गर्भपात एक पाप है।
क्या आपने ध्यान दिया है कि हमारा परिवार, समाज, देश और सम्पूर्ण विश्व किधर अग्रसर हो रहा है। हमारे समाज में मनुष्य के जीवन का मूल्य कितना सस्ता होता जा रहा है। लोग वही कार्य कर रहे हैं जो परमेश्वर के विरुद्ध पाप है। भारत में गर्भपात दर के अनुसार- 1000 में से 47 बेटी शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता है। यह एक ऐसा घिनौना कार्य है, जो परमेश्वर की दृष्टि में पाप है। आइए हम मुख्यतः तीन कारणों को जानें कि क्यों गर्भपात घोर पाप है:
1 गर्भपात परमेश्वर के स्वरूप को समाप्त करना है:
पवित्रशास्त्र बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप और समानता में बनाया है (उत्पत्ति 1:26-27), ताकि हम मनुष्य इस संसार में परमेश्वर के स्वरूप को प्रतिबिम्बित करें, उसके स्वरूप का प्रतिनिधित्व करें। परमेश्वर चाहता है कि सम्पूर्ण संसार उसके स्वरूप से भर जाए, इसीलिए परमेश्वर के स्वरूप को नष्ट करना है अर्थात् मनुष्य की हत्या करना पाप है।
हर प्रकार की हत्या चाहे एक वृद्ध मनुष्य की हो या गर्भ में पल रहे शिशु का गर्भपात हो, ये दोनों कार्य परमेश्वर की दृष्टि में घोर जघन्य पाप है।
हर प्रकार की हत्या चाहे एक वृद्ध मनुष्य की हो या गर्भ में पल रहे शिशु का गर्भपात हो, ये दोनों कार्य परमेश्वर की दृष्टि में घोर जघन्य पाप है, हम ऐसा करने के द्वारा परमेश्वर के स्वरूप को नष्ट करने का दुःसाहस करते हैं।
2 गर्भपात परमेश्वर के अधिकार को छीनने का दुःसाहस है:
केवल सृष्टिकर्ता परमेश्वर के पास ही जीवन और मृत्यु का अधिकार है। परमेश्वर ही प्रत्येक को जीवन देता है और केवल उसी के पास अधिकार है कि जीवन वापस ले। किसी भी मनुष्य के पास कोई भी अधिकार नहीं है कि जिसे परमेश्वर जीवन देता है, उसका जीवन छीन लिया जाए अर्थात् हत्या करके मार दिया जाए।
क्योंकि जीवन और मृत्यु का अधिकार केवल परमेश्वर के पास है इसलिए किसी भी देश, संविधान, अधिनियम, व व्यक्ति विशेष के पास यह अधिकार नहीं है कि परमेश्वर के द्वारा दिए गए जीवन को छीने। प्रत्येक अजन्मे और गर्भ में पल रहे शिशु के पास परमेश्वर के द्वारा दिए गए जीवन को जीने का अधिकार है। परमेश्वर प्रदत्त इस अधिकार को किसी भी राजनीतिक दल, देश, अधिनियम, संसारिक न्यायालयों, व्यक्ति विशेष के द्वारा छीना नहीं जाना चाहिए।
इसलिए गर्भपात जैसा कुकृत्य परमेश्वर के दृष्टि भयंकर पाप है। क्योंकि हम ऐसा करने के द्वारा परमेश्वर के अधिकार के प्रति बलवा करते हैं। जीवन देने और लेने के अधिकार को छीनने का दुःसाहस करते हैं।
3 गर्भपात परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध है:
परमेश्वर की दृष्टि में प्रत्येक जन का जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण है। चाहे वह गर्भ में पल रहे कुछ ही सप्ताह का शिशु का गर्भपात करके हत्या करना हो या चाहे किसी भी वयस्क व वृद्ध व्यक्ति की गोली मारकर हत्या करना हो, ये दोनों परमेश्वर की दृष्टि में पाप है। दोनों स्थिति में जीवन को छीना जा रहा है। दोनों स्थितियों में परमेश्वर अपराधियों का न्याय करेगा और दण्डित करेगा। परमेश्वर प्रत्येक घात किए गए जीवन का बदला लेगा (उत्पत्ति 4:15)
परमेश्वर ने अपने लोगों को दस आज्ञाओं में से एक आज्ञा यह दी कि “तू हत्या न करना” (निर्गमन 20:13)। गर्भपात करना एक हत्या है, जो परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध है, एक घोर पाप है। प्रत्येक जो गर्भपात करता व करवाता है, वह हत्यारा है। वह परमेश्वर की दृष्टि में पापी है, जिसका न्याय परमेश्वर स्वयं करेगा।
प्रिय पाठकों, हमारा आपसे करबद्ध निवेदन है कि कृपया परमेश्वर के द्वारा दिए गए जीवन के मूल्य को समझिए। गर्भपात जैसा घोर पाप मत होने दीजिए। क्योंकि प्रत्येक शिशु जो गर्भ में है, उसमें परमेश्वर के द्वारा दिया गया जीवन है, उसमें परमेश्वर का स्वरूप है। इसलिए उस जीवन और परमेश्वर के स्वरूप को गर्भपात करवाने के द्वारा नष्ट मत कीजिए। यह एक हत्या है, परमेश्वर इसका न्याय करेगा।



