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“और यीशु ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, “हे पिता, मैं अपना आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” (लूका 23:46)

क्रूस पर यह यीशु की सातवीं वाणी है। क्रूस पर मृत्यु की अवस्था में यह पुकार एक भय और हार की पुकार नहीं थी। परन्तु यह एक उत्तम पुकार थी जिसके कारण आज हमारे पास एक  अनन्त आश्वासन है। इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे और क्यों हम इस आश्वासन को पा सकते हैं –

1. यीशु का अपनी मृत्यु पर सम्पूर्ण नियन्त्रण था – यूहन्ना 10:17-18 में यीशु ने कहा था कि “पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखता है कि मैं अपना प्राण देता हूँ कि उसे फिर ले लूँ। कोई उसे मुझ से नहीं छीनता, परन्तु मैं उसे अपने आप दे देता हूँ। मुझे उसे देने का अधिकार है, और फिर ले लेने का भी अधिकार है। यह आज्ञा मैंने अपने पिता से पायी है”। इसलिए यीशु की मृत्यु एक हताश, हारे हुए, लाचार मनुष्य की मृत्यु नहीं थी। यीशु ने अपनी इच्छा से, सम्पूर्ण नियन्त्रण में होकर, अपने अधिकार में होकर यीशु ने अपने प्राण को त्याग दिया, क्योंकि यीशु के पास अपनी मृत्यु पर सम्पूर्ण नियन्त्रण था। यह बात हमारे लिए बहुत ही उत्तम है। 

2. यीशु अपने कार्य को सिद्धता से समाप्त करते हैं – यीशु का अपनी आत्मा को पिता के हाथों में सौंपना यह दर्शाता है कि उसने अपने पिता की इच्छा को सिद्धता से पूरा कर दिया है। उसने कोई कार्य को रख नहीं छोड़ा जिसे अब हमें पूरा करना होगा। यह एक जीत की पुकार है। पिता के हाथों में वह अपनी आत्मा को इस आश्वासन के साथ सौंप देता है क्योंकि वह जानता है कि उसने उद्धार के कार्य को पूरा कर दिया है। और अब वह उस महिमा में प्रवेश करेगा जिस महिमा में वह पिता के साथ अनन्त काल से था (यूहन्ना 17:5)। उसने अपने कार्य को पूरा कर दिया है और अब वह पिता के दाहिने हाथ पर जा बैठेगा और अपनी अनन्त महिमा में प्रवेश करेगा। वह ऊँचे स्वर से पुकार कर यह कह रहा था। 

अतः हम इससे यह आश्वासन पा सकते हैं कि हमे मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अब हम पर दण्ड की आज्ञा नहीं रही। हमारी शारीरिक मृत्यु के बाद, अब हमारे पास एक अनन्त आश्वासन है और यह हमारे लिए एक उत्तम आश्वासन है।  

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मोनीष मित्रा
मोनीष मित्रा

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

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