संसार में सभी लोग आनन्द का अनुभव करना चाहते हैं। उनका आनन्द धन, वैभव, प्रतिष्ठा जैसे बाहरी बातों पर आधारित होता है, परन्तु ख्रीष्टियों के लिए आनन्द का अर्थ इन बातों की प्राप्ति नहीं है। ख्रीष्टीय आनन्द को हम इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं – “ख्रीष्टीय आनन्द परमेश्वर की ओर से दिया गया एक स्थायी व भीतरी आनन्द का अनुभव है जो पवित्र आत्मा के द्वारा हमारे हृदय में उण्डेला गया है, जो हमारी परिस्थिति से परे है। यह अनन्त आनन्द का ऐसा पूर्वस्वाद है जो संसार हमें कभी भी नहीं दे सकता है।”
बाइबल में हम विश्वासियों को सदा आनन्दित रहने का निर्देश दिया गया है (फिलिप्पियों 4:4) जो कि हमारा वास्तविक आनन्द है। इस लेख के द्वारा आनन्द के वास्तविक अर्थ को देखेंगे –
आनन्द का स्रोत ईश्वरीय है
सामान्यतः, लोग अपने जीवन में आनन्द को अपनी इच्छाओं की पूर्ति के साथ जोड़कर देखते हैं। क्योंकि वे अपने परिश्रम से इन इच्छाओं को पूरा करते हैं, इसलिए उस आनन्द को पाने का श्रेय स्वयं को देते हैं। परन्तु, ख्रीष्टीय जीवन का आनन्द हमारे परिश्रम पर निर्भर नहीं है। वास्तव में, यह आनन्द तो पवित्र आत्मा का फल है (गलातियों 5:22); अर्थात इसका स्रोत ईश्वरीय है। यह सत्य हमारे लिए एक आश्वासन भी है, क्योंकि यह आनन्द परमेश्वर की ओर से सभी विश्वासियों को दिया गया है। इसलिए, किसी वस्तु, स्थान या अनुभव में आनन्द को ढूँढने का परिश्रम करना निरर्थक है।
ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन की वास्तविकता के आधार पर हमें आनन्द को समझना है, क्योंकि यह फल उस मिलन का ही परिणाम है। यह एक ऐसा आनन्द है जो स्थिति और परिस्थिति दोनों से परे और जो एक ख्रीष्टीय के हृदय से धन्यवाद और कृतज्ञता से भर देता है। आनन्द का अनुभव करने की कुंजी में से एक है धन्यवाद की आदत विकसित करना है उन सभी आशीषों को नियमित रूप से स्मरण करना और उन पर विचार करना है जो परमेश्वर ने हमें ख्रीष्ट यीशु में दी हैं (इफिसियों 1) और फिर परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद करना है क्योंकि भजनकार भजन संहिता 9:1 कहता है, “हे यहोवा, मैं अपने सम्पूर्ण हृदय से तुझे धन्यवाद दूँगा, मैं तेरे समस्त आश्चर्यकर्मों का वर्णन करूँगा।”
आनन्द का अनुभव आन्तरिक है
संसार के लोगों के लिए, बाहरी परिस्थितियाँ उनके आनन्द को निर्धारित करते हैं। जीवन में क्लेश, दुख और संकट का आना उनके जीवन से आनन्द को हटा देता है और वो निराशा से भर जाते हैं। परिस्थितियाँ उनके स्वभाव को नियन्त्रित करती हैं। इसके विपरीत, ख्रीष्टीय जीवन में आनन्द परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है, वरन् ख्रीष्ट के साथ हमारे घनिष्ट संगति पर आधारित है। इस संगति के कारण उसका आनन्द हम में बना रहता है (यूहन्ना 15:11)। ये एक ऐसा भीतरी अनुभव है जो परिस्थितियों से परे है और यही ख्रीष्टीय जीवन में आनन्द का वास्तविक अर्थ है।
अतः परमेश्वर ही हमारे आनन्द का स्रोत है और आनन्द का कारण भी है। इसलिए, आनन्द की प्राप्ति के लिए संसार के ऊपर निर्भर होना मूर्खता है। परमेश्वर के साथ एक घनिष्ट सम्बन्ध में होकर ही आनन्द के वास्तविक अर्थ को समझा जा सकता है।