अपने प्राण को दीनता से पुष्ट करें

यदि आप कुछ समय से ख्रीष्टीय रहे हैं, तो सम्भवत: आपने निम्नलिखित पदों को बिना प्रयास के स्मरण कर लिया होगा, क्योंकि आपने इन पदों को बहुत बार उद्धृत होते हुए सुना है:

तू सम्पूर्ण हृदय से यहोवा पर भरोसा रखना,

और अपनी समझ का सहारा न लेना। 

उसी को स्मरण करके अपने सब कार्य करना,

तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा। (नीतिवचन 3:56)

यह प्रतिज्ञा अत्यन्त प्रिय है क्योंकि यह हमें स्वतन्त्र करती है। हम सीमित हैं और बहुत कुछ है जो हमारी समझ से परे है, और इस बात को हम कभी-कभी तीव्रता से अनुभव करते हैं। परन्तु सर्वज्ञानी पर भरोसा करने की इस आज्ञा में, हम शरण पाने का एक स्थान पाते हैं जो हमें अपना मानसिक सन्तुलन बनाए रखने में सहायता करता है। हम इस प्रतिज्ञा में शान्ति पाते हैं कि यदि हम इस करुणामयी आज्ञा का पालन करने के लिए नम्र होंगे, तो परमेश्वर हमारे पथ को निर्देशित करेगा।

हमें यह स्मरण दिलाये जाने की आवश्यकता है कि हमारी अपनी बुद्धि कितनी अविश्वासनीय है।

“हमें स्मरण दिलाए जाने की आवश्यकता है कि हमारी अपनी समझ कितनी अविश्वसनीय है।”

मैं सोचता हूँ कि ऐसा क्यों है कि, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि इन्हें इतने वर्षों में इतनी कम उद्धरित होते हुए सुना है, हम अगले पदों से इतने परिचित नहीं प्रतीत होते हैं:

अपनी दृष्टि में तू बुद्धिमान न बनना।

यहोवा का भय मानना और बुराई से विमुख रहना।

इससे तेरा शरीर स्वस्थ रहेगा

तथा तेरी हड्डियों को पुष्टता प्राप्त होगी। (नीतिवचन 3:7-8)

मैं सोचता हूँ कि परमेश्वर द्वारा पुष्टता देने की प्रतिज्ञा हमारे लिए लगभग उतनी ही मूल्यवान होगी जितना परमेश्वर प्रदत्त मार्गदर्शन मूल्यवान है।

एक समान परन्तु पूर्ण रीति से नहीं

यह स्पष्ट है कि लेखक चाहता था कि उसका पुत्र (नीतिवचन 3:1) — और हम शेष लोग—इन 8 पंक्तियों (चार पदों) को एक साथ पढ़े। मैं नहीं साचता कि वह चाहता था कि उन्हें अलग किया जाना चाहिए, क्योंकि वे इब्रानी कविता और बुद्धि साहित्य में समरूपता का निर्माण करती हैं:

  • आज्ञा, “तू सम्पूर्ण हृदय से यहोवा पर भरोसा रखना”,  “अपनी दृष्टि में तू बुद्धिमान न बनना” के समान है;
  • “अपनी समझ का सहारा न लेना”, “यहोवा का भय मानना और बुराई से विमुख रहना” के समान है;
  • और पद 6 में प्रतिज्ञा (“तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा”) 8 पद में वर्णित प्रतिज्ञा (“इससे…तेरी हड्डियों को पुष्टता प्राप्त होगी”) के समान है।

इस प्रकार की समरूपता की विशिष्टता यह है कि यह लेखक को ऐसे कथन करने देता है जो एक दूसरे से सम्बन्धित हैं परन्तु अनावश्यक रीति से दोहराए नहीं जाते हैं। पद 5-6 तथा पद 7–8 की बातों में एक स्पष्ट सम्बन्ध है, परन्तु वे पूर्ण रीति से एक ही बात नहीं कहते हैं। सम्पूर्ण हृदय से परमेश्वर पर भरोसा रखना तथा अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न बनना दोनों एक ही बात नहीं हैं (यद्यपि हम परमेश्वर पर भरोसा करेंगे तो हम अवश्य ही अपनी दृष्टि में बुद्धिमान नहीं बनेंगे)।

परमेश्वर दीन जन को क्या देता है

यह नीतिवचन जो कर रहा है वह है परमेश्वर की बुद्धि के प्रकाश में एक गहन सत्य के हीरे को मोड़ रहा है जिससे कि हमें उस प्रकाश का एक भिन्न रूप दिखाई दे। यह गहरा सत्य क्या है? हम अध्याय में आगे और अधिक स्पष्ट रूप से सीखते हैं: “ठट्टा करने वालों को [परमेश्वर] ठट्टों में उड़ाता है, और दीन-दुखियों पर अनुग्रह करता है” (नीतिवचन 3:34)।

