अतः यह न तो चाहने वाले पर और न दौड़ -धूप करने वाले पर निर्भर है, परन्तु परमेश्वर पर जो दया करता है। (रोमियों 9:16)
आइए हम इस वर्ष के आरम्भ में ही इस बात को पूर्णतः स्पष्ट कर लें कि इस वर्ष, यीशु में विश्वासी होने के नाते हम परमेश्वर से जो प्राप्त करेंगे, वह दया है। हमारे मार्ग में जो भी सुख या पीड़ा आएगी, वह सब दया होगी।
यही कारण है कि मसीह इस संसार में आया: “गै़रयहूदियों के लिए कि वे परमेश्वर की दया के प्रति उसकी महिमा करें” (रोमियों 15:9)। “अपनी अपार दया के अनुसार” उसने हमें नया जन्म दिया (1 पतरस 1:3)। हम प्रतिदिन प्रार्थना करते हैं कि “हम पर दया हो” (इब्रानियों 4:16); और हम अब “अनन्त जीवन के लिए उत्सुकता से हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की बाट जोहते हैं” (यहूदा 1:21)। यदि कोई मसीही विश्वासयोग्य प्रमाणित होता है, तो “प्रभु की दया से [वह] विश्वासयोग्य होता है” (1 कुरिन्थियों 7:25)।
लूका 17:5-6 में, प्रेरितों ने प्रभु से विनती किया कि, “हमारा विश्वास बढ़ा।” और यीशु ने कहा, “यदि तुम में राई के दाने के बराबर विश्वास होता और तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते, ‘उखड़कर समुद्र में लग जा’, तो वह तुम्हारी मान लेता।” दूसरे शब्दों में, हमारे मसीही जीवन और सेवा में मुख्य विषय हमारे विश्वास की सामर्थ्य या बहुतायत नहीं है, क्योंकि यह वह बात नहीं है जो पेड़ों को उखाड़ती है। परमेश्वर ऐसा करता है। इसलिए, सबसे छोटा विश्वास जो वास्तव में हमें मसीह के साथ जोड़ता है, वह उसकी सामर्थ्य को आपकी सभी आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त रूप से उपयोग करेगा।
परन्तु उस समय के विषय में आप क्या सोचते हैं जब आप सफलतापूर्वक प्रभु की आज्ञा का पालन करते हैं? क्या आपकी आज्ञाकारिता आपको दया प्राप्त करने वालों की श्रेणी से बाहर करती है? यीशु ने इसका उत्तर लूका 17:7-10 के पदों में दिया है।
“तुममें से कौन ऐसा है जिसका दास हल चलाता और भेड़ों को चराता हो, कि जब दास खेत से लौटकर आए तो वह दास से कहे, ‘शीघ्र आ, भोजन करने बैठ’? क्या वह उससे नहीं कहेगा, ‘मेरे खाने के लिए कुछ बना और साफ वस्त्र पहन तथा जब तक मैं खा-पी न लूँ, मेरी सेवा कर; तत्पश्चात् तू भी खा-पी लेना’? आज्ञाओं का पालन करने के लिए क्या वह अपने दास को धन्यवाद देगा? इसी प्रकार तुम भी जब उन सब आज्ञाओं का पालन कर लो जो तुम्हें दी गई हैं तो कहो, ‘हम अयोग्य दास हैं; हमने तो केवल वही किया है जो हमें करना चाहिए था’।”
अतः, मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ, कि पूर्ण आज्ञाकारिता और सबसे छोटा विश्वास परमेश्वर से एक ही वस्तु प्राप्त करता है: दया । मात्र राई के दाने के बराबर विश्वास परमेश्वर की पेड़-हटा देने वाली सामर्थ्य की दया को प्राप्त करता है। और निर्दोष आज्ञाकारिता भी हमें पूर्णता दया पर निर्भर होने के लिए छोड़ती है।
मुख्य बात यह है कि: परमेश्वर की दया का समय या स्वरूप जो भी हो, हम कभी भी दया से लाभ प्राप्त करने वालों की स्थिति से ऊपर नहीं उठते हैं। हम सदा उसी बात पर निर्भर होते हैं जिसके हम योग्य नहीं हैं।
इसलिए आइए हम स्वयं को नम्र करें और आनन्दित हों और “परमेश्वर की दया के लिए उसकी महिमा करें!”