“ऐसा कोई नहीं जो भलाई करता हो।” यह एक बहुत ही दृढ़ कथन है! परन्तु उन सभी अच्छे, सभ्य लोगों के विषय में क्या? जो समाज सेवा का कार्य करते हैं, जैसे कि अस्पताल खोलना, स्कूल खोलना, गरीबों की सहायता करना, खाना खिलाना, कम्बल बांटना आदि। और जो ईमानदार हैं, जो त्याग करते हैं, जो सही बात के लिए खड़े होते हैं, क्या वे अच्छे नहीं हैं? क्या वे भलाई नहीं करते हैं? इसलिए इस लेख में हम तीन मुख्य कारणों को देखने का प्रयास करेंगे कि इस कथन का अर्थ क्या है।
भले कार्यों में समस्या नहीं, परन्तु हृदय में है।
मनुष्य क्यों भलाई नहीं कर पाता है? यीशु ने कहा, “भला मनुष्य अपने हृदय के भले खज़ाने से भली बातों को ही निकालता है, पर बुरा मनुष्य अपने हृदय के बुरे खज़ाने से बुरी बातें निकालता है”(लूका 6: 45)। यदि जड़ में समस्या है, तो वह फल में दिखाई देती है। क्योंकि समस्या बाहर नहीं है, परन्तु हमारे भीतर है। बाइबल मनुष्य की सम्पूर्ण भ्रष्टता, नैतिक अयोग्यता के विषय में बताती है। मनुष्य इसलिए पाप करता है क्योंकि वह पूर्ण रूप से भ्रष्ट है। बाइबल बताती है कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है। जिस प्रकार से एक वायरस शरीर में घुसता है और पूरे शरीर को संक्रमित कर देता है। उसी प्रकार से पाप वायरस के सदृश हमारे पूरे हृदयों, सामर्थ्य व मनों को संक्रमित प्रेम तथा भलाई करने को विकृत कर दिया है।
इसलिए हमारा स्वभाव भ्रष्ट है और हम चाहे अच्छे काम भी कर रहे हैं, उस पर पाप का प्रभाव रहता है। उसके द्वारा परमेश्वर की महिमा नहीं होती है। यद्यपि लोग अच्छे काम करते हैं, परन्तु उनके अच्छे काम के पीछे भी स्वार्थ छिपा होता है। वे लोगों से प्रशंसा पाना चाहते हैं, उनकी मनसाएं त्रुटिपूर्ण होती हैं। वे स्वयं की महिमा करते हैं न कि परमेश्वर की। स्मरण रखें कि हम अपने भले कार्यों के द्वारा हम परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं। हमारे धर्म के काम मैले चिथड़ों के समान है (यशायाह 64:6)। क्योंकि पाप के कारण उसका सम्बन्ध परमेश्वर से जो भलाई का स्रोत है टूटा हुआ है, इसलिए मनुष्य भलाई नहीं कर पाता है।
परमेश्वर भलाई का स्रोत है।
परमेश्वर भला है, हम नहीं। यीशु ने कहा, परमेश्वर को छोड़ और कोई उत्तम नहीं ( लूका 18:19)। बाइबल बार-बार बताती है, यहोवा भला है, उसकी करुणा सदा की है ( भजन 100: 5)। दाऊद कहता है, परख कर देखो कि यहोवा कैसा भला है ( भजन 34: 8)। परमेश्वर की भलाई को हम क्रूस पर देखते हैं कि किस प्रकार से उसने अपने पुत्र को बलिदान किया है। हमारी स्थिति बहुत ही बुरी थी। हम अपने आपको बचा नहीं सकते थे, क्योंकि बाइबल बताती है, मनुष्य आत्मिक रूप में मरा हुआ है (इफिसियों 2:1)। हम अपने आपको बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते थे। हम पूरी तरह से निष्क्रिय थे, आशाहीन थे, असहाय थे। ऐसे समय में परमेश्वर पिता जो भलाई और प्रेम का स्रोत है, उसने यीशु ख्रीष्ट में अपना महान प्रेम और अपनी असीम भलाई को प्रदर्शित किया। जब हम पापी थे, ख्रीष्ट हमारे लिए मरा ( रोमियों 5: 5-8)। इसलिए हमें उसकी आवश्यकता है, जो भलाई का स्रोत है।
भलाई परमेश्वर की ओर से दान है।
परमेश्वर जो भलाई का स्रोत है, उसके द्वारा ही भलाई सम्भव है। जब तक पवित्र आत्मा हमारे भीतर कार्य नहीं करेगा तब तक हम भलाई कतई भी नहीं कर सकते हैं (तीतुस 3:3-8)। एक शारीरिक व्यक्ति भलाई नहीं कर सकता है। क्योंकि भलाई पवित्र आत्मा का फल है (गलातियों 5:22)। एक विश्वासी ही भले कार्य कर सकता है क्योंकि उसका सम्बन्ध भलाई का स्रोत परमेश्वर से है। हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि भलाई परमेश्वर का दान है और हम भलाई को कमा नहीं सकते है । यह हमें यीशु के कारण मिलता है। जब हम अपने पापों से पश्चाताप करते हैं, यीशु ख्रीष्ट पर विश्वास करते हैं, पवित्र आत्मा हमारे हृदय में भलाई को भरता है। तब हम वास्तव में सच्ची भलाई करना आरम्भ कर देते हैं। पौलुस इफिसुस के विश्वासियों को लिखता है कि विश्वास के द्वारा अनुग्रह से तुम्हारा उद्धार हुआ है, यह परमेश्वर का दान है। वह आगे कहता है कि हम उसके हाथ की कारीगरी हैं, जो ख्रीष्ट यीशु में उन भले कार्य के लिए सृजे गए हैं (इफिसियों 2: 8-10)। पौलुस विश्वासियों को निर्देश देता है, सब के साथ भलाई करें विशेषकर विश्वासी भाईयों के साथ (गलातियों 6:9-10)।