हम कैसे बिना पाप किए क्रोध कर सकते हैं?

“क्रोध तो करो पर पाप न करो” (इफिसियों 4:26 )। क्या ऐसा सम्भव भी है?

नहीं, यदि पापरहित क्रोध की माँग की गई है, क्योंकि पाप हमारे प्रत्येक विचार, शब्द, और कार्य को संक्रमित करता है।

परन्तु मैं नहीं सोचता कि जब पौलुस ने इफिसियों की पत्री में भजन 4:4 से राजा दाऊद को उद्धरित किया, तो उसके मन में सिद्ध, पापरहित क्रोध का विचार था। ऐसा प्रतीत होता है कि पौलुस की बात यह है कि ख्रीष्टियों द्वारा अनुभव किए जाने वाला सब क्रोध हमारे पापी स्वभाव की घमण्डपूर्ण, स्वार्थी भूमि में जड़ पकड़े हुए नहीं है।

एक ऐसा क्रोध भी है जो हमारे नए जन्म पाए हुए, आत्मा द्वारा निर्देशित स्वभाव से आता है, भले ही यह अनिवार्य रूप से यह हमारे भीतर वास करने वाले पाप से दूषित होता है जब यह हमारे दूषित मस्तिष्क और मुख से होकर आता है। और क्योंकि पवित्र आत्मा हमें दाऊद और पौलुस के द्वारा “क्रोध करने” का निर्देश देता है, इसका अर्थ यह है कि कुछ बातों को अवश्य ही  हमें धार्मिकता से क्रोध करने के लिए प्रेरित करनी चाहिए।

तो एक ख्रीष्टीय में धर्मी क्रोध किस प्रकार दिखाई देता है?

धर्मी क्रोध क्या है? 

सबसे पहले, आइए हम यह प्रश्न पूछें कि, धर्मी क्रोध क्या है?

धर्मी क्रोध उन बातों पर क्रोधित होना है जिन पर परमेश्वर क्रोधित होता है। और “धर्मी क्रोध” इन शब्दों का उचित क्रम है। क्योंकि परमेश्वर मूल रूप से क्रोधित नहीं है। वह मूल रूप से धर्मी है। परमेश्वर का क्रोध उसकी धार्मिकता का परिणाम है।

परमेश्वर की धार्मिकता यह है कि वह अपने सभी कार्यों में सिद्ध रीति से सही है, उसकी सभी सिद्धताएँ एक साथ सिद्ध अनुपात, समानुरूपता, और सामंजस्य में कार्य करती है।

परमेश्वर तो भलाई की वास्तविक परिभाषा और स्तर है (मरकुस 10:18)। परमेश्वर जो कुछ कहता है (इब्रानियों 6:5) और परमेश्वर जो कुछ करता है (मीका 6:8) वह अच्छा है क्योंकि वे “पूर्णतः धर्ममय” हैं (भजन 19:9) — ये सब सिद्ध रीति से उसकी व्यापक सिद्धता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसलिए, जो बात परमेश्वर को क्रोधित करती है, वह है उसकी भलाई की विकृति; अर्थात् जिन बातों को उसने उचित ठहराया उनको अनुचित ठहराना। परमेश्वर इस विकृति को दुष्टता कहता है। दुष्टता परमेश्वर की महिमा को तोड़ती-मरोड़ती तथा उसके स्वरूप को कुरूप कर देती है, और इस प्रकार सबसे मूल्यवान बात को नष्ट कर देती है, और सबसे पवित्र बात को अपवित्र कर देती है। दुष्टता वास्तविकता को दूषित करती है और विकृत करती है, जिसके परिणामस्वरूप उस प्रत्येक प्राणी के लिए आनन्द का विनाश होता है जो परमेश्वर की भलाई के स्थान पर विकृति का चुनाव करता है।

परमेश्वर की धार्मिकता माँग करती है कि वह इस प्रकार की विनाशकारी विकृति के प्रति क्रोधित हो और वह इस प्रकार की दुष्टता करने वालों के विरुद्ध उचित न्याय लाए।

इसलिए हमारा क्रोध तब धर्मी क्रोध है जब हम उस दुष्टता पर क्रोधित होते हैं जो परमेश्वर की पवित्रता को अपवित्र करती है और उसकी भलाई को विकृत करती है। 

पापमय क्रोध क्या है?

