सुसमाचार का लक्ष्य
अतः इस से बढ़कर उसके लहू के द्वारा धर्मी ठहराए जाकर, हम उसके द्वारा परमेश्वर के प्रकोप से क्यों न बचेंगे? क्योंकि जब हम शत्रु ही थे, हमारा मेल परमेश्वर के साथ उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हुआ तो उस से बढ़कर, अब मेल हो जाने पर हम उसके जीवन के द्वारा उद्धार पाएँगे। केवल यही नहीं, परन्तु हम परमेश्वर में अपने प्रभु यीशु के द्वारा आनन्दित होते हैं, जिसके द्वारा अब हमारा मेल हुआ है। (रोमियों 5:9-11)
हमें किस बात से बचाए जाने की आवश्यकता है? पद 9 स्पष्ट रीति से बताता है: परमेश्वर के प्रकोप से। “अतः इस से बढ़कर उसके लहू के द्वारा धर्मी ठहराए जाकर, हम उसके द्वारा परमेश्वर के प्रकोप से क्यों न बचेंगे?” परन्तु क्या यह सुसमाचार का सबसे उच्च, सबसे उत्तम, सबसे परिपूर्ण, सबसे सन्तुष्टिदायक पुरस्कार है?
नहीं। पद 10 बताता है “उस से बढ़कर . . . हम उसके जीवन के द्वारा उद्धार पाएँगे।” फिर पद 11 इसे सुसमाचार के परम लक्ष्य और उद्देश्य तक लेकर जाता है: “केवल यही नहीं, परन्तु हम परमेश्वर में . . . आनन्दित होते हैं।”
यह सुसमाचार की अन्तिम और उत्कृष्ट भलाई है। कोई और “उससे से बढ़कर” वाक्यांश इसके पश्चात् नहीं है। पौलुस केवल यही बताता है कि हम वहाँ कैसे पहुँचे हैं “प्रभु यीशु के द्वारा . . . जिसके द्वारा अब हमारा मेल हुआ है।”
सुसमाचार का लक्ष्य है कि हम “परमेश्वर में आनन्दित होते हैं।” सुसमाचार की सबसे उच्च, सबसे परिपूर्ण, सबसे गहन, सबसे मधुर भलाई स्वयं परमेश्वर है, जिसका आनन्द उसके छुड़ाए गए लोग उठाते हैं।
ख्रीष्ट में परमेश्वर मूल्य बन गया (रोमियों 5:6-8), और ख्रीष्ट में परमेश्वर पुरस्कार बन गया (रोमियों 5:11)।
सुसमाचार वह अच्छा समाचार है कि परमेश्वर ने हमें सर्वदा परमेश्वर का आनन्द उठाने के लिए मोल लिया है।







