"मनुष्य का पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं वरन् सेवा करने और बहुतों की फिरौती के मूल्य में प्राण देने आया।" (मरकुस 10:45)
न केवल वह पृथ्वी पर रहते समय अपने लोगों का सेवक था, किन्तु वह उस समय भी हमारा सेवक होगा जब वह इस संसार में पुनः आएगा। “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ कि वह अपनी कमर कसकर उनकी सेवा करेगा और उन्हें भोजन करने बैठाएगा और स्वयं आकर परोसेगा” (लूका 12:37)। यीशु ने इसे एक चित्रण के रूप में हमें दिखाया है कि वह अपने पुनः आगमन पर क्या करेगा।
केवल इतना ही नहीं किन्तु वह अब भी हमारा सेवक है। “मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा और न ही कभी त्यागूँगा।’ अतः हम साहसपूर्वक कह सकते हैं, “प्रभु मेरा सहायक है, मैं नहीं डरूँगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?’” (इब्रानियों 13:5-6)
क्या यह विचार जी उठे यीशु के मूल्य को कम करता है — कि वह अपने लोगों का सेवक था और है तथा सर्वदा रहेगा? यह यीशु के मूल्य को तब कम करता, यदि “सेवक” का अर्थ केवल यह होता “वह जो आदेशों को ग्रहण करता है,” अथवा यदि हम यह सोचते कि हम उसके स्वामी हैं। हाँ, यह बात उसका अनादर करती। किन्तु यह कहना उसका अनादर करना नहीं है कि हम निर्बल हैं और हमें उसकी सहायता की आवश्यकता है।
यह कहना उसका अनादर नहीं है कि केवल वही है जो हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता को पूरी कर सकता है।
यह कहना उसका अनादर नहीं है कि वह प्रेम का कभी न समाप्त होने वाला सोता है, और यह कि जितना अधिक वह हमारी सहायता करता है और जितना अधिक हम उसकी सेवा पर निर्भर होते हैं, उतना ही अधिक उसके संसाधन अद्भुत दिखाई देते हैं। इसलिए, हम साहसपूर्वक कह सकते हैं कि “यीशु ख्रीष्ट सेवा करने के लिए जीवित है!”
वह हमें बचाने के लिए जीवित है। वह हमें प्रदान करने के लिए जीवित है। और वह इस बात से प्रसन्न है।
वह आपकी चिन्ताओं के बोझ तले दबा नहीं है। उसको बोझ उठाना भाता है, न कि दूसरों पर बोझ डालना। उसको “अपनी बाट जोहने वालों के लिए” कार्य करना प्रिय लगता है (यशायाह 64:4)। वह “उनमें आनन्दित होता है . . .जो उसकी करुणा की आस लगाए रहते हैं” (भजन 147:11)। उसकी आँखें “समस्त पृथ्वी पर फिरती रहती हैं कि जिनका हृदय सम्पूर्ण रीति से उसका है, वह उनके प्रति अपनी सामर्थ्य को दिखाए” (2 इतिहास 16:9)।
यीशु ख्रीष्ट उन सभी के लिए जो उस पर भरोसा करते हैं सर्वसामर्थी सेवा के लिए उत्साहित है।