नीतिवचन 3:34 सम्पूर्ण बाइबल में एक बहुत अधिक उद्धृत किया गया पद है। यदि आप इस पद से परिचित नहीं हैं, तो हो सकता है कि आप पद के यूनानी अनुवाद (सेप्टुआजेंट से) से अधिक परिचित हैं, जो कि दोनों प्रेरित याकूब और पतरस उद्धृत करते हैं: “परमेश्वर घमण्डियों का विरोध करता पर दीन लोगों पर अनुग्रह करता है” (याकूब 4:6; 1 पतरस 5:5)।

“परमेश्वर के सम्मुख दीनता को बढ़ाना हमारे प्राणों के लिए एक सर्वाधिक स्वस्थ बातों में से एक है।”

इसी सत्य-हीरा को लेखक इस अध्याय में प्रदर्शित करता है: परमेश्वर दीनों पर अनुग्रह करता और अपनी कृपा दिखाता है। जब वह इस हीरे को एक रीति से मोड़ता है, तो परमेश्वर की बुद्धि का प्रकाश पद 5–6 को दिखाता है (“तू सम्पूर्ण हृदय से यहोवा पर भरोसा रखना…तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा”)। जब वह इसे दूसरे रीति से मोड़ता है, तो परमेश्वर की बुद्धि का प्रकाश पद 7-8 को दिखाता है (“अपनी दृष्टि में तू बुद्धिमान न बनना … [इससे] तेरी हड्डियों को पुष्टता प्राप्त होगी”)। जीवन में मार्गदर्शन और प्राण  की पुष्टता दोनों ही अनुग्रह हैं जिन्हें परमेश्वर दीन लोगों को प्रदान करता है।

परमेश्वर के सम्मुख दीनता को बढ़ाना हमारे प्राणों के लिए एक सर्वाधिक स्वस्थ बातों में से एक है।

क्योंकि हम पद 5-6 से बहुत अधिक परिचित हैं, आइए हम परमेश्वर की बुद्धि के इस रूप पर और इसको मानने का प्रतिज्ञात अनुग्रह को देखें जिसे हम 7-8 पदों में देखते हैं।

आप उतने बुद्धिमान नहीं हैं जितना कि आप सोचते हैं

सबसे पहले, आज्ञा पर ध्यान दीजिए: “अपनी दृष्टि में तू बुद्धिमान न बनना। यहोवा का भय मानना और बुराई से विमुख रहना” (नीतिवचन 3:7)।

यह कहा जाना कि “अपनी दृष्टि में तू बुद्धिमान न बनना”  का हम पर “तू सम्पूर्ण हृदय से यहोवा पर भरोसा रखना” से एक भिन्न प्रभाव पड़ता है। यह तुरन्त “जीवन के घमण्ड” के प्रति हमारे जागरूकता को बढ़ाता है और उसका सामना करता है (1 यूहन्ना 2:16)। यह वह घमण्ड है जो हम सबके पास पापी स्वभाव के कारण है। यह वह घमण्ड है जो मानता है कि हम भले और बुरे के ज्ञान को पर्याप्त रूप से समझ सकते हैं, और दोनों के बीच उचित भेद कर सकते हैं। अपने विषय में इस बात को मानना जोखिमपूर्ण है।

नीतिवचन का लेखक जानता है कि यह घमण्ड कितना मोहक धोखा देने वाला है और पूरे अध्याय में वह हमें इसके मूर्खतापूर्ण विरोध की चेतावनी देता है। इसमें यह बात मोहक रूप से बहकाने वाली है कि बहुत ही सरलता से बुराई को चुनना हमारे लिए बुद्धिमानी जान पड़ सकती है उन लाभों के कारण जो यह बुराई करने वालों को प्रदान करता हुए प्रतीत होता है। जब हम बुरे व्यवहार के उसके उदाहरण को पढ़ते हैं (नीतिवचन 3:28-34), तो हम यह सोचने के लिए प्रलोभित हो सकते हैं कि हम तो ऐसे व्यवहार कर ही नहीं सकते हैं। परन्तु तथ्य यह है कि हम बारम्बार इस बात को कम आँकते हैं कि जीवन की वास्तविक ऐसी परिस्थितियों के दबाव में, जब हम भयभीत हैं, या क्रोधित हैं या पीड़ित हैं या संकट या धमकाये जा रहे हैं, बाते कितनी भ्रामक दिखाई दे सकती हैं।

यह आज्ञा हमारे सामने आने वाली जटिल और कठिन परिस्थितियों और निर्णयों के लिए एक बड़ी कृपा है। ऐसे समय होते हैं जब केवल यह बताए जाना पर्याप्त नहीं है कि परमेश्वर पर भरोसा करें, किन्तु वास्तव में प्राण को झकझोरने वाली, सीधी आज्ञा की आवश्यकता होती है कि स्वंय की बुद्धि पर भरोसा न करें और बुराई से दूर हों। हमें यह स्मरण दिलाये जाने की आवश्यकता है कि हमारी अपनी बुद्धि कितनी अविश्वासनीय है।

