धन से प्रेम करने का अर्थ क्या है
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

धन का लोभ सब प्रकार की बुराईयों की जड़ है। (1 तीमुथियुस 6:10)

जब पौलुस ने यह लिखा तो उसका क्या अर्थ था? उसके कहने का अर्थ यह नहीं हो सकता है कि आप जब भी पाप करते हैं तो सदैव धन के विषय में ही सोच रहे होते हैं। क्योंकि अनेकों पाप तब होते हैं जब हम धन के विषय में नहीं सोच रहे होते हैं।

मेरे विचार से: पौलुस के लिखने का अर्थ यह था कि संसार की सभी बुराइयाँ एक विशेष प्रकार के हृदय से उत्पन्न होती हैं, अर्थात् ऐसे हृदय से जो धन से प्रेम करता है।

तो फिर धन से प्रेम करने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ, नोट अथवा तांबे या चाँदी से बने सिक्कों की सराहना करना नहीं है। यह जानने के लिए कि धन से प्रेम करने का क्या अर्थ है, आपको यह पूछना होगा कि धन क्या है? मैं इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से दूँगा: धन तो मात्र एक प्रतीक है जो मानव संसाधनों की ओर संकेत करता है। धन उस बात की ओर संकेत करता है जो आप मनुष्यों से — परमेश्वर के विपरीत अन्य मनुष्यों से —प्राप्त कर सकते हैं। 

परमेश्वर धन की मुद्रा में नहीं किन्तु अनुग्रह की मुद्रा में व्यवहार करता है: “हे सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ! और जिनके पास रूपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ!” (यशायाह 55:1)। धन मानव संसाधनों की मुद्रा है। इसलिए वह हृदय जो धन से प्रेम करता है, वह ऐसा हृदय है जो पूर्ण रीति से अपनी आशाओं को उस पर टिकाता है, और अपने सुख-विलास का पीछा करता है, और जो कुछ मानव संसाधन उसे दे सकते हैं उन पर अपना भरोसा रखता है।

अतः, धन का लोभ वास्तव में धन पर विश्वास करने के ही समान है— अर्थात् ऐसा विश्वास (भरोसा, आत्मविश्वास, आश्वासन) कि धन आपकी आवश्यकताओं को पूरा करेगा और आपको प्रसन्न रखेगा।

धन का लोभ, परमेश्वर से प्राप्त होने वाले भविष्य-के-अनुग्रह का विकल्प है। यह तो भविष्य में प्राप्त होने वाले मानवीय संसाधनों पर विश्वास रखना है — उस प्रकार की वस्तुएँ जिनको आप धन से प्राप्त कर सकते हैं या सुरक्षित कर सकते हैं। इसलिए धन का लोभ या धन पर भरोसा करना, परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर अविश्वास करने का आधार है। मत्ती 6:24 में यीशु ने कहा, “कोई भी व्यक्ति दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता,…तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।”

आप एक ही समय में परमेश्वर और धन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। एक पर विश्वास करना तो दूसरे पर अविश्वास करने के समान है। एक हृदय जो धन का लोभी है — आनन्द के लिए धन पर निर्भर है—वह उन सब पर निर्भर नहीं है जो कि परमेश्वर हमारे लिए यीशु में होकर हमारी आत्माओं की संतुष्टि के लिए है।   

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