श्रुति लेख (Audio Transcript)
भाई समीर यह पूछना चाहते हैं: “प्रिय पास्टर जॉन, कुछ ही समय पहले के एक लेख में, आपने लिखा था कि: ‘पास्टरों को ऐसा कलीसियाई प्रचलन विकसित करने के मार्ग में अगुवाई करनी चाहिए, जहाँ महँगे अन्तिम संस्कार (और महँगे विवाह समारोह!), मानक न बन जाएँ। यह ऐसी बात है जिस पर मैंने पहले अधिक विचार नहीं किया था, और न ही उसकी सराहना की थी। धन्यवाद! मैं आशा कर रहा था कि आप महँगे विवाह समारोहों के विषय पर अधिक स्पष्ट रूप से बोलेंगे। हम ‘ख्रीष्ट-की-बड़ाई करने वाले, एक सादे विवाह समारोह’ को कैसे आयोजित कर सकते हैं?”
समाज के विपरीत जाएँ
मैं कुछ ही समय में युगलों से आग्रह करूँगा कि वे इस सम्बन्ध में अपने समाज के विपरीत जाने का साहस करें—क्योंकि इसी की उन्हें आवश्यकता पड़ेगी—परन्तु उस लेख में मैं मुख्य रूप से पास्टरों से निवेदन कर रहा हूँ कि वे ऐसी शिक्षा देने और प्रचार करने और कलीसिया में सादगी की ऐसी संस्कृति का निर्माण करने में सहायता प्रदान करने में पहल करें, जो कि विवाह समारोह में प्रभु यीशु को; ख्रीष्ट-की-बड़ाई करने वाले विवाह के अर्थ को; प्रतिज्ञाओं के अद्भुत महत्व को; और लोगों तथा उन प्रेमियों की बहुमूल्यता को विवाह समारोह का केन्द्र बिन्दु बनाएँ, न कि कपड़े, फूल, विवाह स्थल, संगीत, और न ही उस बड़े, मनोहर प्रीतिभोज तथा उस सम्पूर्ण प्रस्तुतिकरण को, जो कि बाद में विवाह में होने वाले परमेश्वर के वास्तविक कार्य की भूमिका को कम महत्वपूर्ण प्रतीत कराएँ। मुझे यह बात दुखद प्रतीत होती है।
निःसन्देह, यह आनन्दोल्लास पर आक्रमण नहीं है। वरन् पूर्णतः इसके विपरीत है। यह आनन्दोल्लास के सबसे गहरे कुण्डों से पीने का एक आग्रह है, न कि सुख के छोटे एवं सतही पोखरों से। नियमित रूप से ईश्वरभक्त दरिद्र लोग, धनी लोगों की तुलना में अधिक आनन्दोल्लास मनाते हैं। महँगे होने और आनन्दमय होने के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं है—कुछ भी नहीं। जबकि ऐसा है कि: अधिक महँगे होने का अर्थ है अधिक झंझट, अधिक तनाव, अधिक ध्यान भटकना—अर्थात्, कम आनन्दमय होना।
यह अगुवों से, सादगी के दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए एक अनुरोध है जिससे कि कोई भी जिसके पास साधारण साधन हों—और ऐसे बहुत-से लोग हैं—उसको ऐसा प्रतीत न हो कि सादगी से किया गया एक साधारण विवाह समारोह जिसमें मात्र नाश्ता ही दिया जाए—जहाँ कोई भोजन न हो, कोई नृत्य न हो, केवल आनन्दोल्लास हो—वह किसी भी रीति से प्रभु और वर-वधु के लिए कम आदर देने वाला है। यदि हमने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है तो यह त्रासदीपूर्ण है।
