दुःखों के मध्य आशा

जब जीवन में दुख और पीड़ा आती है, तो सब कुछ बिखरता हुआ लगता है। हम अपनी सामर्थ्य, अपनी शान्ति, और कभी-कभी अपने जीवन जीने के उद्देश्य तक खो देते हैं। परन्तु उस अन्धकार के बीच एक अद्भुत सच्चाई है जो हमें सान्त्वना और बल प्रदान करती है वह यह बात है कि परमेश्वर अब भी हमारे साथ है।

वह यह प्रतिज्ञा नहीं करता कि वह हमें हर परीक्षा से बचा लेगा, पर वह इससे भी बड़ी प्रतिज्ञा करता है  कि “मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा और न तुझ से त्यागूँगा” (इब्रानियों 13:5)। उसकी अपरिवर्तनीय उपस्थिति हमारा स्थिर लंगर बन जाती है, जब बाकी सब कुछ अस्थिर लगता है। यह लेख हमें स्मरण दिलाता है कि जीवन के हर तूफ़ान में आशा है, क्योंकि परमेश्वर कभी हमारा साथ नहीं छोड़ता।

1. दुःखों के मध्य परमेश्वर की उपस्थिति हमारे जीवन का अटल लंगर है।

जब हम पीड़ा से गुजरते हैं,  तो यह पूछना स्वाभाविक है, “परमेश्वर कहाँ है?” सच्चाई यह है — परमेश्वर हमारे साथ है। परमेश्वर की उपस्थिति हमारी पीड़ा को समाप्त नहीं करती, पर हमें उसका सामना करने की शक्ति देती है। भजनकार दाऊद के लिए परमेश्वर की उपस्थिति एक लंगर के समान थी। वह अपना सम्पूर्ण भरोसा परमेश्वर की उपस्थिति में केन्द्रित करता है। इसीलिए वह कहता है कि “चाहे मैं मृत्यु की घोर अन्धकार की तराई में होकर चलूँ, फिर हानि से मैं न डरूँगा, क्योंकि तू मेरे साथ  रहता है” (भजन 23:4)।

विश्वास हमें दुख को एक नए दृष्टिकोण से देखने में सक्षम बनाता है। रोमियों 8:28 कहता है — “जो परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं।” इसका अर्थ है कि कोई भी पीड़ा, कोई भी निराशा, कोई भी आँसू व्यर्थ नहीं जाते। परमेश्वर कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी हमारे भले और अपनी महिमा के लिए उपयोग करता है।

बाइबल के पात्र हमें इन सच्चाईयों को सिखाते हैं।

  • यूसुफ़, जिसे उसके भाइयों ने धोखा दिया और जेल में डाल दिया, परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। युसुफ परमेश्वर की भलाई और सम्प्रभु उपस्थिति और योजना देखते हुए अपने भाइयो से कहता है  कि “तुमने तो मेरे साथ बुराई की ठानी थी, परन्तु परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया…” (उत्पत्ति 50:20)।
  • दानिय्येल, जिसे शेरों की मांद में डाल दिया गया था, उस प्रकरण में उसने इस सच्चाई को जाना कि परमेश्वर की उपस्थिति किसी भी खतरे से अधिक सामर्थी है।

इन पात्रों के जीवन हमें सिखाते हैं कि विश्वास का अर्थ एक कष्टरहित जीवन नहीं, बल्कि एक सुरक्षित जीवन है। जब कष्टों के समुद्र में सब कुछ बिखर जाता है, तब परमेश्वर की उपस्थिति हमारा लंगर बनती है और हमें,शान्ति और आशा प्रदान करती है। 

2. कठिन समय में भी अपनी दृष्टि अनन्त आशा पर लगाए रखिए, क्योंकि यीशु आपके साथ है।

जब जीवन दुख देता है, तब आशा ही हमें आगे बढ़ाए रखती है। पर मसीही आशा केवल मन की कल्पना नहीं है — यह परमेश्वर के वचनों पर भरोसा है, चाहे हम परिणाम न देख सकें।

इब्रानियों 12:2 हमें बुलाता है कि “हम अपनी दृष्टि यीशु पर लगाए रखें,” जिसने अपने आगे रखे आनन्द के कारण क्रूस को सहा। उसी प्रकार, हम भी दुख का सामना इस विश्वास से कर सकते हैं कि परमेश्वर ने हमारे लिए कुछ महान तैयार किया है।
रोमियों 8:18 हमें याद दिलाता है — “इस समय के दु:ख उस महिमा के योग्य नहीं हैं जो हम पर प्रगट होनेवाली है।”

हम इस स्थायी आशा में कैसे जी सकते हैं?

  • प्रतिदिन परमेश्वर के समीप रहें। सच्चे मन से प्रार्थना करें। उसके वचन को पढ़ें ताकि उसके वादों को याद रख सकें।
  • अपना दृष्टिकोण बदलें। “क्यों मैं?” पूछने के बजाय, यह पूछें — “परमेश्वर मुझे इससे क्या सिखा रहा है?”
  • दूसरों को सान्त्वना दें। जब आपने अपने दुखों में परमेश्वर की विश्वासयोग्यता देखी है, तो उसे दूसरों के साथ बाँटें।

जब हम अपनी दृष्टि यीशु पर लगाए रखते हैं, तब भी यदि आँधियाँ चलती रहें — हम दृढ़ रहते हैं, क्योंकि उसकी उपस्थिति हमें थामे रहती है।

आपको अपने दुखों का सामना अकेले नहीं करना है। वही परमेश्वर जो यूसुफ़ के साथ कुएँ में था, दानिय्येल के साथ शेरों की मांद में था, और पौलुस के साथ जेल में था — आज आपके साथ भी है। कोई भी पीड़ा आपको उसके प्रेम से अलग नहीं कर सकती। कोई भी अंधकार उसकी ज्योति को मिटा नहीं सकता। उसकी उपस्थिति सदा रहती है, उसके वचन अटल हैं, और उसकी आशा कभी समाप्त नहीं होती। इसलिए जब जीवन का बोझ असहनीय लगे, इस सच्चाई को थामे रहें: परमेश्वर आपके साथ है। वह आपके तूफ़ान में आपका लंगर है और आपकी कभी न मिटनेवाली आशा है।

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रोहित मसीह
रोहित मसीह

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

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