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आत्मिक वरदानों में परमेश्वर का अनुग्रह

जबकि प्रत्येक को एक विशेष वरदान मिला है, तो उसे परमेश्वर के विविध अनुग्रह के उत्तम भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाओ। (1 पतरस 4:10)

जब हम अपने आत्मिक वरदानों का उपयोग करते हैं तब हम अनुग्रह का भण्डारीपन कर रहे होते हैं— बीते हुए कल के अनुग्रह का नहीं, परन्तु आज के अनुग्रह का जो हमारी आवश्यकता के प्रत्येक क्षण में आ रहा होता है। और यह भविष्य-का-अनुग्रह “विविध अनुग्रह” है। यह विभिन्न प्रकार के रंग रूपों में आता है। यह देह में विविध प्रकार के आत्मिक वरदानों के होने का एक कारण है। जिस प्रकार से परमेश्वर के वरदान आपके जीवन में परमेश्वर की महिमा को प्रकट करेंगे वह मेरे जीवन से भिन्न होगा।

ख्रीष्ट की देह की जितनी आवश्यकताएँ है उतने ही भविष्य-के-अनुग्रह हैं—और उससे कहीं अधिक भी हैं। आत्मिक वरदानों का उद्देश्य उन आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर के भविष्य-के-अनुग्रह को प्राप्त करना और उन्हें प्रदान करना है।

परन्तु कोई पूछ सकता है, “आप क्यों सोचते हैं कि पतरस भविष्य-के-अनुग्रह के विषय में बात कर रहा है? क्या एक भण्डारी पहले से ही उपलब्ध घरेलू भण्डार को व्यवस्थित नहीं करता है?

मैं मुख्यतः इस कारण से सोचता हूँ कि पतरस भविष्य-के-अनुग्रह के विषय में बात कर रहा है क्योंकि इसका अगला ही पद यह व्याख्या करता है कि यह कैसे कार्य करता है, और यहाँ जो उद्धरण है वह भविष्य-के-अनुग्रह को निरन्तर दिए जाने का है। वह कहता है, “जो सेवा करे, उस सामर्थ्य से करे जो परमेश्वर देता है —जिस से सब बातों में यीशु ख्रीष्ट के द्वारा परमेश्वर की महिमा हो” (1 पतरस 4:11)। यहाँ पर “देता है” शब्द आया है न कि “दे चुका।” जब आप सेवा करें, तो जो आपको करने की आवश्यकता है उसे परमेश्वर से निरन्तर मिलने वाले अनुग्रह की सामर्थ्य में करें।

जब आप आने वाले कल में किसी की सेवा के लिए अपने आत्मिक वरादानों का उपयोग करते हैं, तो आप
“उस सामर्थ्य से सेवा करेंगे जो परमेश्वर देता है” — और वह आज नहीं वरन् आने वाले कल में ही दिया जाएगा। “जैसे तेरे दिन, वैसे ही तेरी सामर्थ्य हो” (व्यवस्थाविवरण 33:25)।

परमेश्वर दिन प्रतिदिन, क्षण प्रतिक्षण, उस “सामर्थ्य” को देता रहता है जिसमें हम सेवकाई करते हैं। वह ऐसा इसलिए करता है जिससे कि इस निरन्तर,अनन्त सामर्थ्य प्रदान करने वाले को महिमा मिले। “जो सेवा करे, उस सामर्थ्य से करे जो परमेश्वर देता है —जिस से सब बातों में यीशु ख्रीष्ट के द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।” 

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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