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सेवकाई — जीवन से अधिक महत्वपूर्ण

“मैं अपने प्राण को किसी प्रकार भी अपने लिए प्रिय नहीं समझता, यदि समझता हूँ तो केवल इसलिए कि अपनी दौड़ को और उस सेवा को जो मुझे प्रभु यीशु से मिली है पूर्ण करूँ।” (प्रेरितों के काम 20:24)

नए नियम के अनुसार, “सेवकाई” या “सेवा” वह कार्य है जिसे सब ख्रीष्टीय करते हैं। इफिसियों 4:11-12 के अनुसार, पास्टरों का उत्तरदायित्व है कि वे सेवा कार्य के लिए पवित्र लोगों को तैयार करें। परन्तु सेवकाई के कार्य को साधारण ख्रीष्टीय लोग ही करते हैं।

जिस प्रकार एक ख्रीष्टीय दुसरे ख्रीष्टीय से भिन्न हैं उसी प्रकार उनकी सेवकाई भी भिन्न-भिन्न दिखाई देती है। यह सेवकाई कोई एल्डर (प्राचीन) या डीकन (धर्मसेवक) जैसे पद का होना नहीं है; यह तो एक ऐसी जीवनशैली है जो ख्रीष्ट की बड़ाई करने और लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए समर्पित है।

इसका अर्थ है कि हम “जहाँ तक अवसर मिले सब के साथ भलाई करें, विशेषकर विश्वासी भाइयों के साथ” (गलातियों 6:10)। भले ही हम साहूकार हों या राजमिस्त्री हों, इसका अर्थ यह है कि हमारा लक्ष्य परमेश्वर की महिमा के लिए अन्य लोगों के विश्वास और पवित्रता को विकसित करना है।

अपनी सेवकाई को पूरा करना जीवित रहने से अधिक महत्वपूर्ण है। यही दृढ़ विश्वास उन लोगों के जीवनों  को सब की दृष्टि में प्रेरणाप्रद बनाती है जिन्होंने अपने  जीवन को मौलिक रीति से परमेश्वर को समर्पित कर दिया है। उनमें से अधिक लोग वैसे बात करते हैं जैसा पौलुस ने यहाँ प्रेरितों के काम 20:24 में बात की: “मैं अपने प्राण को किसी प्रकार भी अपने लिए प्रिय नहीं समझता हूँ , यदि समझता हूँ तो केवल इसलिए कि अपनी दौड़ को और उस सेवा को जो मुझे प्रभु यीशु से मिली है पूर्ण करूँ।” उस सेवकाई को करना जिसे परमेश्वर हमें करने के लिए देता है जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण है।

आप ऐसा सोच सकते हैं कि अपनी सेवकाई को पूर्ण करने के लिए आपको अपने जीवन को बचाना होगा। परन्तु इसके विपरीत, यह सम्भव है कि आपके जीवन खोने की रीति आपकी सेवकाई का शिखर हो। यीशु के साथ तो ऐसा ही था — जबकि वह अपने तीसवें दशक में ही था।

हमें अपनी सेवकाई पूर्ण करने के लिए स्वयं को जीवित रखने के विषय में चिन्तित नहीं होना चाहिए। केवल परमेश्वर ही हमारी सेवकाई के लिए नियुक्त समय को जानता है। वह निर्णय लेगा कि हमारी मृत्यु कब हमारी सेवकाई में रुकावट नहीं, परन्तु हमारी सेवकाई का अन्तिम कार्य होगी।

हेनरी मार्टिन सही थे जब उन्होंने कहा, “यदि [परमेश्वर] के पास मेरे लिए कार्य है, तो मैं नहीं मर सकता।” दूसरे शब्दों में मैं तब तक अमर हूँ जब तक मेरा कार्य पूरा न हो जाए। इसलिए, सेवकाई जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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