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परमेश्वर की सेवा करने का अर्थ क्या है?

“परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा करूंगा” (यहोशू 24:15)। इसका क्या अर्थ है?

  • इसका यह अर्थ है कि जो कुछ यहोवा कहता है उसे इस प्रकार से करना जो उसको स्वयं में सर्वोच्च रूप से मूल्यवान दिखाए।
  • इसका यह अर्थ है कि इस प्रकार से यहोवा के अधीन होना जो उसको रोमांचकारी दिखाए।

परमेश्वर के प्रति हम इस रीति से भी अधीन हो सकते हैं जो उसे केवल भयभीत करने वाला करके प्रस्तुत करे, न कि रोमांचित करने वाला। जो कुछ वह कहता है उसका पालन हम इस रीति से भी कर सकते हैं जो केवल इस तथ्य पर ध्यान खींचे कि वह मात्र हमारा अधिकारी है, न कि हमारा अनमोल धन।

यह उस प्रकार की सेवा नहीं है जिसकी आज्ञा परमेश्वर देता है।

इन दोनोंं प्रकार की सेवा में क्या भिन्नता है?

इन दोनो में भिन्नता यह है कि परमेश्वर ने हमें उसकी सेवा इस प्रकार से करने के लिए नहीं कहा है मानो कि उसे किसी बात की आवश्यकता हो। 

“और न ही मनुष्यों के हाथों से उसकी सेवा-टहल होती है, मानो कि उसे किसी बात की आवश्यकता हो, क्योंकि वह स्वयं सब को जीवन श्वास और सब कुछ प्रदान करता है” (प्रेरितों के काम 17:25)।

“मनुष्य का पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं  वरन सेवा करने और बहुतों की फिरौती के मूल्य में प्राण देने आया” (मरकुस 10:45)।

“परमेश्वर को महिमामयी तब देखा जाता है जब हमारी सम्पूर्ण सेवा क्षण-प्रति-क्षण परमेश्वर के भण्डार से प्रावधान प्राप्त कर रही होती है।”

ये दोनों खण्ड इस बात पर अत्यधिक बल देते हैं कि परमेश्वर ही हमें उसकी सेवा के लिए प्रावधान कराता है।

अतः जिस प्रकार की सेवा परमेश्वर को मूल्यवान और रोमांचकारी बनाती है, यह उस प्रकार की सेवा है जो परमेश्वर से निरन्तर प्राप्त करते हुए परमेश्वर की सेवा करती है। 

1 पतरस 4:11 मुख्य रूप से इस विचार का वर्णन करता है— 

“जो सेवा करे, [ऐसा हो] उस सामर्थ्य से करे जो परमेश्वर देता है — जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।” 

“परमेश्वर को महिमामयी तब देखा जाता है जब हमारी सम्पूर्ण सेवा क्षण-प्रति-क्षण परमेश्वर के भण्डार से प्रावधान प्राप्त कर रही होती है”

यह आपूर्ति हम विश्वास से  प्राप्त करते हैं। अर्थात्, हम क्षण-प्रति-क्षण भरोसा रखते हैं कि परमेश्वर की सेवा करने हेतु जो हमें चाहिए, वह प्रदान करेगा (“जीवन, श्वास और सब कुछ”)। यह बात चिन्तित होने के विपरीत है। ऐसी सेवा तो आनन्दमयी सेवा होती है। और यह परमेश्वर के अधिकार को कम नहीं दर्शाती है, किन्तु असीम रूप से अति चाहने योग्य बनाती है। यही वह महिमा है जो वह चाहता है। प्रावधान कराने वाला परमेश्वर ही महिमा पाता है।

इसलिए, “आनन्द से यहोवा की आराधना (सेवा ) करो” (भजन 100:2)।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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