तब शाऊल ने शमूएल से कहा, “मैंने पाप किया है। सचमुच मैंने यहोवा की आज्ञा और तेरे वचनों का उल्लंघन किया है क्योंकि मैंने लोगों का भय माना, और उनकी बात सुनी।” (1 शमूएल 15:24)
शाऊल ने परमेश्वर के स्थान पर लोगों की आज्ञा क्यों मानी? क्योंकि उसने परमेश्वर के स्थान पर मनुष्यों का भय माना। उसने अनाज्ञाकारिता के ईश्वरीय परिणामों से अधिक आज्ञाकारिता के मानवीय परिणामों का भय माना। उसने परमेश्वर की अप्रसन्नता से अधिक लोगों की अप्रसन्नता का भय माना। और यह परमेश्वर का बहुत बड़ा अपमान है।
वास्तव में, यशायाह कहता है कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को तुच्छ जानते हुए इस बात से डरना कि मनुष्य क्या कर सकता है, एक प्रकार का घमण्ड है। वह परमेश्वर के इस भेदने वाले प्रश्न को उद्धरित करता है: “तेरा शान्तिदाता मैं, हाँ, मैं ही हूँ। तू कौन है जो नश्वर मनुष्य से भयभीत होता है और मनुष्य की सन्तान से डरता है जो घास के समान है, और अपने कर्ता यहोवा को भूल गया है?” (यशायाह 51:12-13)।
मनुष्य का भय सम्भवतः घमण्ड के जैसा प्रतीत न हो, परन्तु परमेश्वर तो यही कहता है “तू कौन है जो नश्वर मनुष्य से भयभीत होता है और मुझ अपने कर्ता को भूल गया है?”
बात यह है: यदि आप मनुष्य का भय मानते हैं, तो आपने परमेश्वर और उसके पुत्र यीशु की पवित्रता और उनके मूल्य को नकारना आरम्भ कर दिया है। परमेश्वर असीम रीति से मनुष्य से अधिक सामर्थी है। वह अधिक बुद्धिमान और असीम रीति से प्रतिफल और आनन्द से भरपूर है।
इस भय से कि मनुष्य क्या कर सकता है, परमेश्वर से फिर जाने का अर्थ है उन सब बातों को तुच्छ जानना जिनकी प्रतिज्ञा परमेश्वर अपने भय मानने वालों से करता है। यह बहुत बड़ा अपमान है। और इस प्रकार के अपमान से परमेश्वर को कोई भी प्रसन्नता नहीं हो सकती है।
दूसरी ओर, जब हम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को सुनते हैं और साहस के साथ उस पर भरोसा करते हैं, इस बात का भय मानते हुए कि हमारा अविश्वास परमेश्वर पर कितनी निन्दा लाएगा, तब वह अति सम्मानित होता है। और उस बात में उसे बहुत आनन्द आता है।