परन्तु मनुष्य, दुष्ट होने के कारण (लूका 11:13) धर्मी क्रोध के द्वारा नहीं परन्तु पापमय क्रोध के द्वारा चिन्हित किया जाता है, और इस बात में हम ख्रीष्टीय भी सम्मिलित हैं। “मनुष्य का क्रोध परमेश्वर की धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता” क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर से अधिक मनुष्य को ध्यान में रखता है (याकूब 1:20)।

मुझे तो यह बात कहने की आवश्यकता ही नहीं है। आप स्पष्ट रूप से जानते हैं कि मेरा अर्थ क्या है। हम परमेश्वर की महिमा के दूषित होने से अधिक अपने चोट खाए हुए अहंकार पर क्रोधित हो जाते हैं। हम किसी घोर अन्याय से अधिक किसी छोटी सी असुविधा पर अधिक क्रोधित होने की प्रवृत्ति रखते हैं। हम प्रायः उड़ाऊ पुत्र के बड़े भाई के समय स्व-धार्मिक रीति से क्रोधित होते हैं (लूका 15:28), या फिर स्वार्थी रीति से क्रोधित होते हैं, जैसे योना 120,000 लोगों की भलाई की चिन्ता न करते हुए एक पौधे के नष्ट होने पर क्रोधित हुआ (योना 4:9-11)।

वह क्रोध जो हमारे पापी स्वभाव पर आधारित है, वह “कलह, ईर्ष्या, क्रोध, झगड़े, निन्दा, बकवाद, अहंकार और उपद्रव” को उत्पन्न करता है (2 कुरिन्थियों 12:20)। यह “बैर, झगड़ा . . .क्रोध [अर्थात, झुंझलाहट] ईर्ष्या, मतभेद, [और] फूट” को उत्पन्न करता है (गलातियों 5:20)। पापमय क्रोध हम में इतना सामान्य है कि हमें नित्य स्मरण दिलाए जाने की आवश्यकता है कि “क्रोध, रोष, [और] बैरभाव” को उतारें (कुलुस्सियों 3:8) और कि “प्रत्येक जो अपने भाई पर क्रोधित होगा वह न्यायालय में दण्ड के योग्य ठहरेगा” (मत्ती 5:22)।

धर्मी क्रोध का प्रेममय धीमापन 

धर्मी क्रोध पापपूर्ण क्रोध के समान न ही दिखाई देता है और न ही अनुभव किया जाता है क्योंकि भक्तिपूर्ण धर्मी क्रोध, प्रेम द्वारा नियन्त्रित और निर्देशित होता है। परमेश्वर धर्मी है, किन्तु वह प्रेमी भी है (1 यूहन्ना 4:8)। और प्रेम धैर्यवान है (1 कुरिन्थियों 13:4)।

यही कारण है कि परमेश्वर बहुधा पवित्रशास्त्र में स्वयं को “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीमा, और करुणा तथा सत्य से भरपूर” होने के रूप में वर्णित करता है (निर्गमन 34:6; गिनती 14:18; नहेमायाह 9:17; भजन 86:15; 103:8; 145:8; योएल 4:2; नहूम 1:3)।

परमेश्वर क्रोध करने में धीमा है, “वह यह नहीं चाहता कि कोई नाश हो, परन्तु यह कि सब पश्चात्ताप करें” (2 पतरस 3:9)। परमेश्वर अपश्चात्तापी दोषी लोगों पर अपने धर्मी न्याय को अवश्य लाएगा (निर्गमन 34:7), परन्तु वह अपने “मन से उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचाना चाहता है” (विलापगीत 3:33)। और वह मापा हुआ, दयालु और प्रेम पूर्ण धीमेपन के साथ कार्य करता है। 

यदि आप प्रेम-शासित क्रोध को कार्य करते हुए देखना चाहते हैं, तो यीशु को देखें।

यीशु जानता था कि न्याय का दिन आ रहा था जब वह राजाओं के राजा के रूप में पृथ्वी पर आएगा और “[अपने शत्रुओं को] परमेश्वर के भयानक प्रकोप की मदिरा के रसकुण्ड में रौंदेगा” (प्रकाशितवाक्य 19:15-16)। परन्तु न्याय लाने से बहुत पहले वह अपने शत्रुओं के लिए उद्धार लाने आया (यूहन्ना 12:47; रोमियों 5:8) और जब वह बचाने आया, तो उसने विरले ही क्रोध को व्यक्त किया।

और जो लोग यीशु के सबसे निकट चलते हैं, वे भी पापियों के साथ इस अनूठे धैर्य के द्वारा चिन्हित किए जाते हैं। वे भी “सुनने के लिए तत्पर, बोलने में धीरजवन्त, और क्रोध करने में धीमे हैं” (याकूब 1:19)। वे क्रोधित होते हैं, परन्तु यीशु के समान, उनका क्रोध दुख से भरा होता है (मरकुस 3:5)। कभी-कभी वे मन्दिर में मेज़ को पलटते हैं (यूहन्ना 2:15:17), परन्तु वे यरूशलेम के लिए रोते भी हैं (लूका 13:34)।

हमें कैसे “क्रोधित होना” चाहिए?