आओ और देखो
अब यहाँ पर जो आधारभूत विश्वदर्शन (worldview) है, वह यह है। छुटकारे के इतिहास में तब एक निर्णायक मोड़ आया जब यीशु संसार में आया। पुराना नियम, सामान्यतः, एक आओ-और-देखो वाला धर्म था, जबकि नया नियम व्यापक रूप से जाओ-और-बताओ वाला धर्म है। इसीलिए पुराने नियम में मन्दिर पर इतना अधिक धन व्यय किया गया था। मिस्र से और कूश से और पृथ्वी के छोर से आओ और देखो! आओ देखो इस महँगे मन्दिर को जिसका निर्माण हमने किया है! इसलिए धन को प्रायः परमेश्वर की आशीष के चिन्ह के रूप में भी देखा जाता था।
परन्तु यह सब मनुष्य के पुत्र के आने के साथ ही मौलिक रूप से परिवर्तित हो गया है, जिसके पास अपना सिर रखने के लिए कोई स्थान न था और जिसने हमें जातियों को चेला बनाने के लिए अपने जीवन को संकट में डालने के लिए कहा था (मत्ती 8:20; 28:19 देखें)। हम पुराने नियम के समय में नहीं जी रहे हैं। यह आओ-और-देखो वाला धर्म नहीं है, और अब ख्रीष्टियता का कोई भौगोलिक केन्द्र भी नहीं है। यह एक जाओ-और-बताओ वाला धर्म है।
तो, हमारे संसाधनों के उपयोग में एक क्रान्ति आई है। अब हमारी जीवन शैली को यह विचार नियन्त्रित करता है कि हमारा धनसंग्रह स्वर्ग में है न कि पृथ्वी पर। अब हम इस प्रयास के द्वारा नियन्त्रित हैं कि महान आदेश को पूर्ण करने के लिए हम अपने देने को अधिकतम सीमा तक दें और संसार में जो पीड़ा में हैं उनसे प्रेम करें। नया नियम हमें अनवरत सादगी और राज्य के लिए धन उपयोग करने की ओर बढ़ाता है तथा विलासिता से दूर और सम्पन्नता से दूर और भव्यता से दूर हटाता है, जिसमें महँगे विवाह समारोह भी सम्मिलित हैं।
अनवरत सादगी
जब मैं कहता हूँ कि यह अनवरत है तो इससे मेरा तात्पर्य क्या है, इसको समझने के
लिए बाइबल के कुछ पदों को देखें।
लूका 6:20, 24, “धन्य हो तुम जो दीन हो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है… परन्तु हाय तुम पर जो धनवान हो, क्योंकि तुम अपने सुख का पूरा फल पा रहे हो।”
लूका 8:14, “वे चिन्ताओं, धन और जीवन के सुख-विलास में फँस जाते हैं”
लूका 9:58, “मनुष्य के पुत्र के लिए सिर छिपाने के लिए भी कोई स्थान नहीं।”
मत्ती 6:19, “अपने लिए पृथ्वी पर धन-संचय मत करो, जहाँ कीड़ा और जंग नष्ट करते हैं।”
मत्ती 6:25, “मैं तुमसे कहता हूँ कि अपने प्राण के लिए चिन्ता न करना… प्राण भोजन.. और वस्त्र से बढ़कर है।”
लूका 12:33, “अपनी सम्पत्ति बेचकर दान कर दो। अपने लिए धन… स्वर्ग में इकट्ठा करो।”
लूका 14:33, “तुम में से कोई मेरा चेला नहीं हो सकता जब तक कि वह अपनी सारी सम्पत्ति को त्याग न दे।”
लूका 18:24, “धनवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!”
