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क्या हम अपने देश की चंगाई के लिए प्रार्थना कर सकते हैं?

“और यदि मेरे लोग जो मेरे नाम के कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपने बुरे मार्गों से फिरें, तब मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूँगा और उनके देश को चंगा कर दूँगा” (2 इतिहास 7:14)।

जब भी हमारा देश किसी आपदा, महामारी या समस्या में से होकर जाता है, तो ऐसे समय में कुछ मसीही 2 इतिहास 7:14 के आधार पर प्रार्थना करते हैं, और वे यह सोचते हैं कि इससे समस्या का समाधान हो जाएगा। उदाहरण के लिए, जब कोरोना वायरस फैलने लगा, तब कुछ विश्वासी इस सोच से प्रार्थना करने लगे कि यदि हम नम्र होकर प्रार्थना करें, तो हमारा देश इस महामारी से बच जाएगा। देश के लिए प्रार्थना करना अच्छी बात है और हम मसीहियों को प्रार्थना करना भी चाहिए, लेकिन क्या ऐसी प्रार्थना में 2 इतिहास 7:14 का उपयोग करना सही  है?

किसी भी बात को समझने के लिए उसका सन्दर्भ जानना आवश्यक है, और यह सत्य बाइबल के पदों पर भी लागू होता है। इसका अर्थ यह है कि बाइबल के किसी भी पद को सही से समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि उस पद या खण्ड के आसपास क्या हो रहा है, और वह बात पूरी बाइबल में कैसे सही बैठ रही है। इसलिए हम इन बातों को ध्यान में रखते हुए आज 2 इतिहास 7:14 से समझने का प्रयास करेंगे, और यह देखेंगे कि क्या हम इसके आधार पर अपने देश के लिए प्रार्थना कर सकते हैं या नहीं?

2 इतिहास 7:14 का सन्दर्भ

2 इतिहास के पहले पांच अध्यायों में सुलैमान परमेश्वर के आदेश के अनुसार मन्दिर का निर्माण करवाता है। मन्दिर का निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद, अध्याय 6 में मन्दिर के समर्पण के समय सुलैमान अपनी प्रजा के लिए प्रार्थना करता है। सुलैमान अपनी प्रार्थना में बार-बार विनती करता है कि “यदि तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करें और अपने पापों के लिए तेरी ओर फिरें, तब तू अपनी प्रजा इस्राएल के पाप क्षमा कर देना” (6:21, 23, 26, 32-33,34-36, 39)। इस प्रार्थना के प्रतिउत्तर में परमेश्वर अध्याय 7:12-22 में कहता है कि मैंने तेरी प्रार्थना सुनी है और मैं पापों को क्षमा करूँगा। इस सन्दर्भ में परमेश्वर पद 14 में कहता है “यदि मेरे लोग नम्र होकर प्रार्थना करें तथा अपने पापों से फिरें और पश्चाताप करें, तो मैं उनके देश को चंगा करुंगा।”

इससे पहले हम इस पद को अपने ऊपर लागू करें, हमें समझना होगा कि हमारी स्थिति इस्राएलियों की स्थिति से अलग है।

इस्राएल एक भौगोलिक देश था।

आरम्भ में परमेश्वर ने इब्राहीम से उसके वंश को कनान देश की भूमि देने की प्रतिज्ञा की (उत्पत्ति 12:7), और फिर परमेश्वर ने यह भूमि इस्राएलियों को मिस्र देश से छुड़ाने के बाद दिया भी। सुलैमान इस्राएल देश का राजा था, और जब परमेश्वर “देश” को चंगा करने की बात करता है, तब वह उस निश्चित भौगोलिक देश इस्राएल की बात करता है।

यह ध्यान देने वाली बात है कि वर्तमान स्थिति में हम परमेश्वर के द्वारा दिए गए किसी विशेष भौगोलिक देश में नहीं रहते हैं, इसलिए यह प्रतिज्ञा हमारे देश पर सीधे-सीधे लागू नहीं होती है।

