मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता। (गलातियों 2:21)
जब मैं छोटा बालक था और समुद्र तट पर लहरों के कारण असन्तुलित हो गया था, तो मुझे लगने लगा था कि मैं कुछ ही क्षणों में समुद्र के बीच में घसीट लिया जाऊँगा।
वह एक भयानक बात थी। मैंने अपने आपको सम्भालने का प्रयास किया और बाहर निकलने का उपाय देखने लगा। परन्तु मैं अपने पैरों को भूमि पर नहीं रख सका और तैरने के लिए जल का बहाव भी अत्यधिक तेज था। और वैसे भी मैं एक अच्छा तैराक नहीं था।
अपने भय में मैंने केवल एक ही बात सोची: क्या कोई मेरी सहायता कर सकता है? परन्तु मैं पानी के भीतर से पुकार भी नहीं सकता था।
जब मैंने अपने पिता के हाथ को अपनी ऊपरी भुजा पर एक सामर्थी पकड़ के साथ अनुभव किया तो यह मेरे लिए इस संसार का सबसे मधुर अनुभव था। मैं पूरी रीति से उनकी सामर्थ्य पर निर्भर हो गया। मैं उनकी इच्छा से उठा लिए जाने में आनन्दित था। मैंने कोई प्रतिरोध नहीं किया।
मेरे मन में यह विचार नहीं आया कि मैं इस बात को दिखाने का प्रयास करूँ की यह स्थिति इतनी भी बुरी नहीं है; अथवा यह कि मुझे अपने पिता की भुजा में अपनी भी कुछ सामर्थ्य को जोड़ना चाहिए। मैंने केवल इतना ही सोचा, हाँ! मुझे आपकी आवश्यकता है! मैं आपको धन्यवाद देता हूँ! मैं आपकी सामर्थ्य से प्रेम करता हूँ! मैं आपकी पहल से प्रेम करता हूँ! मैं आपकी पकड़ से प्रेम करता हूँ! आप महान् हैं!
उस निर्भर स्नेह की भावना में होकर कोई व्यक्ति घमण्ड नहीं कर सकता है। मैं उस निर्भर स्नेह को “विश्वास” कहता हूँ। और मेरे पिता, परमेश्वर के उस भविष्य-के-अनुग्रह के मूर्त रूप थे जिसकी मुझे अत्यधिक आवश्यकता थी और जिसकी मैं पानी के भीतर से लालसा कर रहा था। यह वह विश्वास है जो अनुग्रह की बढ़ाई करता है।
जब हम विचार करते हैं कि ख्रीष्टीय जीवन कैसे जीएँ तो हमारा सर्वोत्तम विचार यह होना चाहिए: मैं कैसे परमेश्वर के अनुग्रह की बड़ाई करूँ न कि उसे व्यर्थ ठहराऊँ? पौलुस इस प्रश्न का उत्तर गलातियों 2:20-21 में देता है, “मैं ख्रीष्ट के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, तो केवल उस विश्वास से जीवित हूँ जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिसने मुझे से प्रेम किया और मेरे लिए अपने आप को दे दिया। मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता।”
क्यों उसका जीवन परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता है? क्योंकि वह परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास रखने के कारण जीता है। विश्वास अनुग्रह को व्यर्थ ठहराने के स्थान पर सारा ध्यान उसकी ओर केन्द्रित करता है और उसकी बड़ाई करता है।