अब मृत्यु से भय नहीं रहा
अतः जिस प्रकार बच्चे माँस और लहू में सहभागी हैं, तो वह आप भी उसी प्रकार उनमें सहभागी हो गया, कि मृत्यु के द्वारा उसको जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली है, अर्थात् शैतान को, शक्तिहीन कर दे, और उन्हें छुड़ा ले जो मृत्यु के भय से जीवन भर दासत्व में पड़े थे। (इब्रानियों 2:14-15)
ख्रीष्ट कैसे हमें मृत्यु के भय से छुड़ाकर इस रीति से स्वतन्त्र करता है कि हम प्रेमपूर्ण परित्याग के साथ जी सकें और “वस्तुओं और परिजनों को, और इस नश्वर जीवन को भी” छोड़ने के लिए तैयार हो सकें हैं?
अतः जिस प्रकार बच्चे माँस और लहू में सहभागी हैं . . .
शब्द “बच्चे” पिछले पद से लिया गया है और यह ख्रीष्ट, अर्थात् मसीहा की आत्मिक सन्तान की ओर संकेत करता है। ये “परमेश्वर की सन्तान” भी हैं। दूसरे शब्दों में, ख्रीष्ट को भेजने में परमेश्वर की दृष्टि में विशेषकर उसकी “सन्तान” का उद्धार है। “अतः बच्चे माँस और लहू में सहभागी हैं . . . ।”
तो वह आप भी उसी प्रकार [माँस और लहू] में सहभागी हो गया . . .
परमेश्वर के पुत्र ने, जिसका अस्तित्व देहधारण से पूर्व सनातन वचन के रूप में था (यूहन्ना 1:1), माँस और लहू धारण किया, और उसने अपने परमेश्वरत्व को मनुष्यत्व पहनाया। वह पूर्ण रीति से मनुष्य बन गया और पूर्ण रीति से परमेश्वर बना रहा।
कि मृत्यु के द्वारा . . .
ख्रीष्ट का मनुष्य बनने का कारण ही मरना था। देहधारणपूर्व परमेश्वर के रूप में वह पापियों के लिए मर नहीं सकता था। परन्तु माँस और लहू में सहभागी होकर, वह ऐसा कर सकता था। उसका उद्देश्य मरना था। इसलिए, उसे नश्वर मनुष्य के रूप में जन्म लेना ही था।
कि . . . उसको जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली है, अर्थात् शैतान को, शक्तिहीन कर दे . . .
मरने के द्वारा, ख्रीष्ट ने शैतान को निष्प्रभावी बना दिया। कैसे? हमारे सारे पाप को ढाँपने के द्वारा (इब्रानियों 10:12)। इसका अर्थ है कि परमेश्वर के सामने हम पर आरोप लगाने के लिए कोई वैध आधार नहीं है। “परमेश्वर के चुने हुओं पर कौन दोष लगाएगा? परमेश्वर ही है जो धर्मी ठहराता है” (रोमियों 8:33)। वह किस आधार पर धर्मी ठहराता है? ख्रीष्ट के लहू के द्वारा (इब्रानियों 9:14; रोमियों 5:9)।
हमारे विरुद्ध शैतान का सबसे प्रभावशाली हथियार हमारा स्वयं का पाप है। यदि यीशु की मृत्यु इसे हटा देती है तो शैतान का प्रमुख हथियार उसके हाथ से छीन लिया गया है। उस अर्थ में वह शक्तिहीन ठहराया जाता है।
और उन्हें छुड़ा ले जो मृत्यु के भय से जीवन भर दासत्व में पड़े थे।
इसलिए, हम मृत्यु के भय से स्वतन्त्र हैं। परमेश्वर ने हमें धर्मी ठहराया है। हमारे सामने केवल भविष्य-का-अनुग्रह है। शैतान उस आज्ञप्ति को नहीं उलट सकता है। और परमेश्वर का उद्देश्य है कि हमारी अन्तिम सुरक्षा हमारे जीवनों पर अभी प्रभाव डाले। उसका उद्देश्य है कि वह सुखान्त वर्तमान के दासत्व और भय को हटा दे।