इस्राएल एक नस्ल का ईश्वरशासित (थियोक्रैटिक) राष्ट्र था।

इस्राएल देश एक ऐसा भौगोलिक देश था, जिसका राजा स्वयं सृष्टिकर्ता परमेश्वर था। उसने इस्राएल को अपनी प्रजा होने के लिए चुना, उसे बन्धुवाई से छुड़ाया और एक दृढ़ राष्ट्र बनाया। उस राष्ट के संचालन और हित के लिए परमेश्वर ने मूसा के द्वारा व्यवस्था प्रदान किया, जो इनके लिए संविधान था। इस्राएल का प्रधान राजा स्वयं परमेश्वर था और वह मानवीय राजाओं को नियुक्त करता था, ताकि वे उसकी प्रजा की अगुवाई कर सकें। इस्राएल देश न केवल परमेश्वर की प्रजा थी, परन्तु वे प्रतिज्ञा किए हुए लोग थे, जो एक ही नस्ल/वंश के थे। यह इसलिए था क्योंकि इस्राएल के सभी लोग शारीरिक रीति से इब्राहीम की सन्तान थे। इसलिए, परमेश्वर जब “मेरे लोग, जो मेरे नाम के कहलाते हैं” की बात करता है, तो वह विशेषकर उन लोगों की बात करता है जो शारीरिक रीति से इब्राहीम के वंशज हैं और परमेश्वर की अधीनता में इस्राएल में रहते हैं।

आज की स्थिति में हमें ध्यान देना चाहिए कि हम न तो भौगोलिक ईश्वरशासित राष्ट्र में रहते हैं, और न ही हम सब शारीरिक रीति से इब्राहीम के वंश के लोग हैं। इसलिए, एक बार फिर, क्योंकि हमारी स्थिति इस्राएल से भिन्न है, और हम इब्राहीम की शारीरिक सन्तान नहीं हैं, यह प्रतिज्ञा हम पर लागू नहीं होती है।

इस्राएल पुरानी वाचा के अधीन था।

इस्राएल के लोग परमेश्वर की प्रजा थे, जिनके साथ परमेश्वर ने वाचा बांधी थी। उस वाचा में भौतिक आशीष और दण्ड पाना, परमेश्वर के प्रति उनकी आज्ञाकारिता पर निर्भर था। लोगों को देश में प्रवेश कराने से पहले परमेश्वर ने उन्हें स्पष्ट रीति से बताया कि यदि वे व्यवस्था का पालन करेंगे, तो वे सम्पन्न होंगे, और यदि वे पाप करेंगे, तो उन पर अनेक शारीरिक और भौतिक समस्याएं आएँगी, जैसे बीमारी, महामारी, युद्ध आदि (व्यवस्थाविवरण 28:1-2, 15)। इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम यह समझ सकते हैं कि परमेश्वर ने इस्राएल से बांधी गई वाचा के अनुसार कहा था कि जब लोग पश्चात्ताप करेंगे: “मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करुंगा और उनके देश को चंगा कर दूंगा।”

आज हम विश्वासी नई वाचा के अन्तर्गत हैं, जिसमें आज्ञाकारिता के आधार पर भौतिक आशीष और दण्ड की बात नहीं की गई है। इसके विपरीत सभी प्रेरितों ने, और यहां तक प्रभु यीशु मसीह ने भी आज्ञाकारी होने के बाद भी दुख सहा। साथ ही साथ, मसीह हमें सांसारिक समृद्धि के लिए नहीं, लेकिन क्रूस उठाने के लिए बुलाता है।

इन तीन बातों से यह स्पष्ट है कि हमारी स्थिति पुराने नियम में इस्राएल की स्थिति से बहुत भिन्न है। हम परमेश्वर के लोग अवश्य हैं, लेकिन हम सब इस्राएल के भौगोलिक देश में नहीं रहते हैं, इब्राहीम की सन्तान नहीं हैं, और न ही पुरानी वाचा के अधीन हैं। इसलिए 2 इतिहास 7:14 की प्रतिज्ञा हम पर सीधे-सीधे लागू नहीं होती है। यह प्रतिज्ञा पुराने नियम के लोगों के लिए थी, हमारे लिए नहीं। इसलिए जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हमें इस पद के आधार पर यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर हमारी या हमारे देश की समस्या का समाधान अवश्य करेगा।

ऐसी बात नहीं है विश्वासियों को अपने देश की आपदा या महामारी के लिए प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। हमें अवश्य प्रार्थना करना चाहिए! हमें परमेश्वर से विनती करनी चाहिए कि वह हमारे देश को महामारी या आपदा से बचाए, परन्तु हमें इस प्रार्थना के उत्तर को परमेश्वर की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। और हम विश्वासियों को केवल देश की शारीरिक और भौतिक चंगाई के लिए ही नहीं, लेकिन उससे बढ़कर आत्मिक चंगाई के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। चाहे परमेश्वर देश से महामारी निकाले या न निकाले, काश वह लोगों के हृदय को बदल दे, ताकि वे यीशु मसीह पर विश्वास करके उद्धार पाएँ। काश हमारे देश के और भी लोग व्यक्तिगत रीति से यह अनुभव करें कि मसीह के कारण “यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)।

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