इसी प्रकार जब परमेश्वर ने प्रतिज्ञा के वारिसों पर अपने अटल उद्देश्य को और अधिक प्रकट करना चाहा तो उसने शपथ का उपयोग किया, कि हमें दो अटल बातों के द्वारा, जिसमें परमेश्वर का झूठ बोलना असम्भव है, दृढ़ प्रोत्साहन मिले—अर्थात् हमें जो शरण पाने के लिए दौड़ पड़े हैं कि उस आशा को प्राप्त करें (थामे रहें) जो सामने रखी है। (इब्रानियों 6:17-18)
इब्रानियों का लेखक हमें क्यों उत्साहित करता है कि हम अपनी आशा को थामे रहें? यदि हमारी आशा का अन्तिम आनन्द यीशु ख्रीष्ट के लहू के द्वारा प्राप्त और अटल रीति से स्थिर किया गया था, तो फिर परमेश्वर क्यों हमसे कहता है कि हम दृढ़ता से थामे रहें?
इसका उत्तर यह हैः
- जब ख्रीष्ट मरा तो उसने थामने के उत्तरदायित्व से हमारी स्वतन्त्रता को मोल नहीं लिया, वरन् दृढ़ता से थामे रहने हेतु सक्षम करने वाली सामर्थ्य को मोल लिया था।
- उसने हमारी इच्छा-शक्ति के निरस्तीकरण को मोल नहीं लिया था मानो कि हमें थामे रहने की आवश्यक्ता नहीं थी, वरन् हमारी इच्छा-शक्ति को सामर्थ्य प्रदान करने वाले परिवर्तन को मोल लिया, जिससे कि हम दृढ़ता से थामे रहना चाहें।
- उसने जो मोल लिया वह दृढ़ता से थामे रहने की आज्ञा को रद्द करना नहीं था, वरन् दृढ़ता से थामे रहने की आज्ञा की पूर्ति थी।
- उसने जो मोल लिया वह प्रोत्साहन का अन्त नहीं था, वरन् प्रोत्साहन की विजय थी।
वह मरा जिससे कि आप ठीक वही करें जिसे पौलुस ने फिलिप्पियों 3:12 में किया था, “पर मैं उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अग्रसर होता जाता हूँ, जिसके लिए ख्रीष्ट यीशु ने मुझे पकड़ा था।” यह मूर्खता नहीं है, वरन् सुसमाचार है, जब हम किसी पापी को वह करने के लिए कहते हैं जिसे केवल ख्रीष्ट ही उसे करने के योग्य बना सकता है, अर्थात् परमेश्वर पर आशा रखना।
इसलिए, मैं अपने सम्पूर्ण दृदय से आपको प्रोत्साहित करता हूँः आगे बढ़ें और उसे थामें जिसके लिए मसीह ने आपको पकड़ लिया है। इसे अपनी सारी शक्ति से थामे रहें—जो उसकी शक्ति है। आपकी आज्ञाकारिता उसके लहू से मोल लिया हुआ उपहार है।