असहायों के लिए एक शरणस्थान
तेरी भलाई कितनी महान है, जो तू ने . . . उन पर की है जो तेरी शरण में आते हैं। (भजन 31:19)
भविष्य-के-अनुग्रह का अनुभव प्रायः इस बात पर निर्भर है कि क्या हम परमेश्वर की शरण में आएँगे, या क्या हम उसकी देखभाल पर सन्देह करेंगे और अन्य आश्रयों की ओर दौड़ेंगे।
उन लोगों के लिए जो परमेश्वर में शरण लेते हैं, भविष्य-के-अनुग्रह की प्रतिज्ञाएँ अनेक और बहुमूल्य हैं।
- उसकी शरण लेने वालों में से कोई भी दोषी न ठहरेगा। (भजन 34:22)
- जो उसमें शरण लेते हैं उन सब की वह ढाल है। (2 शमूएल 22:31)
- क्या ही धन्य हैं वे सब जो उसकी शरण लेते हैं। (भजन 2:12)
- यहोवा भला है, संकट के समय दृढ़ गढ़ है और उनकी सुधि लेता है जो उसके शरणागत हैं। (नहूम 1:7)
परमेश्वर में शरण लेने के द्वारा हम न ही कुछ अर्जित करते हैं और न ही कोई विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं। इस कारण से छिपना क्योंकि हम निर्बल हैं और हमें सुरक्षा की आवश्यकता है, कोई ऐसा कार्य नहीं है जो हमारी आत्म-निर्भरता की सराहना करता है। यह तो इस बात को प्रकट करता है कि हम स्वयं को असहाय और छिपने के स्थान को बचाव का स्थान मानते हैं।
उन सब प्रतिज्ञाओं में जिन्हें मैंने अभी-अभी उद्धरित किया है, परमेश्वर से महान् आशिष पाने की माँग यह है कि हम उसमें शरण लें। यह माँग तो योग्यता से प्राप्त करने वाला नहीं है; यह माँग तो हताशा की है और निर्बलता को स्वीकार करने की है तथा आवश्यकता के होने की है और भरोसा करने की है।
हताशा न तो माँग करती है और न ही यह किसी बात के योग्य है; यह तो दया की याचना करती है और अनुग्रह की आशा करती है।



