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 धैर्य का प्रतिफल

“तुमने तो मेरे साथ बुराई करने की ठानी थी, परन्तु परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया, जैसा कि आज के दिन हो रहा है कि बहुत से लोगों के प्राण बचें।” (उत्पत्ति 50:20)

उत्पत्ति 37-50 में पाई जाने वाली यूसुफ की कहानी इस बात के लिए एक बड़ी शिक्षा देती है कि क्यों हमें परमेश्वर के सम्प्रभु तथा भविष्य-के-अनुग्रह पर विश्वास करना चाहिए।

यूसुफ अपने भाइयों के द्वारा बँधुवाई में बेच दिया गया है और इस बात ने निश्चय ही उसके धैर्य की अद्भुत रीति से परीक्षा ली होगी। किन्तु मिस्र में उसे पोतीपर के घर में एक अच्छा कार्य सौंपा जाता है। और जब वह आज्ञाकारिता के उस अनियोजित स्थान पर खराई के साथ कार्य कर रहा होता है, तभी पोतीपर की पत्नी उसकी सत्यनिष्ठा के विषय में झूठ बोलती है और उसे बन्दीगृह में डलवा देती है – जो उसके धैर्य की एक और बड़ी परीक्षा थी।

किन्तु एक बार फिर से सब कुछ बढ़िया होने लग जाता है और बन्दीगृह का प्रधान उसे उत्तरदायित्व और सम्मान देता है। परन्तु जब वह सोचता है कि उसे फ़िरौन के उस प्रधान पिलानेहार की ओर से दण्डविराम मिलने वाला है जिसके स्वप्न का अर्थ उसने बताया था तब वह पिलानेहार उसे अगले दो और वर्षों के लिए भूल जाता है। यह उसके धैर्य की एक और कष्टदायक परीक्षा थी।

अन्ततः, इन सभी बाधाओं और विलम्ब का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। यूसुफ मिस्र का प्रधानमन्त्री बनने के लिए उन्नत किया गया, जो केवल फ़िरौन ही के अधीन है। ऐसा होता है कि वह अपने उन्हीं भाइयों को भुखमरी से बचाता है जिन्होंने उसे बँधुवाई में बेचा था। यूसुफ अपने लम्बे समय से बिछड़े हुए भाइयों से कहता है “परमेश्वर ने मुझे तुम से पहले भेजा कि पृथ्वी पर तुम्हारे वंश की रक्षा की जाए और महान् छुटकारा देकर तुम्हें जीवित रखे। . . . तुमने तो मेरे साथ बुराई करने की ठानी थी परन्तु परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया जैसा कि आज के दिन हो रहा है कि बहुत से लोगों के प्राण बचें” (उत्पत्ति 45:7, 50:20)।

इतने लम्बे वर्षों की बँधुवाई और शोषण के मध्य में यूसुफ के लिए धैर्य की कुँजी क्या रही होगी? इसका उत्तर है: परमेश्वर का सम्प्रभु तथा भविष्य-का-अनुग्रह — अर्थात् परमेश्वर का ऐसा सम्प्रभु अनुग्रह जो अनियोजित स्थान तथा अनियोजित स्थिति को ऐसे आनन्दमय अन्त के रूप में परिवर्तित कर सकता है जो कल्पना से भी बढ़कर है।

हमारे धैर्य के लिए भी यही कुँजी है। क्या हम इस बात पर विश्वास करते हैं कि परमेश्वर हमारे जीवन की सबसे विचित्र तथा अत्यन्त दुःखपूर्ण स्थिति में भी कार्य कर रहा है?

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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