क्या यीशु ख्रीष्ट सच में क्रूस पर मारा गया था?

पिछले दो हज़ार वर्षों से क्रूस ख्रीष्टियता का मुख्य चिन्ह रहा है। इसके बाद भी आज संसार में कुछ लोग इस बात पर संदेह करते हैं कि, ‘क्या सच में यीशु क्रूस पर मारा गया था’? इस बात को नकारने के लिए लोग विभिन्न प्रकार के विचार भी रखते हैं। आइए हम इन धारणाओं की वास्तविकता को देखते हुए बाइबल तथा इतिहास के आधार पर यीशु के क्रूस पर मारे जाने पर विचार करें।

विचार 1: यीशु क्रूस पर पूरी तरह से मरा नहीं था, केवल मूर्छित हो गया था
यीशु के क्रूस पर मारे जाने पर संदेह करने वाला एक समूह कहता है कि यीशु क्रूस पर पूर्णतः नहीं मरा था। वह क्रूस पर केवल मूर्छित (बेहोश) हो गया था। मूर्छित होने के बाद उसे कब्र में रखा गया था, जहाँ से वह ठीक होकर बाहर निकल आया था। यह तर्क क्रूसीकरण में निपुण रोमी सैनिकों की क्षमता पर प्रश्न उठाता है, जिनके दण्ड से आज तक कोई जीवित नहीं बचा है। बाइबल कहती है कि उन्होंने यीशु को निर्दयतापूर्वक कोड़ों से पीटने के बाद, लगभग छः घण्टे तक उसे क्रूस पर लटकाए रखा था। इतना ही नहीं उन्होंने यीशु के मरने के बाद भी उसके पंजर में भाला डालकर उसका हृदय भेदने के द्वारा उसके  मरने की पुष्टि की थी (यूहन्ना 19:33-34)। जब सैनिकों के सूबेदार ने यीशु को इस तरह से प्राण त्यागते देखा, तो कहा “निःसन्देह यह मनुष्य परमेश्वर का पुत्र था ” (मरकुस 15:39)। बाद में इसी सूबेदार ने राज्यपाल पिलातुस के सामने यीशु के मरने की पुष्टि की थी (मरकुस 15:44-45)। अन्त में, यीशु को कपड़ों में लपेटकर कब्र में रखा गया था जो यह दिखाता है कि यीशु क्रूस पर मूर्छित नहीं हुए थे, परन्तु मारे गए थे (यूहन्ना 19:39-40)।

विचार 2: यीशु के बदले क्रूस पर किसी और को मारा गया था
यीशु के क्रूसीकरण की ऐतिहासिकता को नकारने वाला दूसरा विचार कहता है कि यीशु के स्थान पर किसी और को क्रूस पर मारा गया था और यीशु को स्वर्ग में उठा लिया था। बाइबल कहती है कि यीशु को किसी कोने में नहीं, परन्तु सबके सामने मारा गया था (लूका 23:46-49)। जब यीशु को क्रूस पर चढ़ाया जा रहा था तब उसकी माता और उसका चेला यूहन्ना उसके सामने खड़े थे, जिनसे यीशु ने बातें की थीं (यूहन्ना 19:25-27)। यदि यीशु के स्थान पर किसी और को क्रूस पर मारा जा रहा होता, तो मरियम और यूहन्ना को अवश्य पता चल जाता। साथ ही, दूसरा व्यक्ति मरियम और यूहन्ना से बातें नहीं करता, और न ही अंतिम सात वाणियों को क्रूस से बोल सकता था। यद्यपि चेलों ने इसका प्रचार यरूशलेम में सबके सामने किया, फिर किसी ने उन्हें झूठा प्रचारक नहीं कहा। यीशु के जीवन और मृत्यु की घटना लिखने वाले लेखकों ने इन घटनाओं को अपनी आंखों से देखा था या फिर ठीक-ठीक जांचकर लिखा था (1 यूहन्ना 1:1-3; लूका 1:1-4)। इतना ही नहीं चेलों ने इस सत्य के लिए अपने प्राणों को दे दिया जो इस बात को दिखाता है कि यीशु निश्चय ही क्रूस पर मारे गए थे।

बाइबल में उपस्थित अनेक प्रमाणों के बाद भी यह सम्भव है कि लोग यह कहें कि बाइबल के लेखक यीशु के अनुयायी थे इसलिए उन्होंने यीशु के क्रूस पर मरने के विषय में लिखा था। यद्यपि बाइबल स्वयं में पर्याप्त है, फिर भी हम ऐतिहासिक प्रमाणों से यीशु की मृत्यु  की सत्यता को देख सकते हैं।

जब हम प्राचीन इतिहास का अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि सिर्फ मसीही लोगों ने ही नहीं, परन्तु गैर-ख्रीष्टीय इतिहासकारों ने भी इस घटना का वर्णन किया है। इन इतिहासकारों में से सबसे प्रसिद्ध यहूदी इतिहासकार जोसिफस तथा रोमी इतिहासकार टैसिटस ने यीशु के क्रूस पर मारे जाने का वर्णन किया है। इनके अलावा हम थैलाअस, प्लिनियास छोटा, त्राजन और लूसियन के लेखों में भी यीशु के क्रूसीकरण का वर्णन पाते हैं।

गैर-ख्रीष्टीय इतिहास के साथ ही यदि हम कलीसियाई इतिहास को देखें तो पिछले दो हज़ार वर्षों से अनेक लोग इस सत्य पर विश्वास करते आ रहें हैं कि यीशु क्रूस पर मारा गया था। इस सत्य पर केवल इस्राएल के लोगों ने ही नहीं, परन्तु संसार भर में विभिन्न वर्गों के लोगों ने इस पर विश्वास किया है। इतना ही मसीही, यीशु की मृत्यु द्वारा उद्धार पर विश्वास करने के लिए आरम्भ से ही सताए जा रहे हैं। यद्यपि ‘क्रूस’ दुःख और अपमानजनक मृत्यु का प्रतीक था, फिर मसीही इस सत्य का प्रचार करने से लज्जित नहीं होते थे। यदि यीशु के क्रूस पर मारे जाने की घटना झूठी होती तो लाखों मसीही सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक हानि न उठाते।

अन्त में, यीशु की मृत्यु की ऐतिहासिकता से अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि यीशु ने दर्द और अपमान से भरी हुई शापित मृत्यु क्यों सही? इसका उत्तर यह है कि परमेश्वर के प्रेम को प्रकट करने के लिए (रोमियों 5:8)। उसने हमारे पापों का दण्ड स्वयं उठा लिया ताकि हम अनन्त जीवन पा सकें। एक दिन हम सबका मरना और न्याय होना निश्चित है। मृत्यु के बाद अनन्त जीवन या अनन्त दण्ड में प्रवेश करना इस बात पर निर्भर करेगा, कि हम क्रूस पर मारे गए और तीसरे दिन जी उठे यीशु पर विश्वास करते हैं या नहीं (यूहन्ना 3:16)।


1 इंटीक्विटीज़ ऑफ द ज्यूज़ 18.3  http://penelope.uchicago.edu/josephus/ant-18.html
2 टैसिटस ए, 15.44   https://penelope.uchicago.edu/Thayer/E/Roman/Texts/Tacitus/Annals/15B*.html#note29
3 जॉश मैकडॉवेल 2016, 112-116 नवीन प्रमाण जो आपका फैसला माँगता है! सिकंदराबाद: जी एस बुक्स.

साझा करें
प्रेम प्रकाश
प्रेम प्रकाश

सत्य वचन सेमिनरी के अकादिम डीन के रूप में सेवा करते हैं।

Articles: 37