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धन्यवाद देने के द्वारा परमेश्वर की महिमा करें

क्योंकि सब वस्तुएँ तुम्हारे लिए हैं कि अनुग्रह जो अधिक से अधिक लोगों में फैलता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए धन्यवाद की वृद्धि का कारण बन सके। (2 कुरिन्थियों 4:15)

परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता एक आनन्दपूर्ण भावना है। हमारे मन में उसके अनुग्रह के प्रति आनन्दपूर्ण आभार की अनुभूति होती है। एक अर्थानुसार हम कृतज्ञता की ही भावना में, अभी भी लाभार्थी हैं। परन्तु कृतज्ञता स्वभाव ही से देने वाले की महिमा करता है। जब हम धन्यवादी होते हैं, तो हम अपनी  आवश्यकता को और परमेश्वर के उपकार, परमेश्वर की परिपूर्णता, और उसकी महिमा के धन को स्वीकार करते हैं।

जिस प्रकार से भोजनालय में परोसने वाले को “धन्यवाद” कहने के द्वारा मैं स्वयं को नम्र करता हूँ और उसको ऊँचा करता हूँ, उसी प्रकार से जब मैं परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता का अनुभव करता हूँ तो मैं स्वयं को नम्र करता हूँ और परमेश्वर को ऊँचा करता हूँ। निस्सन्देह, अन्तर यह है कि मैं वास्तव में परमेश्वर की कृपा के लिए उसका अत्यधिक ऋणी हूँ, और वह मेरे लिए जो कुछ भी करता है वह सब सेंतमेंत में है और मैं उसके लिए अयोग्य हूँ।

परन्तु मुख्य बात यह है कि कृतज्ञता, देने वाले को महिमान्वित करती  है। यह परमेश्वर को महिमा देती है। और पौलुस के सभी परिश्रमों का यही अन्तिम लक्ष्य है। हाँ, उसके परिश्रम कलीसिया के लिए हैं — अर्थात् कलीसिया की भलाई के लिए। परन्तु कलीसिया ही सबसे ऊँचा लक्ष्य नहीं है। एक बार इसे पुनः सुनें: “क्योंकि सब वस्तुएँ तुम्हारे लिए हैं कि अनुग्रह जो अधिक से अधिक लोगों में फैलता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए  धन्यवाद की वृद्धि का कारण बन सके।” सब तुम्हारे  लिए — अर्थात् परमेश्वर  की महिमा के लिए।

सुसमाचार के विषय में अद्भुत बात यह है कि परमेश्वर की महिमा के लिए यह हमसे जिस प्रतिउत्तर की माँग करता है, वह वही प्रतिउत्तर है जो सबसे स्वाभाविक और आनन्दमय है; अर्थात्, अनुग्रह के लिए धन्यवाद। देने के कार्य में परमेश्वर की सर्व-पूर्ति करने वाली महिमा और प्राप्त करने के कार्य में हमारी विनम्र प्रसन्नता में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। आनन्दपूर्ण धन्यवाद परमेश्वर की महिमा करता है।

एक ऐसा जीवन जो परमेश्वर को उसके अनुग्रह के लिए महिमा देता है और एक गहरे आनन्द का जीवन, दोनो एक ही जीवन हैं। और जो बात उनको एक बनाती है, वह है कृतज्ञता।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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