ख्रीष्ट ने कड़वाहट पर विजय कैसे पाई
उसने गाली सुनते हुए गाली नहीं दी, दुःख सहते हुए धमकियाँ नहीं दी, पर अपने आप को उसके हाथ सौंप दिया जो धार्मिकता से न्याय करता है। (1 पतरस 2:23)
यीशु से अधिक गम्भीर रूप से किसी के विरुद्ध पाप नहीं किया गया। उसके प्रति की गई हर एक शत्रुता पूरी रीति से अनुपयुक्त थी।
आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ है जो यीशु से बढ़कर आदर के योग्य हो; और न ही उससे बढ़कर किसी और का निरादर हुआ है।
यदि किसी के पास क्रोधित होने का और कड़वाहट से भरने और प्रतिशोध लेने का उचित कारण था, तो वह केवल यीशु के पास ही था। उसने स्वयं पर कैसे नियन्त्रण किया जब नीच लोगों ने, जिनके अस्तित्व को यीशु ही ने बनाए रखा था, उसके मुख पर थूका? 1 पतरस 2:23 इसका उत्तर देता है: “उसने गाली सुनते हुए गाली नहीं दी, दुःख सहते हुए धमकियाँ नहीं दी, पर अपने आप को उसके हाथ सौंप दिया जो धार्मिकता से न्याय करता है।”
इस पद का अर्थ है कि यीशु को परमेश्वर के धर्मी न्याय के भविष्य-के-अनुग्रह पर विश्वास था। उसने जो भी अपमान सहा उसके लिए उसे स्वयं प्रतिशोध लेने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि उसने अपने पक्ष को परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया था। उसने प्रतिशोध को परमेश्वर के हाथों में सौपा था और अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थना की: “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं” (लूका 23:34)।
पतरस हमें यीशु के विश्वास की एक झलक देता है जिससे कि हम भी इस रीति से जीना सीख सकें। उसने कहा, “तुम इसी अभिप्राय से [कठोर व्यवहार को धैर्य से सहने के लिए बुलाए गए हो . . . क्योंकि ख्रीष्ट ने भी तुम्हारे लिए दुःख सहा और तुम्हारे लिए एक आदर्श रखा कि तुम भी उसके पद-चिन्हों पर चलो” (1 पतरस 2:21)।
यदि ख्रीष्ट ने उस बात पर विश्वास करने के द्वारा कड़वाहट और प्रतिशोध पर विजय प्राप्त की, जिसे भले न्यायाधीश परमेश्वर ने करने की प्रतिज्ञा की थी, तो हमें और कितना अधिक ऐसा करना चाहिए, क्योंकि हमारे पास उसकी तुलना में दुर्व्यवहार सहने के चलते बड़बड़ाने का अधिकार बहुत ही कम है?