क्रोधित होने और पाप न करने के लिए सूझ-बूझ के निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है (इब्रानियों 5:14) क्योंकि हमारा अत्यधिक क्रोध की जड़ हमारे घमण्डी, स्वार्थी पापी स्वभाव में पाया जाता है। और यदि हम कभी पापमय क्रोधित व्यक्ति के अत्याचार से पीड़ित हुए हैं, तो भावनात्मक रूप से पापी और धर्मी क्रोध के मध्य भेद करना हमारे लिए बहुत कठिन हो सकता है। परन्तु यह एक ऐसा कार्य है जिसके लिए परमेश्वर हमें बुलाता है, और हमें अवश्य ही इसमें लगे रहना चाहिए।

अत: एक ख्रीष्टीय के जीवन में धर्मी क्रोध कैसे दिखता है।

  1. धर्मी क्रोध उस दुष्टता के द्वारा जागृत होता है जो परमेश्वर की पवित्रता को अपवित्र करती है और उसकी भलाई को दूषित करती है। हम बढ़ती हुई मात्रा में “चरित्रहीन लोगों के वासनायुक्त आचरण से दुखी” होते हैं, और “उनके कुकर्मों के कारण” व्यथित होते हैं (2 पतरस 2:7-8)। हम बढ़ती हुई मात्रा में अपनी प्रतिष्ठा से अधिक परमेश्वर की प्रतिष्ठा के विषय में चिन्ता करते हैं। इनमें से जिस भी क्षेत्र में हम स्वयं को कम पाते हैं, हमें वहीं अपने पश्चात्ताप, प्रार्थना, उपवास तथा बाइबलीय मनन के ध्यान को केन्द्रित करना चाहिए।
  1. धर्मी क्रोध सबसे पहले अपनी आँखों में लट्ठा देखता है (मत्ती 7:5)। हम अपने द्वारा परमेश्वर की भलाई को दूषित करने के कारण नम्र, शोकित, और क्रोधित होते हैं तथा हम किसी और को सम्बोधित करने से पहले स्वयं पश्चात्ताप करते हैं।
  1. धर्मी क्रोध दुष्टता से केवल क्रोधित ही नहीं, वरन् शोकित भी होता है। यीशु ने मन्दिर में मेज़ों को अवश्य उलट दिया, परन्तु वह उस पाप के कारण बहुत शोकित था जिसके कारण उसको ऐसा करने पड़ा (मत्ती 23:37)। दुष्टता पर बिना आँसू बहाए क्रोध करना प्रायः हमारे अन्दर प्रेम की कमी का प्रमाण होता है।
  1. धर्मी क्रोध परमेश्वर के प्रेम द्वारा शासित होता है और इसलिए यह व्यक्त करने में धीमा होता है, और यदि सम्भव है तो यह सबसे पहले प्रेम के छुटकारा देने वाले कार्यों को करता है। हम वास्तव में चाहते हैं कि दूसरों के लिए दया न्याय पर विजय प्राप्त करे (याकूब 2:13), हमारे प्रति यीशु की दया को स्मरण करते हुए और यह कि वह तलवार धारण करके आने से पहले क्रूस उठाते हुए आया।
  1. धर्मी क्रोध आवश्यकता पड़ने पर शीघ्रता से कार्य करता है। दुष्टता के कुछ रूप इस प्रकार के होते हैं जो माँग करते हैं कि हम शीघ्रता से बोलें और शीघ्रता से कार्य करें। उदाहरण के लिए भ्रूण-हत्या, जातीय और आर्थिक अन्याय, शोषण (भावनात्मक, शारीरिक, यौन), यौन तस्करी (sex trafficking), मानव दासता, व्याभिचार, शरणार्थियों की दुर्दशा, विश्वास के लिए सताव और इस प्रकार की अन्य दुष्टताएँ जो त्वरित बचाव की माँग करती हैं (नीतिवचन 24:11)।

हम इस युग में कभी भी सिद्ध रीति से क्रोध नहीं कर पायेंगे। परन्तु हम धर्मी क्रोध के अनुग्रह में बढ़ सकते हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम ऐसा करें। यह ख्रीष्ट के स्वरूप में बनते जाने का भाग है ( रोमियों 8:29)।

यीशु ने कहा, “यदि तुम मुझ से प्रेम करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे” (यूहन्ना 14:15)। और उसके वचन में पाई जाने वाली आज्ञाओं में एक आज्ञा यह है, “क्रोध तो करो पर पाप न करो।”

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जॉन ब्लूम
जॉन ब्लूम

शिक्षक और डिज़ायरिंग गॉड के सह-संस्थापक के रूप में सेवा करते हैं। वह तीन पुस्तकों अर्थात- Not by Sight, Things Not Seen, और Don’t Follow Your Heart के लेखक हैं। इनके पाँच बच्चे हैं और वे मिनियापुलिस में रहते हैं।

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