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अपने हृदय में ख्रीष्ट के वचन बसने दें।

ख्रीष्ट के वचन को अपने हृदय में बहुतायत से बसने दो…(कुलुस्सियों 3:16)

हम जिस संसार में रहते हैं, वह हमें सिखाता है कि अपने मस्तिष्क को खाली करो, सारी बातें मन से बाहर निकाल दो, केवल योग के द्वारा ईश्वर पर ध्यान दो। अपने दिल को साफ रखो तो सब ठीक हो जाएगा और तुम आनन्दित रहोगे। परन्तु बाइबल एक ख्रीष्टीय जन को मन या मस्तिष्क खाली करने का निर्देश नहीं देती, परन्तु इसके विपरीत बाइबल निर्देश देती है कि वे अपने मन/मस्तिष्क व हृदय को ख्रीष्ट के वचन से भरें।

 इसलिए इस लेख में हम देखेंगे कि जब पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों को निर्देश देता है कि अपने हृदय में ख्रीष्ट के वचन को अधिकाई से बसने दो (कुलुस्सियों 3:16)। तो इसका क्या अर्थ है? ख्रीष्ट के वचन को हृदय और मस्तिष्क में बसाना। उसके द्वारा नियन्त्रित होना, चलित होना। वचन से ओत-प्रोत होना, सराबोर होना है।

जब वचन हमारे जीवन का केन्द्र बन जाता है, तो वह हमारे जीवन व आचरण को प्रभावित करता है। यह प्रभाव दिखाई देगा हमारे बोलने में, हमारे निर्णय में और हमारे दृष्टिकोण में। इस वचन का प्रभाव हमारे संसार के प्रति सही दृष्टिकोण को निर्मित करेगा या आकार देगा। 

 क्या आप जानते हैं कि जो शब्द हम बोलते हैं, या जो कार्य हम करते हैं वे हमारे हृदय में जो बसा हुआ है, उसी के नियन्त्रण में होकर करते हैं। जैसे कि जिस प्रकार की बोली हम बोलते हैं, हमारे व्यवहार, विभिन्न परिस्थिति में हमारे प्रतिउत्तर तथा प्रतिक्रिया, हमारी भावनाएँ, दिखाती हैं कि हमारे हृदय में क्या बसा हुआ है। 

उदाहरण के रूप में, यदि नल में दूषित जल है तो दूषित जल निकलेगा। यदि भीतर स्वच्छ पेय जल है, तो स्वच्छ पेय जल निकलेगा। इसी प्रकार, यदि हमारे भीतर ख्रीष्ट का वचन पाया जाता है, तो वचन ही हमारे व्यवहार में, छोटी छोटी गतविधियों में बाहर दिखाई देगा अर्थात् वचन हमें प्रभावित करेगा। क्योंकि वचन हमारे भीतर बसा हुआ है तो यह हमें चलाता है, नियन्त्रित करता है, संसार को देखने का दृष्टिकोण भी बदल देता है।

ख्रीष्ट के वचन को अपने हृदयों में बसाने के लिए हम क्या करें? 

वचन को अपने हृदयों में बसाना एक रात में नहीं हो सकता है। इसमें अनुशासन की आवश्यकता है। इसके लिए समर्पण की आवश्यकता है। इसके लिए, हमें वचन पढ़ना है। हमें वचन में पर्याप्त समय बिताना है। इसका अर्थ यह है कि वचन को सुव्यवस्थित तथा योजनाबद्ध रीति से पढ़ना है। वचन को मुखाग्र करना है। वचन पर मनन करना है। प्रार्थना के साथ वचन को पढ़ना है। अन्य ख्रीष्टियों के साथ वचन पढ़ना है। अपने परिवारों में, बच्चों के साथ वचन पढ़ना है। कलीसिया में हमें प्रति रविवार को वचन सुनने की भूख के साथ आना होगा। यह सत्य है कि ख्रीष्ट के वचन को अपने हृदयों में बसाने के लिए और कोई सरल उपाय नहीं है।

यदि आज आप एक ख्रीष्टीय हैं तो ख्रीष्ट के वचन को अपने हृदयों में बसने दें। क्योंकि बिना वचन के हम ख्रीष्टीय जीवन में बढ़ नहीं सकते हैं। ख्रीष्ट के वचन को अपने हृदयों में बसाने से हमारे व्यवहार तथा आचरण में परिवर्तन दिखाई देगा, हम परीक्षाओं के ऊपर विजय प्राप्त करेने के लिए और अधिक सुसज्जित होंगे, हम पाप से बचेंगे और हम परमेश्वर की आराधना धन्यवाद के साथ विपरीत परिस्थिति में भी करेंगे। विषम परिस्थिति में हम विचलित नहीं होंगे। 

हम प्रतिदिन के जीवन में क्यों उदास होते हैं? हम क्यों क्रोधित हो जाते हैं? हम क्यों चिंतित हो जाते हैं? इसका कारण यह है कि हम ख्रीष्ट के वचन को अपने हृदयों में बसाया नहीं है। यदि आज आप विश्वासी हैं तो आपको वचन को अपने हृदय में बसाने की आवश्यकता है। कम मात्रा में नहीं परन्तु बहुतायत से बसाने की आवश्यकता है। क्योंकि यह आज्ञा है, सुझाव नहीं है। वचन ही हमारे लिए पर्याप्त है। 

आज आपके हृदय में, मस्तिष्क में क्या बसा है? क्या वचन बसा है या संसार की वस्तुएँ भरी हुई है? इस बात पर विचार करें और अपने जीवन का निरीक्षण कीजिए। प्रियों, मैं आपको उत्साहित करना चाहूँगा कि ख्रीष्ट के वचन में डटे रहिए, लगे रहिए, बने रहिए। इसलिए वचन को पढ़िए, अध्ययन कीजिए, मनन कीजिए, मुखाग्र कीजिए, संचय कीजिए और वचन में अपने आपको सराबोर होने दीजिए। 

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अन्शुमन पाल
अन्शुमन पाल

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और प्रभु की सेवा में सम्मिलित हैं।

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