तु अब हम उसकी मेज़ में सहभागी हैं, उसने हमें स्वर्गीय स्थानों ख्रीष्ट के साथ बैठाया है (इफिसियों 2:6)। इसलिए हम कहते हैं कि यीशु तेरा धन्यवाद!
अब हमारी पमरेश्वर के साथ सहभागिता है, हमारा सम्बन्ध उसके साथ घनिष्ठ है। वास्तव में परमेश्वर की सन्तान होना अद्भुत सौभाग्य है। ये हमारे हृदय को परमेश्वर की आराधना के करने लिए उभारना चाहिए, प्रेरित करना चाहिए। ये हमें परमेश्वर के लिए जीने लिए प्रेरित करना चाहिए। और यदि परमेश्वर हमारा पिता है तो हमें और क्या चाहिए, कुछ नहीं! परमेश्वर ही हमारे लिए पर्याप्त होना चाहिए।
परमेश्वर के कुटुम्ब के होने के नाते अब हमारे पास आत्मा के द्वारा परमेश्वर पिता तक पहुंच है (इफिसियों 2:18-19)। अब हम परमेश्वर को अपना पिता कहकर पुकार सकते हैं (रोमियों 8:14-15)। हम उससे प्रार्थना कर सकते हैं। हमारा स्वर्गीय पिता अपनी सन्तानों की आवाज़ को सुनता है और उनका उत्तर देता है। यह हमारे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है।
परमेश्वर ने हमें लेपालक पुत्र बनाने के द्वारा उसने अपने प्रेम की महानता को प्रदर्शित किया है। न केवल इतना उसने हमें अपनी सन्तान बनाने के द्वारा हमें एक आशा भी प्रदान की है कि एक दिन प्रतिज्ञा किए हुए उत्तराधिकार को प्राप्त करेंगे। हम परमेश्वर के तथा उसके पुत्र यीशु के सह उत्तराधिकारी होंगें, हम उसकी महिमा में सहभागी होंगे (गलातियों 4:7, रोमियों 8:17)। न केवल इतना, हम परमेश्वर की सन्तान होने के नाते जब यीशु ख्रीष्ट प्रकट होगा तो हम उसके पुत्र के जैसे होंगे (1यूहन्ना 3:2)।
परमेश्वर हमें न केवल लेपालक पुत्र बनाया है, परन्तु उसने अपने सन्तानों को पवित्र आत्मा प्रदान किया है, उसने अपनी सन्तानों पर पवित्र आत्मा की छाप लगाई है (इफिसियों 1)। पवित्र आत्मा उसकी सन्तानों की निर्बलताओं के मध्य सहायता प्रदान करता है और उन्हें ख्रीष्टीय जीवन में बनाए रखता है।
एक लेपालक पुत्र होने के नाते हमारा उत्तरदायित्व:
ख्रीष्ट यीशु में, एक परमेश्वर की सन्तान होने के का सौभाग्य प्राप्त किया है तो इसके साथ ही साथ हमारा उत्तरदायित्व भी है कि हम अपने पिता को इस संसार में प्रकट करें।–
1. अपने स्वर्गिक पिता का अनुकरण करना: हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट हमें स्मरण दिलाते हैं कि तुम सिद्ध बनो जैसा कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है (मत्ती 5:48)। जैसा बाप वैसा बेटा भी होना चाहिए। यीशु के शिष्य तथा परमेश्वर की सन्तान होने के नाते हम अपने शत्रुओं से भी प्रेम करेंगे और उनके लिए प्रार्थना करेंगे (मत्ती 5:44-46)। परमेश्वर की सन्तानें अपने आचरण के द्वारा अपने स्वर्गिय परिवार के आचरण को अवश्य ही दिखाएंगे। वे अपने स्वर्गीय पिता का अनुकरण अवश्य ही करेंगे।
2. परमेश्वर पिता की महिमा हेतु जीवन जीना: हमारे जीवन की हर एक गतिविधि इस समाज में कुछ न कुछ व्यक्त करती है जिसके द्वारा या तो परमेश्वर की महिमा होती है या फिर उन गतिविधियों के द्वार परमेश्वर की महिमा नहीं होती है। इसलिए परमेश्वर की सन्तान होने के नाते हमें सम्पूर्ण जीवन, अपने आचरण, व्यवहार के द्वार परमेश्वर करने हेतु परमेश्वर का वचन निर्देश देता है – “तुम्हारा प्रकाश मनुष्यों के सामने इस प्रकार चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, महिमा करें (मत्ती 5:16)।
3. आत्मा के चलाए चलना: जो लोग परमेश्वर की सन्तान हैं, वे लोग आत्मा के द्वारा चलेंगे। क्योंकि परमेश्वर का वचन बहुत ही स्पष्ट है इस सन्दर्भ में कि “इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं (रोमियों 8:14)।
4. पवित्र जीवन जीना: परमेश्वर की सन्तान होने के नाते हमारा उत्तरदायित्व पवित्र जीवन जीना है और परमेश्वर स्वरूप को प्रदर्शित करना है। क्योंकि हमें पवित्र होने के लिए बुलाया गया है क्योंकि हमारा स्वर्गिक पिता पवित्र है (मत्ती 5:8, 1 पतरस 1:6)।
5. परमेश्वर और उसके घराने से प्रेम करना: हम परमेश्वर के परिवार का भाग हैं। इस पृथ्वी पर कलीसिया परमेश्वर का घराना है, जिसमें परमेश्वर ने अपनी सन्तान बना कर जोड़ा है। इसलिए परमेश्वर की सन्तान होने नाते हम अपने आत्मिक परिवार अर्थात् कलीसिया से प्रेम करेंगे और परमेश्वर पिता इच्छा का पालन करेंगे, क्योंकि जो परमेश्वर पिता की इच्छा का पालन करता है वही लोग ही यीशु के भाई, बहन, माता हैं अर्थात् परमेश्वर के कुटुम्ब के सदस्य हैं। यदि हम वास्तव में परमेश्वर के कुटुम्ब के सदस्य हैं तो हम परमेश्वर की इच्छा व वचनों का पालन करेंगे। हम परमेश्वर से तथा कलीसिया में एक-दूसरे से प्रेम करेंगे। हमारा सम्पूर्ण जीवन व हमारी विचार और आचरण एक परमेश्वर के पुत्र के रूप प्रतिध्वनित व प्रदर्शित होना चाहिए।