जीवन में मार्गदर्शन और प्राण की पुष्टता दोनों ही अनुग्रह हैं जिन्हें परमेश्वर दीन लोगों को प्रदान करता है।

नम्रता की पुनर्स्थापित करने वाली सामर्थ्य

अन्त में, उन लोगों के लिए सामर्थ्यी प्रतिज्ञा को देखें, जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान नहीं हैं, परन्तु परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर होते हैं:

इससे तेरा शरीर स्वस्थ रहेगा तथा 

तेरी हड्डियों को पुष्टता प्राप्त होगी। (नीतिवचन 3:8)

लेखक द्वारा चुने गए शब्दों पर ध्यान दें: “स्वस्थ” और “पुष्टता।” ये पुनर्स्थापनात्मक शब्द हैं। वह उनका उपयोग क्यों करता है?

क्योंकि यह अनुभवी पिता प्राण पर होने वाली उस हानि को जानता है जो बुराई के करने से और बुराई के प्रलोभन से होती है। वह जानता है, “शान्त हृदय, तन का जीवन है परन्तु ईर्ष्या हड्डियों को गला देती है” (नीतिवचन 14:30)। वह जानता है दाऊद का क्या अर्थ था जब उसने लिखा:” जब मैं अपने पाप के प्रति चुप रहा तब दिनभर कराहते-कराहते मेरी हड्डियाँ पिघल गईं” (भजन संहिता 32:3)। वह जानता है कि कैसे बुराई विवेक का उल्लंघन करती है और परमेश्वर और मनुष्य के साथ भयानक द्वन्द उत्पन्न करती है। और वह चाहता है कि उसके पुत्र और उसके सभी पाठक शान्ति का अनुभव करें (नीतिवचन 3:2), या यदि वे बुराई में भटक गए हैं, तो वह चाहता है कि वे शान्ति की ओर लौटें।

और परमेश्वर के सामने नम्रतापूर्वक रहना ही परमेश्वर से गहरी, प्राणों को नया करने वाली शान्ति का मार्ग है।

स्वयं को दीन करें

प्रेरित पतरस नीतिवचन 3 में सत्य-हीरे के विषष में विचार कर रहा था, जब उसने लिखा,

तुम सब के सब एक दूसरे के प्रति विनम्रता धारण करो, क्योंकि परमेश्वर अभिमानियों का तो विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। इसलिए परमेश्वर के सामर्थी हाथ के नीचे दीन बनो, जिससे कि वह तुम्हें उचित समय पर उन्नत करें। अपनी समस्त चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि वह तुम्हारी चिन्ता करता है (1 पतरस  5:5-7)

“जीवन में मार्गदर्शन और प्राण  -पुनर्स्थापना दोनों ही वह अनुग्रह है जो परमेश्वर नम्र लोगों को प्रदान करता है।”

परमेश्वर दीनों पर अनुग्रह करता है। उन लोगों को नम्रतापूर्वक अपने सम्पूर्ण हृदय से उस पर भरोसा करते हैं, वह उनको मार्गदर्शन का अनुग्रह देता है। उन लोगों को नम्रतापूर्वक अपनी दृष्टि में बुद्धिमान होने से इनकार करते हैं, वह उन्हें प्राणों को पुष्टता देने वाली वाली शान्ति का अनुग्रह देता है। उन लोगों को जो स्वंय को उसके हाथ के अधीन नम्र करते हैं, वह उल्लास का अनुग्रह देगा। और उन लोगों को जो नम्रतापूर्वक अपनी चिन्ता को उसके ऊपर डाल देते हैं, वह उनकी चिन्ता उठाए जाने का अनुग्रह प्रदान करता है।

हमारे लिए यह अच्छा है कि हम नीतिवचन 3 के पद 7-8 से उतना ही परिचित हों जितना कि हम पद 5-6 से हैं। ऐसे समय हैं जब हमें स्मरण रखना चाहिए होगा कि हमें अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रभु पर भरोसा करना चाहिए, और ऐसे समय भी हैं जब हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न बनें। वे समान, सम्बन्धित, परस्पर सम्पूरक हैं, फिर भी परमेश्वर की बुद्धि के भिन्न रूप हैं। और दोनों  हमें स्मरण दिलाते हैं कि परमेश्वर के सम्मुख दीनता को बढ़ाना हमारे प्राणों के लिए एक सर्वाधिक स्वस्थ बातों में से एक है।

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जॉन ब्लूम
जॉन ब्लूम

शिक्षक और डिज़ायरिंग गॉड के सह-संस्थापक के रूप में सेवा करते हैं। वह तीन पुस्तकों अर्थात- Not by Sight, Things Not Seen, और Don’t Follow Your Heart के लेखक हैं। इनके पाँच बच्चे हैं और वे मिनियापुलिस में रहते हैं।

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