2 कुरिन्थियों 6:9, पौलुस “कंगाल था, परन्तु बहुतों को धनी बना देता था।” उसके पास “कुछ नहीं था फिर भी सब कुछ रखता था।”
1 तीमुथियुस 6:7-8, “क्योंकि न तो हम संसार में कुछ लाए हैं, न यहाँ से कुछ ले जाएंगे। यदि हमारे पास भोजन और वस्त्र हैं तो इन्हीं से हम सन्तुष्ट रहेंगे।”
इब्रानियों 10:34, “तुम ने अपनी सम्पत्ति के जब्त किए जाने को यह जान कर सहर्ष स्वीकार किया कि तुम्हारे पास और भी अधिक उत्तम और चिरस्थाई सम्पत्ति है।”
जब नोएल और मेरा विवाह हुआ था, तब उसने अपनी माँ के विवाह समारोह की पोशाक पहने थी। वह निशुल्क तो नहीं थी क्योंकि उसने पोशाक में कुछ छोटे परिवर्तन कराए थे, परन्तु उस पर कुछ ही रूपयों का व्यय हुआ था। मैंने अपना सबसे अच्छा और एकमात्र सूट पहना जो रविवार को पहना जाता था, और मेरे सहबाले ने भी ऐसा ही किया था। नोएल की ओर से नियुक्त मुख्य परिचारिका ने एक अच्छी रविवारीय पोशाक पहनी थी। हमने अपनी मान्यताओं को दर्शाने के लिए मंच पर एक खुली बाइबल और एक क्रूस रखा था। किसी ने चर्च ऑर्गन बजाया। मेरे पिता ने प्रचार किया। कलीसिया ने संगति के लिए नियुक्त सभाग्रह में एक प्रीति भोज समारोह का आयोजन किया: कोई भोजन नहीं, कोई जलपान नहीं, केवल केक ही था। विवाह उपरान्त् छुट्टियों के लिए, मैंने अपने पिता की गाड़ी माँग ली और हम सात घन्टे की दूरी पर सेन्ट पीटर्सबर्ग, फ़्लोरिडा गए, जहाँ हम समुद्र तट पर सस्ते से होटल में ठहरे।
सब कुछ सादगी के साथ किया गया था। सब कुछ आनन्द से परिपूर्ण था। वहाँ का वातावरण आनन्दपूर्ण अपेक्षा के साथ उमड़ रहा था। किसी ने कोई धन उधार नहीं लिया था। वहाँ पर केवल प्रभु, परमेश्वर का वचन, प्रतिज्ञाएँ और नवविवाहित दम्पति ही मुख्य आकर्षण थे और परमेश्वर को आदर मिल रहा था। और इन 47 वर्षों के पश्चात् भी हम उतने ही विवाहित हैं जितना कि कोई अन्य दम्पति। मुझे प्रतीत होता है कि यह एक उत्तम युक्ति है।
विशेष दिन
अब, मुझे इस बात पर पुनः बल देने की अनुमति दीजिए। विशेष वस्तुओं के लिए एक स्थान अवश्य ही है। मेरी बात को ध्यान से सुनिए। ख्रीष्टीय जीवन की सादगी में विशेष वस्तुओं के लिए एक स्थान अवश्य है: विशेष पोशाक, विशेष व्यय, विशेष सौन्दर्य के लिए। सौन्दर्य का इस प्रकार व्यक्त किये जाने के लिए भी एक स्थान है।
परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आज सुसमाचारवादी (evangelical) कलीसिया में बातें नियन्त्रण से बाहर जा रही हैं और किसी को इसे रोकने की आवश्यकता है। इसलिए मैं विशेष रूप से पास्टरों से याचना कर रहा हूँ। विवाह सभा और वचन और प्रतिज्ञाओं और प्रभु और प्रेम को ही मुख्य बात रहने दें। विवाह समारोह के पश्चात् भोजन का होना भी आवश्यक नहीं है—मेरा विश्वास करिए, वह आवश्यक नहीं है। नृत्य का होना आवश्यक नहीं है। प्रीतिभोज का किसी महँगे होटल में होना आवश्यक नहीं है। धन देकर बुलाए गए संगीतकारों का होना आवश्यक नहीं है। वास्तव में, इन सब का होना आवश्यक नहीं है।
उन पास्टरों की अगुवाई के अतिरिक्त, हमें ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो सुदृढ़ हों और ऐसी संस्कृति के विरुद्ध मौलिक ख्रीष्टीय साहस के साथ खड़े हो सकें तथा पूरी विनम्रता से यह दिखा सकें कि एक चौथाई लागत और एक चौथाई चिन्ता और एक चौथाई तनाव के साथ—तथा ख्रीष्ट की महिमा और उसके राज्य की उन्नति पर दोगुना ध्यान देने पर सत्य और सौन्दर्य और आनन्दोल्लास कैसा दिख सकता है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप दोनों भी उनमें से एक हों।
धन्यवाद पास्टर जॉन इस विषय पर बड़ी ही सामर्थी समझ प्रदान करने के लिए। वास्तव में कई बार कलीसियाएँ विवाह या अन्य समारोहों को सांसारिक दृष्टिकोण से देखती हैं, न कि इस उद्देश्य से कि इनके द्वारा परमेश्वर को महिमा मिले। श्रोताओं से मेरा अनुरोध है कि आप विवाह की तैयारी तथा अन्य हिन्दी पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट मार्ग सत्य जीवन डॉट कॉम पर जाएँ।