घमण्डी कार्य बनाम नम्र विश्वास

“उस दिन बहुत लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की और तेरे नाम से दुष्ट आत्माओं को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’” (मत्ती 7ः22)

“विश्वास” पर केन्द्रित हृदय और “कार्यों” पर केन्द्रित हृदय के बीच के अन्तर पर ध्यान दीजिए।

कार्यों पर केन्द्रित हृदय अहंकार को बढ़ाने वाली स्वयं की शक्ति से प्राप्त उपलब्धियों में सन्तुष्टि पाता है। यह एक सीधी पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास करेगा, या अपने कार्यक्षेत्र में अतिरिक्त उत्तरदायित्व लेगा, या युद्ध क्षेत्र में जीवन को जोखिम में डालेगा, या एक लम्बी दौड़ दौड़ने का कष्ट उठाएगा, या सप्ताहों तक धार्मिक उपवास करेगा — वह सब कुछ स्वयं की इच्छा शक्ति से तथा अपने शारीरिक बल के द्वारा किसी चुनौती पर विजय प्राप्त करने की सन्तुष्टि के लिए करेगा।

कार्यों पर केन्द्रित हृदय दूसरी दिशा मे भी जा सकता है और शिष्टाचार और शालीनता और नैतिकता का विरोध करके स्वतन्त्रता और स्वायत्तता और स्वयं की उपलब्धि के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त कर सकता है (गलातियों 5:19-21)। परन्तु यह तो वही स्वावलम्बी, स्वयं को ऊँचा करने वाली कार्य-केन्द्रित मानसिकता है — चाहे ये अनैतिक व्यवहार के रूप में हो या अनैतिकता के विरोध में युद्ध छेड़ने के रूप में हो। दोनों में समान बात यह है कि इनमें स्व-निर्देशन, आत्म-निर्भरता, और स्वयं को ऊँचा उठाने की इच्छा पाई जाती है। इन सब में, कार्य-केन्द्रित मानसिकता की आधारभूत सन्तुष्टि मुखर, स्वायत्त, और यदि सम्भव हो तो स्वयं के विजयी होने की प्रतिष्ठा में पाई जाती है।

विश्वास केन्द्रित हृदय इस से पूर्णतः भिन्न है। जब यह भविष्य की ओर देखता है तो इसकी इच्छाएँ कम प्रबल नहीं होती हैं। परन्तु वह उस पूर्ण सन्तुष्टि प्रदान करने वाले अनुभव की इच्छा करता है जो यीशु में परमेश्वर हमारे लिए है।

यदि “कार्य” स्वयं के द्वारा किसी बाधा को पार करने में सन्तुष्टि का अनुभव करना चाहते हैं, तो दूसरी ओर “विश्वास” परमेश्वर के द्वारा किसी बाधा को पार करने में सन्तुष्टि के अनुभव का आनन्द लेता है। कार्य इस बात में कि वे सक्षम, दृढ़ और चतुर हैं स्वयं के महिमान्वित होने के आनन्द को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। विश्वास परमेश्वर को उसके सक्षमता, सुदृढ़ता, बुद्धिमता और अनुग्रह के कारण महिमान्वित देखने के आनन्द को प्राप्त करने का प्रयास करता है। 

अपने धार्मिक रूप में, कार्य नैतिकता की चुनौती को स्वीकार करता है, बड़े प्रयासों से इसकी बाधाओं को पार करता है, और अपनी विजय को परमेश्वर के सम्मुख उसकी स्वीकृति एवं भरपाई के मूल्य के रूप में प्रस्तुत करता है। विश्वास भी नैतिकता की चुनौती को स्वीकार करता है, परन्तु वह स्वयं को ऐसे पात्र के समान दिखाता है जिसमें केवल परमेश्वर की सामर्थ्य दिखे। और जब विजय प्राप्त होती है, तो विश्वास इस बात में आनन्द मनाता है कि सम्पूर्ण महिमा और धन्यावाद परमेश्वर ही के लिए है।

साझा करें
जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

Articles: 362

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *